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एक बाड़ा था. बाड़े में तेरह किराएदार रहते थे. मकान मालिक चौधरी साहब पास ही एक बंगले में रहते थे.
एक बाड़ा था. बाड़े में तेरह किराएदार रहते थे. मकान मालिक चौधरी साहब पास ही एक बंगले में रहते थे.

एक नए किराएदार आए. वे डिप्टी कलेक्टर थे. उनके आते ही उनका इतिहास भी मोहल्ले में आ गया था. वे इसके पहले ग्वालियर में थे. वहां दफ़्तर की लेडी टाइपिस्ट को लेकर कुछ मामला हुआ था. वे साल भर सस्पेंड रहे थे. यह मामला अख़बार में भी छपा था. मामला रफ़ा-दफ़ा हो गया और उनका तबादला इस शहर में हो गया.


डिप्टी साहब के इस मकान में आने के पहले ही उनके विभाग का एक आदमी मोहल्ले में आकर कह गया था कि यह बहुत बदचलन, चरित्रहीन आदमी है. जहां रहा, वहीं इसने बदमाशी की. यह बात सारे तेरह किराएदारों में फैल गई. किराएदार आपस में कहते,‘यह शरीफ़ आदमियों का मोहल्ला है. यहां ऐसा आदमी रहने आ रहा है. चौधरी साहब ने इस आदमी को मकान देकर अच्छा नहीं किया.’ कोई कहता,‘बहू-बेटियां सबके घर में हैं. यहां ऐसा दुराचारी आदमी रहने आ रहा है. भला शरीफ़ आदमी यहां कैसे रहेंगे?’ डिप्टी साहब को मालूम था कि मेरे बारे में ख़बर इधर पहुंच चुकी है. वे यह भी जानते थे कि यहां सब लोग मुझसे नफ़रत करते हैं. मुझे बदमाश मानते हैं. वे इस माहौल में अड़चन महसूस करते थे. वे हीनता की भावना से ग्रस्त थे. नीचा सिर किए आते-जाते थे. किसी से उनकी दुआ-सलाम नहीं होती थी.


इधर मोहल्ले के लोग आपस में कहते थे,‘शरीफ़ों के मोहल्ले में यह बदचलन आ बसा है.’ डिप्टी साहब का सिर्फ़ मुझसे बोलचाल का संबंध स्थापित हो गया था. मेरा परिवार नहीं था. मैं अकेला रहता था. डिप्टी साहब कभी-कभी मेरे पास आकर बैठ जाते. वे अकेले रहते थे. परिवार नहीं लाए थे. एक दिन उन्होंने मुझसे कहा,‘ये जो मिस्टर दास हैं, ये रेलवे के दूसरे पुल के पास एक औरत के पास जाते हैं. बहुत बदचलन औरत है वह.’ दूसरे दिन मैंने देखा, उनकी गर्दन थोड़ी-सी उठी है.


मोहल्ले के लोग आपस में कहते थे,‘शरीफ़ों के मोहल्ले में यह बदचलन जाने कहां से आ गया.’ दो-तीन दिन बाद डिप्टी साहब ने मुझसे कहा,‘ये जो मिसेज़ चोपड़ा हैं, इनका इतिहास आपको मालूम है? जानते हैं इनकी शादी कैसे हुई? तीन आदमी इनसे फंसे थे. इनका पेट फूल गया. बाकी दो शादीशुदा थे. चोपड़ा को इनसे शादी करनी पड़ी.’ दूसरे दिन डिप्टी साहब का सिर थोड़ा और ऊंचा हो गया.


हालांकि मोहल्ले वाले अभी भी कह रहे थे,‘शरीफ़ों के मोहल्ले में कैसा बदचलन आदमी आ बसा है.’ तीन-चार दिन बाद फिर डिप्टी साहब ने कहा,‘श्रीवास्तव साहब की लड़की बहुत बिगड़ गई है. ग्रीन होटल में पकड़ी गई थी एक आदमी के साथ.’ डिप्टी साहब का सिर और ऊंचा हुआ.


मोहल्ले वाले अभी भी कह रहे थे,‘शरीफ़ों के मोहल्ले में देखो यह कहां का बदचलन आ गया है.’ तीन-चार दिन बाद डिप्टी साहब ने कहा,‘ये जो पांडे साहब हैं, अपने बड़े भाई की बीवी से फंसे हैं. सिविल लाइंस में रहता है इनका बड़ा भाई.’ उस दिन डिप्टी साहब का सिर और ऊंचा हो गया था.


मोहल्ले के लोग अभी भी कहते थे.‘शरीफ़ों के मोहल्ले में यह बदचलन कहां से आ गया.’ डिप्टी साहब ने मोहल्ले में लगभग हर एक के बारे में कुछ पता लगा लिया था. मैं नहीं कह सकता कि यह सब सच था या उनका गढ़ा हुआ. आदमी वे उस्ताद थे. ऊंचे कलाकार. हर बार जब वे किसी की बदचलनी की ख़बर देते, उनका सिर और ऊंचा हो जाता.


अब डिप्टी साहब का सिर पूरा तन गया था. चाल में अकड़ आ गई थी. लोगों से दुआ सलाम होने लगी थी. कुछ बात भी कर लेते थे.


एक दिन मैंने कहा,‘बीवी-बच्चों को ले आइए न. अकेले तो तकलीफ़ होती होगी.’ डिप्टी साहब ने कहा,‘अरे साहब, शरीफ़ों के मोहल्ले में मकान मिले तभी तो लाऊंगा बीवी-बच्चों को.’

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