पुरंदर खुश था। उसने सफलतापूर्वक सूर्य देव के पुत्र को धोखा देकर अपने पुत्र के जीवन की रक्षा कर ली थी। उसे अपनी दिव्य शक्ति का एहसास था और इस घटना ने उसकी शक्ति को और हवा दी थी। बुद्धिमान लोग जानते हैं कि अनियंत्रित शक्ति विवेक को दूषित कर देता है।
व्यक्ति के पास अधिकार जितने अधिक होते हैं, उसमें अहंकार की उतनी ही अधिक होती है। किसी भी अन्य देवता की तुलना में यह बात पुरंदर पर सबसे अधिक लागू होती थी।
पुरंदर के मन से देव लोक का शासक होने का विचार कभी निकलता ही नहीं था। यही कारण था कि देवताओं के स्वामी के इर्द-गिर्द अहंकार और घर का बाहरी वातावरण सदैव विद्यमान रहता था। एक दिन पुरंदर अपने दरबार के दैनिक कार्यों में व्यस्त था। सभी देवताओं के गुरु बृहस्पति वहां आ पहुंचे।
राजाओं के दरबार में अपने गुरु के सम्मान में खड़े होकर उन्हें प्रणाम करने की पुरानी परंपरा थी। बृहस्पति के आगमन पर भी यही हुआ। इंद्र सभा में उपस्थित सभी देवता उन्हें देख खड़े हो गए, और सब ने प्रस्तुति को प्रणाम किया, परंतु कुर्दार अपने गुरु के प्रवेश से अनवगत रहा ।
उसने खड़े होने की आवश्यकता नहीं समझी और ना ही बृहस्पति का स्वागत किया। आनंद की पुरंदर ने ऐसा जान बूझकर नहीं किया था, परंतु इससे बृहस्पति के सम्मान को ठेस अवश्य पहुंची थी। बृहस्पति कुछ पल प्रतीक्षा करते रहे कि इंदिरा अपनी भूल सुधार लेगा, परंतु पुरंदर भूल तो तब सुधार था जब उसे भूल का आभास होता।
पुरंदर बृहस्पति ने कहा, क्या तुम राजा होने की मूलभूत नियम और संस्कार भूल गए हो? मैं भीतर आया तो समस्त देवगढ़ खड़े हो गए, परंतु तुमने मेरी और देखने की भी आवश्यकता नहीं समझी? तुम ऐसा दुस्साहस कब से करने लगे हो? ओह गुरुदेव ! पुरंदर ने कहा, मैं क्षमा चाहता हूं।मैं अपने मंत्री के साथ एक आवश्यक विषय पर चर्चा कर रहा था।
मैंने आपको भीतर आते नहीं देखा।"व्यक्ति में फूल मारने का एहसास होना चाहिए", देव गुरु बोले, इसके लिए अधिक उदारता की आवश्यकता नहीं होती। भूल करना अनुचित नहीं है, किंतु उसे स्वीकार ना करना अवश्य गलत है। बस पति ने तीखे स्वर में कहा।
गुरुदेव, मुझे लगता है कि आप इस बात का कुछ ज्यादा ही तूल दे रहे हैं "पुरंदर न चाहते हुए भी कहीं बैठा।आपको पता ही है कि देवलोक के राजा के पास कितना काम होता है और इतना कार्य संभालना बच्चों का खेल नहीं है।
बहुत हुआ। बस पति ने बंदर को ठोकते हुए ऊंचे स्वर में कहा।
"देवलोक में पहले से ही, मैं तुम्हारे अहंकार की बहुत सी कहानियां सुन चुका हूं,उसमें एक और मत जोड़ो ऐसा लगता है कि तुम अपने आज की देखभाल करने के लिए काफी बुद्धिमान हो गए हो और अब तुम्हें छोड़कर जाने में बहुत प्रसन्नता होगी।
मैं आज से देव गुरु के दायित्व का त्याग करता हूं। अब तुमने अपने लिए कोई नया ग्रुप चुन सकते हो, जो तुम्हारे जैसे अशिष्ट और अविवेकी शिष्य को चल सके।
बृहस्पति को पुरंदर के व्यवहार से बहुत ठेस पहुंची थी। वह अपने आने का कारण बताए बिना ही पैर भटकते हुए इंद्र की राजसभा से बाहर निकल गए।
बृहस्पति को पुरंदर के व्यवहार से बहुत ठेस पहुंची थी। वह अपने आने का कारण बताए बिना ही पैर भटकते हुए इंद्र की राजसभा से बाहर निकल गए।
इतना होने पर भी अहंकारी पुरंदर ने अपनी भूल पर खेद व्यक्त नहीं किया। उसने नाराज होकर जाते हुए अपने ग्रुप को मनाने या शांत करने का भी प्रयास नहीं किया। गुरु बृहस्पति के राज्यसभा से चले जाने के बाद सुरेंद्र को लगा की प्रस्तुति उससे मिलने किस प्रयोजन से आए थे।
दरअसल, देवता और असुर सदा से ही एक दूसरे के शत्रु थे और उनके बीच संघर्ष होता रहता था। हाल में,असुरों के खेमे में देवताओं के साथ एक युद्ध की तैयारी चल रही थी। देव गुरु बृहस्पति यही सूचना पुरंदर को देने आए थे । परंतु पुरंदर के लिए अब रणनीति बनाने में देर हो चुकी थी, क्योंकि बृहस्पति को देवताओं का साथ छोड़कर जा चुके थे।