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जानने का जी करता है

Us din tum dhup se kre rahi thi
Aur meri jaan kar rahi thi tumhare chehre par.


Tum dhup ki aur jara khisaq gayi thi,
Narangi gunguni dhup mujhe Achi lagti hai
Kahkar

Tumhari hasi mein dhup ki chamak thi tha,
Meri chhaavan thandi thi mahej.
Maine yun dikhaya tha jaise Dekha ki nahi,

Par Dekha to tha.
Thoda sa hat kar baith Gaya.
Hum hastey betiyate  rahe.

Samay ki lambi chhaya par chuki hai hamare bich,
Nahi Jana tum kahan ho.

Shayad tumhe bhi meri khabar Nahi.
Lekin us din kuch ghatit hua tha chabhar ko.

Samay ki Chaya ko bhaidkar
Kabhi use hansi ki chamak

Gunguni bankar ubharti hai ab bhi.
Tum dhup mein ho, chhaw mai ho

Janne ka ji karta hai.
Anuvad : shiv kishor Tiwari

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