एक बार एक महात्मा बाजार से होकर गुजर रहे थे। रास्ते में एक व्यक्ति खजूर भेज रहा था। उस महात्मा के मन में विचार आया कि खजूर लेनी चाहिए। उन्होंने अपने मन को समझाया और वहां से चल दिए। किंतु महात्मा पूरी रात भर सो नहीं पाए।
वह विवश होकर जंगल में गए और जितना बड़ा लकड़ी का गट्ठर उठा सकते थे, उन्होंने उठाया, महात्मा ने अपने मन से कहा कि यदि मुझे खजूर खाने हैं, तो यह बोझ उठाना ही पड़ेगा।
महात्मा, थोड़ी दूर चलते, फिर गिर जाते, फिर चलते और गिरते। उनमें एक कट्ठा उठाने की हिम्मत नहीं थी, लेकिन उन्होंने लकड़ी के भारी-भारी तो कट्टर उठाए हुए थे।
दो ढाई मील की यात्रा पूरी करके वह शहर पहुंचे और उन लकड़ियों को बेचकर जो पैसे मिले, उससे खजूर खरीदने निकल पड़े। खजूर सामने देखकर महात्मा का मन बड़ा प्रसन्न हुआ।
महात्मा ने उन पैसों से खजूर खरीदें, लेकिन महात्मा ने अपने मन से कहा कि आज तूने खजूर मांगा है, कल फिर कोई और इच्छा करेगा। कल अच्छे-अच्छे कपड़े मांगेगा..... तब तो मैं पूरी तरह से तेरा गुलाम ही हो जाऊंगा।
सामने से एक मुसाफिर आ रहा था।महात्मा ने उस मुसाफिर को बुलाकर सारे खजूर उसे दे दिए और फिर से अपने काम में लग गए।