अनन्या की कहानी, जिसे बाद में एहसास हुआ कि वह जिसे चोर समझ रही थी वह भला आदमी था।
अनन्या दिल्ली से आगरा ऑफिस के काम से जा रही थी। उस दिन वह आधा घंटा पहले ही प्लेटफार्म पहुंच गई। ट्रेन आने में अभी देर थी,तो उसने सोचा कि क्यों ना चिप्स का पैकेट लिया जाए, और पर्स में पड़े नोबेल को पूरा पढ़ लिया जाए, जिसके कुछ ही पन्ने पढ़ने को बचे हैं। अनन्या ने चिप्स का पैकेट लिया और प्लेटफार्म पर लगी सीट पर बैठ गई। कुछ देर में एक सभ्य सा दिखने वाला युवक आकर उसके बगल में बैठ गया।
नोबल पढ़ते-पढ़ते अनन्या के कानों में युवक के चिप्स खाने की आवाज सुनाई दी। जब अनन्या ने नजर घुमाकर देखा, तो पाया कि अनन्या वाले चिप्स का पैकेट खुला हुआ है और उन दोनों के बीच में रखा हुआ है। अनन्या मन ही मन उसी युवक को खूब कोसने लगी की देखने में इतना सीधा साधा लेकिन हरकतें देखो।
बिना पूछे इसने मेरे चिप्स को हाथ से कैसे लगाया?कुछ ही देर में युवक ने कुछ और चिप्स पैकेट से निकाले और हाथ में लेकर खाने लगा। अनन्या को गुस्सा आ गया। उसने घूर कर उस युवक की तरफ देखा और चिप्स का पैकेट अपनी तरफ सरका कर अपने पर्स के ऊपर रख दिया।
युवक कुछ देर तक एकदम सन्न रह गया। फिर जब उसकी नजर अनन्या के पर्स पर पड़ी, तो वह मुस्कुराने लगा।
कुछ देर बाद उसने फिर से चिप्स के पैकेट में हाथ डाला और सारी चिप्स निकाल लिए।युवक ने अनन्या की तरफ चिप्स बढ़ाकर पूछा, आप खाएंगी? अनन्या गुस्से में वहां से चली गई। कुछ ही देर में ट्रेन आ गई। ट्रेन में बैठते ही अनन्या ने जैसे ही पर्स खोला, उसने देखा, उसके चिप्स का पैकेट अभी पर्स में पड़ा हुआ है। अनन्या सिर पटक कर बैठे गई, यानी वह चिप्स चोर नहीं था। वह तो अपनी चिप्स भी उससे बांटने को तैयार था।