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नवंबर, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वो कौन थी (भाग-1)

वो कौन थी (भाग-1) "अरे यार रोमी तू कहाँ चला जाता है ,पार्टी में सब तुझे ही खोज रहें हैं" शशांक ने रोमेश उर्फ रोमी को देखते ही बोला। "हाँ मैं वो अंदर किचन में ठंढ़ा लेने गया था" शशांक को ठंढ़े की बोतल दिखाते हुए रोमेश बोला। रोमेश और शशांक एक ही ऑफिस में काम करते थे और बहुत अच्छे दोस्त भी थे।आज उनके बॉस की शादी की 25वीं सालगिरह थी इसलिए बॉस ने अपने घर पर ही पार्टी दी थी। ऑफिस के लगभग सभी लोग इस पार्टी में आए थे। रोमेश बहुत ही हँसमुख स्वभाव का था....ऑफिस में सब की उस से बहुत पटती थी....सभी उसे रोमी कह कर बुलाते थे...लोगों ने उसे सीरियस होते बहुत ही कम देखा था....ऑफिस का कोई काम हो या बाहर का वह किसी को कभी भी ना नहीं कहता था। इसलिए आज पार्टी की लगभग सभी तैयारी रोमी ने ही की थी और सब उसी को खोज रहे थे। गीत-संगीत ,मजा[क -मस्ती का दौर चलते-चलते पता ही नहीं चला कब रात के एक बज गए। सब ने एक- दूसरे को टाटा ,बाय-बाय किया और घर के लिए निकलने लगे। कोई बाईक से आया था तो किसी की अपनी गाड़ी थी। रोमेश ने भी अपने बॉस को बाय बोला और अपनी बाईक स्टार्ट करने ही वाला था क

शेष अग्निपरीक्षा

लेखिका: मंगला रामचंद्रन इधर कुछ दिनों से वैदेही इसी तरह से महसूस कर रही है. रमण से मुलाक़ात के बाद वो कुछ असहज-सा महसूस करने लगी है. मन में असमंजस की स्थिति बनी रहती. कारण तो वो स्वयं भी ठीक से समझ नहीं पा रही है. पर यह स्थिति पिछले चंद महीनों में अधिक स्पष्ट रूप से महसूस कर पा रही है. रमण से वो पिछले डेढ़ वर्षों से परिचित हुई है. न तो कोई पहली नज़र का प्यार वाला मामला था ना ही ऑफ़िस में साथ काम करते हुए रोज़ मिलते रहने का सिलसिला. वैदेही को तो ये भी याद नहीं आ रहा है कि पहली बार रमण उसे कहां और किन हालात में मिला. अब सोचने पर लगता है कि शायद वो स्वाभाविक या प्राकृतिक रूप से निर्मित वातावरण नहीं था. तभी तो उसकी याद दिल में बसी हुई नहीं है. छब्बीस वर्षीय वैदेही दो-ढाई वर्षों से इस बैंक में काम कर रही है. युवा, ज़हीन और आत्मविश्वास से लबालब भरी हुई अपना काम इतनी मुस्तैदी से करती कि आसपास के लोगों में भी सकारात्मक ऊर्जा पैदा हो जाती. उसके घर में माता-पिता, भाई-भाभी उसके व्यवहार और कार्यकुशलता से प्रभावित थे और वो उन सबकी लाड़ली ही थी. एक बड़ी दीदी जो वैदेही से पंद्रह साल बड़ी

अली सरदार जाफ़री की ग़ज़लों से चुनिंदा शेर

है और ही कारोबार-ए-मस्ती जी लेना तो ज़िंदगी नहीं है सौ मिलीं ज़िंदगी से सौग़ातें हम को आवारगी ही रास आई क़ैद हो कर और भी ज़िंदां में उड़ता है ख़याल रक़्स ज़ंजीरों में भी करते हैं आज़ादाना हम तेरा दर्द सलामत है तो मरने की उम्मीद नहीं लाख दुखी हो ये दुनिया रहने की जगह बन जाए है अब आ गया है जहां में तो मुस्कुराता जा चमन के फूल दिलों के कंवल खिलाता जा तू वो बहार जो अपने चमन में आवारा मैं वो चमन जो बहारां के इंतिज़ार में है बहुत बर्बाद हैं लेकिन सदा-ए-इंक़लाब आए वहीं से वो पुकार उठेगा जो ज़र्रा जहां होगा क्या हुस्न है दुनिया में क्या लुत्फ़ है जीने में देखे तो कोई मेरा अंदाज़-ए-नज़र ले कर ज़ख़्म कहो या खिलती कलियां हाथ मगर गुलदस्ता है बाग़-ए-वफ़ा से हम ने चुने हैं फूल बहुत और ख़ार बहुत आसमानों से बरसता है अंधेरा कैसा अपनी पलकों पे लिए जश्न-ए-चराग़ां चलिए उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ - अहमद फ़राज़ आती है बात बात मुझे बार बार याद कहता हूं दौड़ दौ

तुम्हारी बहुत याद आती है

तुम्हारी बहुत याद आती है.... 1) याद आती है आज भी वो गर्मी की धूप, जिस पल में मैंने तेरी तस्वीर दिल में बसा ली थी, कुछ तो नूर था खुदा का तेरे चेहरे में, मेरी हर सांस को एक नजर में तुम अपना बना ली थी, पर अब जाने क्यों हर पल दम घुटने लगा है मेरा, हवाओं के शिखर पे हूं खड़ा पर सांस नहीं आती है, तुम्हारी बहुत याद आती है.... 2)वो पहली दफा था जब किसी अजनबी की शक्ल पढ़ी थी मैंने, जाने कैसे पर अंदर तक तुझे महसूस किया था मै, कैसे कोई किसी की हर सांस पे हुकूमत कर सकता है, अपनी सांसें तेरे नाम कर के ये समाज पाया था मै, जिसको में मेरे अभी भी धड़कन दौड़ती है, पर सांसें चलने को बस तेरी इजाज़त चाहती है, सुनो ना..तुम्हारी बहुत याद आती है। 3)बड़ा ही मुश्किल वक्त था वो, जब मैंने एक चेहरे को देख के कुछ महसूस किया था, जज़्बात कुछ यूं इन लबों के बीच दब के रह गए थे, तुझ तक पहुंचा सकु उन्हें ऐसा जरिया ढूंढ़ रहा था, वो तो तेरी मोहब्बत थी जो मै हाल - ए - दिल कह पाया तुझसे, और वो तेरी मोहब्बत ही है जो आज बहुत रुलाती है मुझे, सच में तुम्हारी बहुत याद आती

पांच के सिक्के

लेखिका: शैलजा कौशल रात में अपने ऑफ़िस की खिड़की से शहर को सलाम करने के बाद मैंने अपना बैग उठाया और चल पड़ा. अक्सर देर रात इन सड़कों पर बाशिंदे तो नही मिलते लेकिन सरपट भागती शैवरले की खिड़की से मुझे अपना रेडियो बजता सुन जाता है. मुझे पसंद है कि कोई जानता नहीं मुझे वरना साइन करना और सेल्फ़ी खिंचवाना भी अब उबाऊ लगता है. मन करता है कि अजनबी बन जाऊं और इन सरपट चलती गाड़ियों में एक गाड़ी मेरी भी हो और मैं भी रेडियो का लुत्फ़ उठाता हुआ अपनी वाइफ़ के साथ आइसक्रीम हाथ में पकड़े स्टेयरिंग चलाऊं. वाइफ़ से याद आया, कल जया का बर्थडे है. बल्कि सच तो यह है कि मुझे कभी भूला ही नहीं कि कल उसका बर्थडे है. तो ख़ास क्या करना चाहिए? हर साल की तरह रेडियो पर उसका फ़ेवरेट सॉन्ग चलवाऊं या फिर उसके नाम की किसी लड़की को फ़ोन लाइन पर लेकर जया से बात करने की अपनी चाहत सच करने का धोख़ा अपने आप को दूं. जया, मेरी वाइफ़ नहीं है. लेकिन वो मेरे अब तक कुंवारे होने का कारण ज़रूर है. क्या कहूं, कोई मिली नहीं उसके जैसी या कहूं कि ढूंढ़ा ही नहीं. Paanch Ke Sikke लड़कियों के झुंड में घिरे होने के बावजूद जया का ख़्

Bigg Boss 13: हिमांशी के प्यार में डूब चुके हैं आसिम, बेड शेयरिंग के बाद खुलेआम कर रहे KISS

'बिग बॉस' (Bigg Boss 13) में सिद्धार्थ और देवोलीना के बाद अब एक और जोड़ी प्यार में डूब चुकी है। इस जोड़ी का नाम है हिमांशी खुराना और आसिम रियाज। हिमांशी और आसिम के बीच नजदीकियां लगातार बढ़ती जा रही हैं जो कि शो में साफ नजर आ रहा है। यहां तक कि शेफाली और हिमांशी के साथ आसिम रियाज बेड भी साझा करते हैं। इस बीच शो के दौरान कुछ ऐसा हुआ कि कई बार आसिम रियाज हिमांशी खुराना (Himanshi Khurana) को किस करते हुए नजर आए। आसिम और हिमांशी सिद्धार्थ शुक्ला की टीम में थे। सिद्धार्थ से झगड़ा होने के बाद आसिम की बातचीत हिमांशी से बढ़ने लगीं। यहां तक कि आसिम ज्यादातर शेफाली और हिमांशी के साथ ही देखे जाने लगे। आसिम अपने दिल की बात शेफाली को पहले ही बता चुके थे। वहीं हाल ही में टेलीकास्ट हुए एपिसोड में उन्होंने हिमांशी से भी अपने प्यार का इजहार किया। हिमांशी ने आसिम की बात सुनते ही कहा कि वह पहले से ही रिश्ते में बंधी हुई हैं। हालांकि आसिम ने कहा कि वह सब कुछ जानते हैं। 27 नवंबर को टेलीकास्ट हुए एपिसोड में आसिम हिमांशी को जन्मदिन की बधाई दी। इसके साथ ही उन्हें गले लगाया और किस भी किया।

रितिका

रितिका   रविवार की रात सोने से पहले माँ से कहा," कल सुबह जल्दी निकालना है टिकेट विंडो पर भीड़ ज्यादा होती है, ट्रेन छूटने का डर रहता है ।" क्योंकि मुझे अलार्म पर भरोसा नही था । माँ ,"लेकिन बेटा तू तो जल्दी ही निकलता है और समय पर पहुच भी जाता है ...कितने बजे उठा दो तुझे , ट्रैन ५:४० की ही है न ??" हां माँ ५:४० की ट्रैन है .३ बजे उठा देना । कह तो दिया उठा देना लेकिन जब सोयेगे तब न उठेगे, तीन तो ऐसे ही बज जायेगा आज..ये अलार्म भी बेवफा है; सुनाई देगा नहीं अगर सो गए । बीते सोमवार की यात्रा का एहसास ही ऐसा है जो आज एक सप्ताह बाद भी नींद उड़ा ले गया। कल फिर सोमवार है और मुझे फिर से लखनऊ - कानपुर मेमो ट्रैन पकड़नी है, हर सोमवार की सुबह ऐसी ही होती है । कानपुर में बर्रा 8 में मेरा छोटा सा अल्पकालिक किराए पर लिया हुआ घोसला है । प्रत्येक शनिवार की रात को, शनिदेव की कृपा से लौह पथ गामिनी के माध्यम से मैं अपने घर आता हूँ और सोमवार सुबह फिर से अपने कार्य स्थल लोहिया मशीन लिमिटेड में अपने दिमाग का दही करके और अपने शरीर को गन्ने की की तरह निचोड़ कर वापस अपने घोसलें में प

'प्रेम रोग' पर चुनिंदा शेर...

इश्क़ का रोग भला कैसे पलेगा मुझ से क़त्ल होता ही नहीं यार अना का मुझ से ~प्रखर मालवीय कान्हा इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब' कि लगाए न लगे और बुझाए न बने ~मिर्ज़ा ग़ालिब इश्क़ का रोग तो विर्से में मिला था मुझ को दिल धड़कता हुआ सीने में मिला था मुझ को ~भारत भूषण पन्त रोग ऐसे भी ग़म-ए-यार से लग जाते हैं दर से उठते हैं तो दीवार से लग जाते हैं ~अहमद फ़राज़ इश्क़ का रोग उन के बस का नहीं दूर से वो सलाम करते हैं ~ रईस नारवी घटे तो चैन नहीं है बढ़े तो चैन नहीं हमें लगा है ये क्या रोग कोई पहचाने ~जिगर बरेलवी ताक़-ए-जाँ में तेरे हिज्र के रोग संभाल दिए उस के बाद जो ग़म आए फिर हँस के टाल दिए ~शहनाज़ नूर हिज्र बना आज़ार सफ़र कैसे कटता इश्क़ के रोग हज़ार सफ़र कैसे कटता ~अली अकबर मंसूर रोग ही रोग हैं जिस ओर नज़र जाती है फिर भटकता हूँ फ़क़त मौत मुझे भाती है ~ज़ाहिद डार इश्क़ का रोग कि दोनों से छुपाया न गया हम थे सौदाई तो कुछ वो भी दिवाने निकले ~कुमार पाशी इश्क़ का रोग लगा है कई बरसों से

हरिवंश राय बच्चन के कविता संग्रहों से चुनिंदा कविताएं

मधुशाला मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊंगा प्याला पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला पथिक बना मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह मिलती हाला सभी जगह मिल जाता साकी, सभी जगह मिलता प्याला मुझे ठहरने का, हे मित्रों, कष्ट नहीं कुछ भी होता मिले न मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला मुसलमान औ' हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला यम आएगा लेने जब, तब खूब चलूंगा पी हाला पीड़ा, संकट, कष्ट नरक के क्या समझेगा मतवाला क्रूर, कठोर, कुटिल, कुविचारी, अन्यायी यमराजों के डंडों की जब मार पड़ेगी, आड़ करेगी मधुशाला निशा निमन्त्रण दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! हो जाए न पथ में रात कहीं, मंजिल भी तो है दूर नहीं यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है! दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! बच्चे प्रत्याशा में होंगे, नीड़ों स

परमवीर चक्र विजेता पर ये बोले कमांडो 3 के प्रोड्यूसर, बताया क्यों खास है विद्युत जामवाल की नई फिल्म

इस शुक्रवार को रिलीज हो रही फिल्म 'कमांडो 3' को मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स चैंपियन विद्युत जामवाल की अब तक सबसे बड़ी एक्शन फिल्म बताया जा रहा है। 'कमांडो' सीरीज की पिछली दो फिल्मों की सफलताओं ने फ्रेंचाइजी की तीसरी फिल्म का रास्ता खोला और फिल्म के निर्माता अभी से इसकी चौथी कड़ी की कहानी पर काम शुरू कर चुके हैं। कमांडो और कमांडो 2 में दर्शक विद्युत जामवाल का जबरदस्त एक्शन देख चुके हैं, 'कमांडो 3' में विद्युत से आपने क्या नया करवाया है? इस फिल्म की शूटिंग शुरू होने से पहले विद्युत ने हॉलीवुड के चंद मशहूर निर्देशकों के साथ वर्कशॉप की। दर्शकों को इस बार विद्युत के ट्रेडमार्क एक्शन दांव तो देखने को मिलेंगे ही, इस बार उन्होंने अपनी तरफ से एक्शन की कुछ नई हरकतें ईजाद की हैं। इसके अलावा फिल्म की हीरोइन अदा शर्मा ने भी जबरदस्त एक्शन किया है। ऐसा एक्शन हिंदी सिनेमा में अब तक किसी हीरोइन कैमरे के सामने खुद नहीं किया है। 'कमांडो 3' को आप सामाजिक समरसता का नया संदेश बताते रहे हैं, इसको थोड़ा विस्तार से समझाएंगे? अयोध्या मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने से

हेल्दी केक रेसिपी: ग्लूटन फ्री चॉकलेट केक

अगर आपको केक खाने की क्रेविंग हो रही है और ग्लूटन से परहेज है, तो आप इस ग्लूटन फ्री चॉकलेट केक को अपनी डायट में शामिल करके अपनी क्रेविंग शांत कर सकते हैं. यह रेसिपी श्री लंका के कोलंबिया में स्थित मूवएनपीक होटल के पेस्ट्री शेफ़ नमल कालूबोवालिया की है. यक एक तरह की कीटो केक है.\ सामग्री 200 ग्राम शक्कर 200 ग्राम बादाम पाउडर 05 अंडे 125 ग्राम पिघला बटर 240 ग्राम पिघला डार्क चॉकलेट विधि • सबसे पहले ओवन को 160 सेल्सिया टैम्प्रेचर पर गर्म कर लें. • शक्कर, बादाम पाउडर, अंडे और पिघले हुए बटर को एक साथ मिलाएं. • अब उसमें डॉर्क चॉकलेट को भी मिलाकर, उसे एक चलाते हुए एक गाढ़ा मिश्रण बनाएं. • मिश्रण को केक मोल्ड में डाकलर पहले से गर्म किए हुए ओवन में 30 से 40 मिनट तक बेक करें. • केक को बाहर निकालकर डॉर्क चॉकलेट से डालकर सर्व करें.  2)      सेहतभरा डिज़र्ट: जैगरी पैनाकोटा लंच या डिनर के बाद मीठा खाने का मन हो, पर सेहत का ख़्याल आए, तो गुड़ से बने इस डिज़र्ट की तरफ़ रुख़ कर सकते हैं, जिसका नाम है जैगरी पैनाकोटा. सामग्री 2 कप फुल फ़ैट दूध ¼ कप जैगरी (गुड़) 2 टी

सियासत की सच्चाई बयां करते 10 चुनिंदा शेर...

हम को यारों ने याद भी न रखा 'जौन' यारों के यार थे हम तो - जौन एलिया ऐसा हो ज़िंदगी में कोई ख़्वाब ही न हो अंधियारी रात में कोई महताब ही न हो - ख़लील मामून 'हातिम' उस ज़ुल्फ़ की तरफ़ मत देख जान कर क्यूं बला में फंसता है - शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम इक खिलौना जोगी से खो गया था बचपन में ढूंढ़ता फिरा उस को वो नगर नगर तन्हा - जावेद अख़्तर हमें तो अहल-ए-सियासत ने ये बताया है किसी का तीर किसी की कमान में रखना - महबूब ज़फ़र जम्हूरियत इक तर्ज़-ए-हुकूमत है कि जिस में बंदों को गिना करते हैं तौला नहीं करते - अल्लामा इक़बाल समझने ही नहीं देती सियासत हम को सच्चाई कभी चेहरा नहीं मिलता कभी दर्पन नहीं मिलता - अज्ञात सरों पर ताज रक्खे थे क़दम पर तख़्त रक्खा था वो कैसा वक़्त था मुट्ठी में सारा वक़्त रक्खा था - ख़ुर्शीद अकबर सिर्फ बाक़ी रह गया बेलौस रिश्तों का फ़रेब कुछ मुनाफिक हम हुए, कुछ तुम सियासी हो गए - निश्तर ख़ानकाही कितने चेहरे लगे हैं चेहरों पर क्या हक़ीक़त है और सियासत क्या - सागर ख़य्यामी

काश भगवान कोई चमत्कार कर पाएं

नहीं भगवान ने इंसान को ऐसा बनाया है, नापाक इरादों का जमघट इंसान ने, अपने मस्तिष्क में ख़ुद बनाया है, ऊपर बैठा वह स्वयं की रचना पर, लज्जित हो रहा होगा, कहां त्रुटि कर दिया मैंने विचार कर रहा होगा, मिटाकर सारे संसार को मैं स्थापित पुनः कर दूं, और इंसान को बनाने में त्रुटि हो गई हो, तो तराश कर उसे ठीक मैं कर दूं, या दुनिया में स्त्रियों का जन्म ही बंद कर दूं, किंतु चीखें धरा से कान में जब गूंजीं, भगवान को ध्यान तब आया, यहाँ ना केवल स्त्रियां, बचपन भी असुरक्षित है, भेड़ियों का है बड़ा जमघट, हैवानियत से अपनी सबको डराया है, कैसे करुं नियंत्रण बड़ी जटिल समस्या है, व्यस्त हैं प्रभु ढूंढ़ने में तरक़ीब कोई, जिससे इंसान को बदल पाएं, इंतज़ार लम्बा है किंतु उम्मीद, पर ही तो ज़माना टिका है, काश भगवान कोई चमत्कार कर पाएं, और इंसान के नापाक इरादों को बदल पाएं, किंतु डर लगता है कि भगवान भी, कहीं हिम्मत ना हार जाएं, राक्षसों से तो विजयी हो गए थे, इंसानों से कहीं मात ना खा जाए। रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)