- जो लोग अभी तक मुझे बड़ा लेखक मानने से इनकार करते हैं,
एक गांधीवादी बैल की कथा |
उनकी उदासीनता को मैं क्या कहूं!वैसे अगर वह मुझे बड़ा लेखक मान लेते तो उनका एक भी पैसा खर्च ना होगा और मैं मुफ्त में बड़ा लेखक हो जाऊंगा।
जो भी हो, मैंने अपना ढांचा बड़े लेखक का बना लिया है। सिर में ब्राह्मी का तेल लगाता हूं और टैगोर की तरह दाढ़ी बढ़ा रहा हूं। दरवाजे पर एक पहरेदार रख लिया है, जो लोगों को मेरे पास आने से रोकता है, कहता है कि जरा साहब की दाढ़ी बढ़ जाने दीजिए, तब आइएगा। एक दिन दरबार आकर बोला, हुजूर एक गाय साहब आए हुए हैं। कहते हैं कि आप से मिलना बड़ा जरूरी है।
मैंने कहा, "गाय आई हुई है, क्यों आई हुई है ? कहां से आई है? उसने कहा, जरूरी मुलाकात के लिए आई हुई है। यह ताज्जुब है कि किसी लेखक से मिलने के लिए कोई गाय आई । खैर गाय आई है, तो मिल लेते हैं। लेकिन गाय जी को बिठाई कहां ? यहां मनुष्य के लिए कुर्सी का अभाव है, गाय के लिए कुर्सी कहां से लाएं। सोचा कि चलो, बाहर ही खड़े खड़े बात कर लूंगा और धन्यवाद देकर विदा कर दूंगा।
बाहर निकला तो देखा कि गाय नहीं, मिलने के लिए बैल आया है। तब दरबान की बात याद आई उसने कहा था, एक गाय साहब आए हुए हैं। मैंने हाथ जोड़कर कहा नमस्ते जी, कहिए, कैसे आना हुआ ? बोले, मैं कुटीर उद्योग से आ रहा हूं। शायद आप मुझे पहचानते ही होंगे। मैं वहां कोल्हू में तेल निकलता हूं । हमारे भंडार में गांधीजी की चिट्ठी लटकती रहती है।
आपने भी देखा होगा। सच कहूं तो मैंने कुछ नहीं देखा। लेकिन सिर्फ इस तरह लाया कि सब देखा है। मन में एक प्रकार की विरकि्तभी हुई कि लेखक से मिलने आ गए और अपने साथ कोई रोमांचक किस्से की जगह गांधी जी की चिट्ठी लाए हैं। ना इनके पास प्रगतिवाद है और ना कोई ध्दंध्द न भौतिकवादी आकर्षण। बैल जी ने कहा, सुनिए महोदय, मैंने सुना है कि आप लेखक हैं। मैं सोचता हूं कि आप मेरी कहानी सुन ले और उसके बाद मेरी जीवानी लिखकर कहीं छपवा दे।
इससे संसार का बहुत लाभ होगा। मैंने कहा, बंधुवर दुनिया अब बदल गई है। संसार सोचता है कि आप एटीएम बम से ही उसका लाभ होने वाला है। आज तेनु तुम जो भी करना है किसी वक्तव्य की तरह कहें। तब मैं सोच सकता हूं कि मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं। बहन जी ने बड़ी गंभीरता से काम में संक्षेप में कहता हूं। आप उसमें भी थोड़ा संक्षेप में मिलाकर किसी पेपर में छपवा दे, तो संसार का प्यार हो जाएगा। उसके बाद उन्होंने जो कुछ बताया उसका संक्षेप इस प्रकार है "मैं बैल हूं। मैंने गांधीवाद के प्रचार के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है। कई वर्षों से कुटीर उद्योग के कोल्हू में तेल निकाला रहा हू।
मेरी आंखों में पट्टी बंधी होती है और मैं तेल निकालता रहता हूं मैंने अपने जीवन को सत्य बना लिया है।और थोड़ी सी खास तथा देवकी खली खाकर गुजारा कर लेता हूं । मेरे दिमाग में सवाल उठा,सादगी से खास और खली खाकर गुजारा कर लेते हैं मगर मैं यह नहीं समझ पाया कि किसी पेपर के लिए आपके इंटरव्यू की उपयोगिता क्या है?
उन्होंने मेरी ओर देखते हुए सिर हिलाया। बोले उपयोगिता है, मैं ओवरटाइम भी करता हूं। लेकिन मुझे ओवरटाइम के लिए कुछ नहीं मिलता। केंद्रीय सरकार में काम करने वालों का वेतन कई बार बढ़ चुका। मैं चुपचाप तेल निकलता रहता हूं और मेरे लिए कुछ भी नहीं। उसकी बात सुनकर बुझाता की यह पहल आलसी है और मुख में वेतन बड़वानी पर तुला हुआ है। ऐसे लोगों को पब्लिसिटी नहीं मिलनी चाहिए।
मैंने पूछा आप कितना तेल निकालते हैं?
बैल न कहां मेरी आंखों पर पट्टी बंधी रहती है इसलिए ठीक ठीक देख नहीं पाता लेकिन दिन और रात मिलाकर तीन साढे
तीन सौ मन। मेरे मुंह से निकला ऐसा असंभव है। एक पल इतना तेल नहीं निकाल सकता । उन्होंने कहा, लेखक होकर भी आप इस तरह चौंकते है।
मैं संसार का सर्वश्रेष्ठ बैल तो हूं ही, क्योंकि मैं गांधीवाद बैल हूं
जी चाहे तब आप मेरे को चौक भंडार में जाकर जांच कर ले। मैंने उसकाफोटो खींच लिया और जांच का आश्वासन देकर विदा कर दिया।
उसने मुझे हिसाब बताया देखी प्रतिदिन दो सौ मन तो कुदरा बेचने वाले दुकानदार ले जाते हैं। इसके अलावा जेल है, अस्पताल है, सेनेटोरियम है, होटल है।
वहां हमारा तेल डायरेक्ट जाता है। सब मिलाकर साडे 300 मन तेल रोज आता है या नहीं। विश्वास ना हो तो आप जांच आयोग बैठा लीजिए और देख लीजिए कि मैं सच कह रहा हूं यार झूठ। मैंने कहा, भाई बैदजी, आपकी बात पर मुझे अभी तक विश्वास नहीं होता।मैं जांच कर लूं तब उसके बाद ही आपकी बात पर विश्वास कर सकता हूं।