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Stree strotam Hindi story


इस पूजा में अश्रु जल ही पा‌ध है,


दीर्घ वास ही अर्ध्य है, आश्वासन है आचमन है
मधुर भाषण ही मधुपर्क है, सुवर्णालंकार ही पुष्प है, दर ही धूप है, दीपक ही, चुप रहना ही चंदन है और बनारसी साड़ी ही बिल्वपत्र है, आयु रूपी आंगन में सौंदर्य तृष्णा रूपी खूंटा है ।
देविका सुहागी खबर है और प्रीति ही तलवार है, प्रत्येक शनिवार की रात्रि इसमें अष्टमी है और पुरोहित यौवन है।

परदादी उपचार करके होम के समय यौवन पुरोहित उपासक के प्राण समिधाओं में मोहाग्नि लगाकर सर्व नाश तंत्र में मंत्रों से आहुति दे मानव खंड के लिए निद्रा स्वहा   
बात मानने के लिए मां-बाप का बंधन सुहाग स्वास्थ्य अलंकार दिन के लिए यथा सर्वस्व मन प्रसन्न करने के लिए यहां लोक परलोक स्वाहा इत्यादि होम के अंतर हाथ जोड़ कर स्थिति करें

स्त्री देवी संसार रूपी आकाश में तुम गुब्बारा हो क्योंकि बात बात में आकाश में चढ़ा देती हो व्हाट्सएप धक्का दे देती हो तब समुद्र में डूबा ना पड़ता है अथवा पर्वत शिखरो पर हाड़ चूर्ण हो जाते हैं जीवन के मार्ग में तुम रेलगाड़ी हो जिस शब्द रचना रूपी इंजन तेज करती हो एक घड़ी भर में 14 भुवन दिखला देती हो।

कार्यक्षेत्र में तुम इलेक्ट्रिक टेलीग्राफ हो बात बढ़ने पर एक निवेश में उसे देश देशांतर में पहुंचा देती हो तुम भवसागर में जहाज हो, बस आज हम को प्यार करो तुम इंद्र शवसुर कुल के दोष देखने के लिए तुम्हारे सहस्त्र नेत्र हैं ।

स्वामी पर शासन करने को तुम वजपाणि हो। रहने का स्थान अमरावती है, क्योंकि जहां तुम हो वही स्वर्ग है तुम चंद्रमा हो तुम्हारा हास्य कौमुदी है, उससे मन का अधिकार दूर होता है तुम्हारा प्रेम रीत है जिसके प्रबंध में होता है वह इसी शरीर से स्वर्ग सुख अनुभव करता है और लोग में जो तुम व्यर्थ पराधीन कहलाती हो यही तुम्हारा मन का कंकाल है

तुम वरुण हो, क्यों की इच्छा करते ही अश्रु जल से पृथ्वी आर्द् कर सकती हो। तुम्हारे ने तेजल को देख हम भी गल जाते हैं। तुम सो रहे हो तुम्हारे ऊपर वालों का आवरण है पर भीतर अंधकार का वास है।

हमें तुम्हारे एक घड़ी भर भी आंखों के आगे ना रहने से दसो दिशा अंधकारमय मालूम होता है, पर जब माथे पर चढ़ जाती हो तब तो हम लोग उतार के मारे मर जाते हैं। तुम ही हो क्योंकि जगत के प्राण हो। तुम्हें छोड़कर कितनी देर जी सकते हैं? एक घड़ी भर तुम्हें देखे बिना प्राण तड़फड़ाने लगते हैं,

 जल में डूब जाने की इच्छा होती है, पर जब तुम प्रखर बहती हो, किस बात में समर्थ है कि तुम्हारे सामने खड़ा रहे।
तुम यम हो, यदि स्त्री को बाहर से आने में विलंब हो तो तुम्हारे वक्तृत्ता नर्क है। यह यातना जिससे ना सहने पड़े वहीं पुण्यवान है, उसी की अंत तपस्या है।


तुम अग्नि हो, कैसे दिन रात हमारी हड्डी हड्डी चलाया करती हो, तुम्हारी नाथ तुम्हारा सुदर्शन चक्र है। उसके भाई से पुरुष असुर माथा मुड़ा कर तटस्थ हो जाते हैं। जो कोई मन से तुम्हारी सेवा करें तो सशरीर बैकुंठ को प्राप्त कर सकता है।
तुम हुमा हो, तुम्हारे मुख से जो कुछ बाहर निकलता है वही हम लोगों का वेद है और किसी वेद को हम नहीं मानते। तुम्हारे चार मुख हैं, क्योंकि तुम बहुत बोलती हो। सृष्टि कर्ता प्रत्यक्ष ही हो।


तुम शिव हो, सारे घर का कल्याण तुम्हारे आधीन है।
भुजंग बेनी धारणी हो। त्रिशूल तुम्हारे हाथ में है।
क्रोध में तुम्हारे कंठ में विश है, तो भी आशुतोष हो। इस दिव्य स्त्रोत पाठ में तुम हम पर प्रसन्न हो जाओ। समय पर भोजनादि दो, बालकों की रक्षा करो भृकुटी धनु के संधान से हमारा वध मत करो और हमारे जीवन को अपने कोप से कटकमय मत बनाओ।

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