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Garmi ki chuttiyan ekdum se khatam ho gayi 

Garmi ki chuttiyan ekdum se khatam ho gayi 


म्योप मुर्गी खाने से सूअरों के बाड़े तक, और वहां से धोएं वाले कमरे में चुदाती हुई चली गई उसको लगा उसने सुहाने दिन उसने पहले कभी नहीं देखें।

उत्सुकता भरी हवा चारों और पसरी हुई थी जो उसकी नाक में रह-रहकर चिकोटि कर रही थी।
मक्का, कपास, मूंगफली, और स्क्वांश की फसल बच्चों की थी और हर रोज इसके साथ जुड़ा हुआ नया तजुर्बा उसको खूब उत्साहित कर रहा था।

इस अनूठे आनंद से उसका शरीर सिहर जाता।
म्योप के हाथ में एक छोटी सी गोल हाथ वाली घड़ी थी, जो चूजा उसको लुभाता हौले से उसके ऊपर वह छड़ी का सिरा रख देती और सुअरों के बाड़े के घेरे के इर्द गिर्द अपनी पसंद के एक गाने की धुन गुनगुनाते हुए घूम रही थी।

धूप की तपिश में वह खुश और हल्का महसूस कर रही थी। वह टीवी तो महज 10 साल की और उसके लिए उसका गीत और सांवली हथेली में थामी हुई छड़ी सरीखे साजो सामान के शिवा भला किस और चीज का महत्व था।

म्योप वहां अपने केबिन से धीरे-धीरे आगे बढ़ती हुई आहतें के तार लगे बाढ़ तक आई, तो सामने हाल की बरसात में बन गए एक नाले पर उसकी नजर पड़ी।
इस नाले से ही उसके घर का पीने का पानी जाता था।

उसके आसपास सिल्वर फर्न और जंगली फूल खिले हुए दिखे। इसके पास अकर सूअर लौटते थे। म्योप का ध्यान मिट्टी के ऊपर काली औरत के बीच से बाहर निकलते सफेद बुलबुलों की और अनायास चला गया,

जिनके कारण गीली मिट्टी कभी उठ रही थी कभी गिर रही थी
घर के पीछे के जंगल में म्योप पहली बार नहीं आई थी इधर आना उसका प्रिय शगल था।

पतझड़ के मौसम में नीचे गिरी पत्तियां के बीच से बादाम के फल बिन कर लाने के लिए उसकी मां कई बार उसको इधर लेकर आती थी। आज वह अपने आप इधर आ गई डालियों को इधर-उधर परे हटाती हुई पर उसका ध्यान हर पल सांपों से बचने पर लगा रहा।

फर्न और दूसरे फूल पत्तियों के अलावा आज म्योप को नीले रंग की अजीब से फूल और झांकी तरह दिखने वाले भूरे रंग की कलियों के गुच्छे दिखाई दिए, जिम से खूब भीनी भीनी सुगंध आ रही थी।

12 बस्ते बस्ते वहां अपने घर से कोई नील भर आगे निकल आई थी और उसके दोनों हाथ डालियों और फूलों से भरे थे।ऐसा नहीं कि पहले कभी वह इतनी दूर तक नहीं आई थी पर आज वह जहां आप होती थी वह अजनबी तो लग रहा था, कहीं कुछ गड़बड़ भी लग रहा था।

वह एक संकरे खोह मैं पहुंच गई थी जिसमें पहले से कुछ उचाटपन मौजूद था। हवा नमी से भरी थी और आसपास बहुत गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था।
इन सब से घबराकर म्योप घर की ओर वापस मोरनी को हुई शांत माहौल में जैसा सुबह सुबह घर से निकलते हुए उसको अहसास हुआ था। होते ही म्योप की नजर उसकी आंखों से जा टकराई दरअसल म्योप की जूती की हील उसकी मां और नाक के बीच के गड्ढे में फस गई थी उसको डर नहीं लगा लेकिन घबरा कर वह अपने गांव निकाल कर नीचे की ओर चली गई।


जब उसने उसके नंगी चेहरे को होले होले मुस्कुराते हुए देखा तो घबराहट में उसके मुंह से चीख निकल गई। वह लंबे कद का आदमी था पांव से लेकर गर्दन तक का घर एक तरफ और कटा हुआ सिर दूसरी तरफ पड़ा हुआ था। जब म्योप ने जिज्ञासावश पत्तियां, टहनिया और जमी हुई मिट्टी वहां से हटाने तो उसके बड़े बड़े सफेद दांत चमकते हुए दिखाई दिए। हालांकि नजदीक जाकर देखा तो उसमें से एक भी साबूत नहीं बचा था।

सब टूटे हुए थे लंबी उंगलियां और चौड़ी हड्डियां। उसके कपड़े तार तार होकर गल चुकी थी बस ब्लू डेनिम के कुछ धागे यहां वहां बचे हुए थे। उसके ओवरऑल के बकल अपनी चमक खो चुके थे और हरे रंग की दिख रहे थे।

म्योप ने इधर उधर निगाह दौड़ाई जहां उसका सिर पड़ा था उसके बिल्कुल पास जंगली गुलाब का गुलाबी फूल सिर उठाए खड़ा था। जैसे ही म्योप उसको तोड़ने झुकी और हथेलियों की अपने खजाने में शामिल किया उसकी नजर गुलाब के पौधे की जड़ के पास गोल उभरी हुई तीली नुमा जमीन पर पड़ी, जिसके ऊपर एक गोला बना हुआ सा दिखा।

नजदीक जाकर देखा तो यह गले में डालने वाले फांसी के फंदे का अवशेष था जिससे लंबा रस्सा बांधा हुआ था जो अब सड गलकर धीरे धीरे मिट्टी का हिस्सा बनने लगा था।


निकट है ओक एक विशाल वृक्ष खड़ा था ।
सड गलकर बदरंग और तार तार हो गया था पर हवा चलने से लगातार फड़फड़ा रहा था। इसको देखते ही म्योप के हाथ से चेतन सेठा में सारे फूल और टहनियां फौरन वहीं जमीन पर छूट गए।
म्योप की गर्मी की छुट्टियां वही एकदम से खत्म हो गई।

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