दरवाजे पर दस्तक हुई तो मां ने दरवाजा खोला, आ गया तू, चल हाथ मुंह धोकर कपड़े बदल ले, साथ में खाना खाते हैं। आज तेरी पसंद की सब्जी बनाई है।
तेरे बाबूजी और मैंने अभी तक खाना नहीं खाया।
मां ने कहा।
सुनील ने कहा, "अरे मां, क्यों तुझे चारों ने बताया नहीं क्या? आज उसके दोस्त की पार्टी है और हमें वही जाना है"। मां शांत रही, चारु सीढ़ियों से नीचे आ रही थी, उसे इस बात का डर था कि कहीं मां बोल ना दे कि चारों में कुछ नहीं बोला।
मां चारों को देख चुकी थी, भूलने की बीमारी हो गई है। चलो तुम जाओ तैयार हो जाओ, मैं और तुम्हारे बाबूजी आराम से खाना खा लेंगे।
सुनील हंसने लगा और बोला कि आपको भी बीमारी हो गई । माने असमंजस में पूछा, "मुझे भी ?" सुनील ने कहा, "हां चारु की मां को भी यह बीमारी है, जब भी उसके भाई भाभी को कहीं जाना होता है, तो मा भूल जाती है और फिर चारु को बता कर दुखी होती है।
मां ने बेटी आंखों से चारु को देखा। चारू शर्मिंदा थी,क्योंकि उसकी मां भी ऐसे ही भूलने की बीमारी का शिकार होती थी, बीमार ना होते हुए भी बीमार थी।