सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Fir Kon tha wo Part 2


फिर कौन था वो?: भाग 2

पिछले भाग में आपने पढ़ा
मीता और प्रशांत की नई-नई शादी हुई है और मीता प्रशांत को बहुत प्यार करती है.
चाहता तो प्रशांत भी बहुत है मीता को, पर शायद उस तरह अभिव्यक्त नहीं कर पाता, जैसा कि मीता चाहती है. मीता महसूस करती है कि प्रशांत का व्यवहार उसके प्रति रूखा होता जा रहा है.
इसी बीच एक इंटरव्यू देने गई मीता अपनी सहेली के साथ खाना खाने एक होटल में पहुंचती है और वहां प्रशांत को एक महिला के साथ बैठा देखती है.
उसकी आंखों के आगे अंधेरा छाने लगता है...अब आगे



किसी तरह से ख़ुद को संभालते हुए मीता ने उन दोनों की ओर दोबारा नज़र डाली. शक़ की कोई गुंजाइश ही नहीं बची. प्रशांत के साथ बैठी महिला तो नुपूर ही है. तो ये वजह है इनके रूखेपन की. फिर लौट तो नहीं आई ये प्रशांत के जीवन में. अभी जाकर पूछती हूं. नहीं...नहीं, यहां तमाशा करना ठीक नहीं होगा. देखूं तो भला ये लोग क्या करते हैं? ये सारी बातें दिमाग़ में घूमती रहीं. और आंखों से आंसू बह निकले मीता के. उसने पर्स से तुरंत अपना मोबाइल निकाला और वहीं से उनकी तस्वीर ले ली. ओह, पूजा आती ही होगी. वो मुझे आंसुओं में डूबा न देख ले, भला उसे क्यों मेरे निजी जीवन की जानकारी मिले? उसने जल्दी से रुमाल निकालकर आंसू पोंछे, ख़ुद को संयत किया और वापस अपनी टेबल पर आकर बैठ गई. मन में तूफ़ान उठ रहा है, ज़िंदगी तबाह होने को आई है और इसे पूजा से छुपाते हुए लंच करना होगा. चेहरे पर कहीं वो मेरा भाव न पढ़ लें. कोई बहाना बनाकर निकल भी तो नहीं सकती...कम से कम खाना तो खाना ही होगा. खाना खाते ही घर निकल जाऊंगी. शाम को प्रशांत के लौटने पर ही सारी बातें करूंगी.


जैसे ही वेटर खाना रखने आया मीता ने उससे बिल लाने को कहा और बिल पे भी कर दिया. दो मिनट ही गुज़रे होंगे कि पूजा आ गई. ‘‘अरे वाह, तुमने तो सारी तैयारी कर रखी है. बड़ी ज़ोरों की भूख लगी है यार,’’ पूजा ने सामान के नाम पर मौजूद अपने एकमात्र बैग के ऊपर अपना पर्स रखते हुए कहा. ‘‘हां, मैं भी बस तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी. जल्दी-जल्दी खाना खाते हैं...’’ ‘‘जल्दी-जल्दी क्यों? मेरे पास तो अभी बहुत वक़्त है.’’ ‘‘अरे तुम्हारे जाने के बाद प्रशांत का फ़ोन आया था. हमारे कुछ रिश्तेदार चार-साढ़े चार बजे तक आ रहे हैं. देखो न पौने तीन बज रहे हैं. मुझे घर जाकर उनके आवभगत की थोड़ी तैयारी भी तो करनी होगी,’’ मीता ने संयमित तरीक़े से अपने जल्दी जाने की भूमिका बांधी. ‘‘अरे, तुम्हारे रिश्तेदार तो आने के पहले बड़ा कम नोटिस पीरियड देते हैं.’’ ‘‘हो जाता है कभी-कभी और मैं कौन-सा अभी नौकरी कर रही हूं. हो जाएगा मैनेज.’’ खाना खाते-खाते दोनों बातें करते रहे और मीता की नज़रें बार-बार उस कोने पर पड़ती रही, जहां प्रशांत और नुपूर बैठे थे. बड़ी मुश्क़िल से जज़्बातों को रोके वो ख़ुद को संभालती रही. ‘‘तुम चाहो तो घर चलो, अभी तुम्हारी ट्रेन आने में वक़्त है,’’ मीता वहां से तुरंत उठना चाहती थी इसलिए आख़िरी कौर मुंह में लेते हुए उसने औपचारिकता निभाई. ‘‘नहीं-नहीं यार. वैसे ही तुम्हारे यहां मेहमान आ रहे हैं. मैं सीधे स्टेशन जाऊंगी, क्लॉक रूम में सामान रखूंगी और आसपास के मार्केट से थोड़ी शॉपिंग करूंगी. तब तक ट्रेन आने का समय भी हो जाएगा.’’


‘‘तो निकलें...? ’’ ‘‘पर बिल?’’ ‘‘मैंने पे कर दिया है.’’ ‘‘ये तो ग़लत है...’’ ‘‘क्यूं भला? भई, हमारे शहर में आई हो तो ट्रीट तो हमें ही देनी चाहिए और ऐसा ही सोच रही हो तो चलो वेटर की टिप तुम दे दो,’’ मीता को ख़ुद पर अचरज हुआ कि ऐसी परिस्थितियों में वो ख़ुद को इतना बनावटी भी बनाए रख सकती है.


पूजा ने विदा ली और मीता ने सीधे घर का रुख़ किया. घर पर घुसते ही अपने आंसुओं के सैलाब को रोक पाना उसके बस में न रहा. फूट-फूट कर रोती रही. फिर मन हुआ क्यूं न प्रशांत को फ़ोन लगाऊं और पूछूं कहां हो? फिर मन ने ही कहा, जब उसे परवाह नहीं और अब भी नुपूर के साथ घूमता-फिरता है तो फ़ोन लगाने से भी क्या फ़ायदा? यूं लगा जैसे पल भर में प्रशांत फिर अजनबी हो गया है. नहीं रहेगी वो प्रशांत के साथ...वह उठी और सामान पैक करने के लिए बैग निकालने लगी. बिना बताए ही चली जाऊंगी. मैसेज कर दूंगी बस. उन्हें भी तो समझे कि उनकी मनमानी नहीं चलेगी. यदि इतने पाक़-साफ़ हैं और नुपूर से ही मिलना था तो बताकर मिलते.


वो अल्मारी के ऊपर रखे बैग निकालने के लिए स्टूल पर चढ़ी ही थी कि डोरबेल बज गई. दरवाज़ा खोलने के लिए उसने अपने आंसू पोंछे, मुंह धोया और पोंछने के लिए टॉवल हाथ में ली ही थी कि बेल दोबारा बज गई. ‘‘आ तो रही हूं...कौन है?’’ हाथ में टॉवल लिए हुए लगभग चीखते हुए उसने दरवाज़ा खोला. ‘‘अरे इतनी नाराज़गी से क्यों बोल रही हो?’’ सामने प्रशांत थे.


मन तो हुआ हाथ की हाथ की टॉवेल उनके मुंह पर दन्न से दे मारे और कहे कि तुम कौन होते हो ये पूछनेवाले? धोख़ेबाज़ कहीं के. पर उसने कुछ नहीं कहा और पलट गई. ‘‘अरे तुम्हें ख़ुशी नहीं हुई मुझे घर जल्दी आया देखकर?’’ प्रशांत ने पूछा. उसने इस बात का भी कोई जवाब नहीं दिया.


‘‘क्या हुआ मीता? इंटरव्यू अच्छा नहीं हुआ?’’ ‘‘इंटरव्यू तो ठीक ही हुआ. सिरदर्द हो रहा है.’’ मीता ने बात को टालते हुए कहा. ‘‘तुम क्या अभी लौटी हो? चाय बनाऊं तुम्हारे लिए?’’ ‘‘नहीं मैं बना लूंगी.’’


‘‘तो मेरी भी बना लो. फिर बताना कि इंटरव्यू कैसा हुआ. पिछले तीन-चार दिन से तुमसे ठीक से बात ही नहीं कर पाया. आज हमारा प्रोजेक्ट अप्रूव हो गया है. फिर मैं जल्दी आ गया. सोचा सुबह नहीं तो शाम को सही, हम डिनर बाहर करेंगे.’’ मीता ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और चाय बनाने किचन में चली गई और प्रशांत चेंज करने. मीता ने चाय छानी और ट्रे में अपना मोबाइल भी रखा. उस पर सुबह रेस्तरां में खींची हुई नुपूर और प्रशांत की फ़ोटो डिस्प्ले थी.


चाय के कप के साथ मीता ने मोबाइल प्रशांत की ओर बढ़ाया और प्रश्नवाचक नज़रें उसपर गड़ा दीं? ग़ुस्से से तमतमाया मीता का चेहरा और मोबाइल में प्रशांत-नुपूर की फ़ोटो देखकर एक पल को तो प्रशांत सकपका गए. फिर उन्होंने चाय का कप उठाया और मोबाइल मीता को वापस थमाते हुए बोले,‘‘तो ये है तुम्हारी नाराज़गी का कारण? पर जब तुम लंच के लिए उसी रेस्तरां में आई थीं तो सीधे मेरी ओर क्यों नहीं आईं?’’ ‘‘मैं बेकार का तमाशा खड़ा नहीं करना चाहती थी.’’


‘‘ये कहो कि तुम्हारा मुझपर से भरोसा डिग गया था. दरअसल मुझे भी पता नहीं था कि आज ऐसा हो जाएगा. यूएसए से जो हमारी टीम आनेवाली थी, उसमें चार लोग थे और उनमें से एक नुपूर भी थी. न तो मुझे इस बात की जानकारी थी और ना ही नुपूर को. प्रेज़ेंटेशन के बाद हम सबको लंच पर साथ ही जाना था, पर कोई काम निकल आने की वजह से टीम हेड ने हमारे सीईओ के साथ ऑफ़िस में ही लंच किया और दूसरे दो मेम्बर्स ने कहा कि वे भारत आए हैं तो यहां से शॉपिंग करने में ज़्यादा रुचि लेंगे. वो मार्केट निकल गए. नितिन प्रोजेक्ट के दूसरे डॉक्युमेंट्स तैयार कर रहा था और मुझपर नुपूर को लंच कराने का काम आ गया. फिर मेरे और उसके बारे में तो मैं तुम्हें बता ही चुका हूं. थोड़ी दिलचस्पी थी यह जानने में कि अब वो कैसी है, कैसा है उसका परिवार? इसलिए जाने से मना भी नहीं किया. फिर इसी बात को लेकर मुझे मन में गिल्ट भी हुआ तो नुपूर को ऑफ़िस छोड़ा और बॉस से परमिशन लेकर जल्दी घर चला आया, ताकि गिल्ट थोड़ी तो दूर हो जाए.’’


‘‘कहानी तो नहीं बना रहे?’’ मीता को भरोसा तो हो रहा था प्रशांत की बात पर. ‘‘वैसे तो तुम्हें मेरी बात पर भरोसा होना चाहिए, लेकिन यदि नहीं है तो नितिन से बात करा दूं?’’ ‘‘नहीं-नहीं.’’


‘‘तो तुम्हारा शुबहा दूर हुआ या अब भी नाराज़ ही रहोगी? बाहर चलें ना रात को?’’ मीता को अपनी ओर खींचते हुए प्रशांत ने पूछा. मीता ने सिर हिलाकर मौन हामी दी और प्रशांत के क़रीब चली आई. दोबारा डोरबेल बजी. मीता ने दरवाज़ा खोला तो देखा सामने उसकी पड़ोसन सिमरन है. ‘‘यार थोड़ी चीनी मिलेगी क्या? मैं अमन से नज़र बचाकर आई हूं. कल सोचा था मंगा लूंगी, पर भूल गई.’’ एक ख़ाली कटोरी उसकी ओर बढ़ाते हुए सिमरन ने कहा. मीता कटोरी लेकर चीनी लाने किचन में गई और लौटते हुए उसकी आंखें प्रशांत से जा टकराईं. वो मीता की ओर देखकर यूं मुस्कुराए, जैसे कह रहे हों,‘देखो फिर आ गई न सिमरन हमेशा की तरह.’ मीता भी हौले से मुस्कुरा दी और सिमरन को चीनी की कटोरी थमा दी.


‘‘ओह, हां 15 दिन बाद करवाचौथ है, याद तो है ना? तुम्हारी तो पहली होगी. तुम मेरे साथ ही पूजा कर लेना.’’ सिमरन ने चहकते हुए कहा. ‘‘हां, मुझे तो पूजा कैसे होती है ये भी नहीं पता और मम्मी जी भी नहीं आ सकेंगी, क्योंकि पापा की तबियत कुछ ठीक नहीं है. तुम्हें ही सब बताना होगा सिमरन.’’ ‘‘हां, हां. चिंता मत करो. मैं सब बता दूंगी, पर अभी चलूं चाय बनानी है.’’ और सिमरन चली गई.


दूसरे दिन ऑफ़िस से लौटे तो प्रशांत थके हुए नज़र आ रहे थे. ‘‘अरे प्रेज़ेंटेशन तो कल था, पर तुम तो आज ज़्यादा थके नज़र आ रहे हो.’’ मीता उन्हें देखते ही बोली. ‘‘हां, क्योंकि परेशानी तो आज आई है.’’ ‘‘क्या परेशानी?’’ ‘‘मुझे कल ही यूएसए के लिए रवाना होना है. दो हफ़्तों के लिए जाना होगा.’’ ‘‘क्यों? यूं अचानक? नुपूर के साथ?’’ ‘‘कम ऑन मीता. नुपूर के साथ क्यों? वो तो यहीं है. महीने भर की छुट्टी ले रखी है उसने. तब तक तो मैं वहां से लौट भी आऊंगा. उससे मिलना इत्तफ़ाक था और इससे ज़्यादा कुछ नहीं.’’


‘‘तो फिर यूं अचानक क्यों जाना पड़ेगा?’’ ‘‘जाना तो नितिन को था, लेकिन कल उसकी मां की तबियत अचानक ख़राब हो गई. हार्ट अटैक आया है. अब वो तो जा नहीं सकता इसलिए लास्ट मोमेंट पर मुझे भेजा जा रहा है.’’ ‘‘पर मेरी तो पहली करवाचौथ होगी, क्या तुम नहीं रहोगे उस दिन? मां भी नहीं आ पा रही हैं...तो क्या मैं अकेली रहूंगी?’’ लगभग रुआंसी हो आई थी उसकी आवाज़. ‘‘क्या कर सकता हूं? नौकरी तो करनी ही है, कोई अपने मन से थोड़े ही जा रहा हूं.’’ ‘‘पर चाहे जो हो प्रशांत...करवाचौथ तक लौट आना. मैं अकेले नहीं मनाना चाहती ये दिन.’’ ‘‘मैं कोशिश करूंगा मीता, पर कुछ चीज़ों पर अपना बस नहीं चलता.’’ फिर मीता और प्रशांत ने जल्दी-जल्दी प्रशांत का सामान पैक किया, क्योंकि फ़्लाइट अगले दिन सुबह 11 बजे की थी. मीता एयरपोर्ट तक प्रशांत को छोड़ने गई.


‘‘प्रशांत...प्लीज़ कोशिश करना कि करवाचौथ तक आ जाओ. मैं तुम्हें बहुत मिस करूंगी. टेक केयर.’’ ...औैर प्रशांत चला गया. घर लौटी तो जैसे घर मीता को खाने दौड़ रहा था. बालकनी में खड़े होकर मीता यही सोच रही थी कि जब प्रशांत पास होते हैं तो मैं कुछ न कुछ शिकायत करती रहती हूं, लेकिन जब वे नहीं होते तो कितना प्यार आता है उनपर. अब वो लौटेंगे तो पक्का शिकायत करना छोड़ दूंगी. अपने मोबाइल की रिंग सुनकर मीता की तंद्रा टूटी. उसी कंपनी से कॉल था, जहां वो कुछ दिन पहले इंटरव्यू देने गई थी. उसका सलेक्शन हो गया था और उसे दो दिन बाद ही जॉइन करना था. मीता बहुत ख़ुश थी. मन हुआ कि तुरंत प्रशांत को ये ख़बर दे, पर उनतक अभी तो ये मैसेज पहुंच ही नहीं सकता. फिर भी मीता ने प्रशांत को ई मेल लिखकर इस बात की सूचना भेज दी. फिर जल्दी से सिमरन के घर गई और उसे भी यह बात बताई. ‘‘प्रशांत की क्या प्रतिक्रिया है?’’ सिमरन ने पूछा.


‘‘उन्हें तो अभी पता ही नहीं है. उन्हें अभी ही तो एयरपोर्ट छोड़कर आ रही हूं. दो सप्ताह के लिए यूएसए गए हैं वो आज ही.’’
‘‘अरे हमें बिना बताए?’’
‘‘कल रात को ही तो पता चला और आज ये चले भी गए.’’
‘‘करवाचौथ तक तो आ जाएंगे ना?’’
‘‘कह तो रहे थे कि मुश्क़िल है, पर मैंने तो बहुत बार कहा है उनसे कि कोशिश ज़रूर करना.’’
‘‘तुम लोगों की पहली करवाचौथ है तो देखना वो ज़रूर आ जाएंगे.’’
‘‘क़ाश ऐसा ही हो. मैं उनके बिना पहली करवाचौथ नहीं मनाना चाहती सिमरन.’’


फिर सब्ज़ियों के दाम से लेकर घर के काम तक उन्होंने ढेर सारी बातें की और मीता घर लौट आई. डसिमरन से बात कर के वो कुछ बेहतर महसूस कर रही थी.
दो दिन बाद ऑफ़िस जॉइन करना था. वो थोड़ी आश्वस्त थी, कि कम से कम ऑफ़िस जॉइन करने बाद ये समय आसानी से निकल जाएगा वरना प्रशांत के बिना रहना अब उसे बहुत मुश्क़िल लग रहा था. अगले दिन जब प्रशांत का फ़ोन आया तो उसने अपने सलेक्शन की बात बताई और फिर दोहरा दिया कि चाहे जो हो तुम्हें करवाचौथ तक लौटना ही होगा. प्र्रशांत ने भी कहा कि कोशिश तो वो पूरी करेगा. फिर उसके दिन जल्दी गुज़रने लगे और हर शाम प्रशांत से बात तो हो ही जाती थी. करवाचौथ से दो दिन पहले उसने प्रशांत से पूछा,
‘‘प्रशांत,
आ जाओगे ना?’’ ‘‘कोशिश तो कर रहा हूं. टिकट भी करवाई है, पर काम ख़त्म होता नहीं दिख रहा.’’
‘‘मेरी बहुत इच्छा है कि तुम रहो उस दिन.’’
‘‘आई नो. पर यदि प्यार से इस तरह बार-बार बुलाती रहीं तो फिर तो मुझे उड़कर ही आना पड़ेगा,’’ प्रशांत ने किस स्मित मुस्कान के साथ ये बात कही होगी,
मीता मन ही मन महसूस कर रही थी. ‘‘अच्छा, अब मज़ाक नहीं. ध्यान से सुनों यदि मैं न पहुंच सकूं तो तुम पूजा कर लेना. फिर मुझसे वेबकैम से बात कर लेना और खाना खा लेना.’’
‘‘ना...तुम आ जाओ.’’
‘‘ओके, आई विल ट्राय.’’



अगले दिन उसने प्रशांत को फ़ोन मिलाया पर मिला नहीं तो वो समझ गई कि प्रशांत यहां आने के लिए कहीं रास्ते में होंगे. ईमेल चेक किया तो प्रशांत का कोई मैसेज नहीं था. उसे लग रहा था कि प्रशांत उसे सरप्राइज़ देंगे अचानक आकर. अगले दिन करवाचौथ थी तो मीता बहुत अच्छे से तैयार होकर ऑफ़िस गई. शाम को घर आकर वो बहुत अच्छे से तैयार हुई. प्रशांत को फिर फ़ोन मिलाया, पर आउट ऑफ़ कवरेज एरिया का मैसेज सुनाई दिया. सिमरन ने पहले ही कह दिया था कि वो आठ बजे तक तैयार होकर मीता के पास आ जाएगी. फिर दोनों मिलकर पूजा कर लेंगे. अभी वो पूजा का सामान लगा ही रही थी कि डोरबेल बजी. दरवाज़ा खोला तो सामने प्रशांत को देखकर वो उनसे लिपट ही गई.

‘‘अरे, अरे ये क्या है? दरवाज़ा तो बंद कर लो.’’ ‘‘मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता.’’ ‘‘दूसरों को पड़ सकता है.’’ ‘‘मुझे परवाह नहीं. अच्छा चलो जल्दी से फ्रेश हो लो. तब तक मैं पूजा का समान लगाती हूं. फिर पूजा कर के चांद देखकर साथ ही खाना खाएंगे,’’ प्रशांत के हाथ से उनका सामान लेते हुए मीता ने कहा. प्रशांत अंदर गए और शूज़ उतारने लगे. इतने में दोबारा डोरबेल बजी. ‘‘सिमरन होगी. प्रशांत, तुम जल्दी नहा लो.’’ मीता ने दरवाज़ा खोला. सिमरन ही थी.

‘‘पता है, प्रशांत आ गए हैं,’’ मीता ने चहकते हुए कहा. ‘‘वो तो तुम्हारा चेहरा देखकर ही पता चल रहा है. चलो, पूजा कर लें. मैंने अमन से कह दिया है कि जाओ छत पर और चांद आए तो बता देना.’’ सिमरन को अपने कपड़े लेकर प्रशांत बाथरूम की ओर जाते हुए दिखे. उसने हाथ उठाकर उनको अभिवादन किया और प्रशांत ने मुस्कुराकर जवाब दिया. तभी फ़ोन की घंटी बजी. मीता ने दौड़कर फ़ोन उठाया.

‘‘क्या बात कर रहे हो? फ़्लाइट डिले हो गई...कल आओगे? ...पर तुम...तुम तो यहीं हो! प्रशांत...प्रशांत तुम मुझे दो मिनट बाद फ़ोन करो.’’ ‘‘क्या हुआ.’’ ‘‘प्रशांत का फ़ोन है. कह रहे हैं उनकी फ़्लाइट यूं तो आज रात आठ बजे पहुंचनेवाली थी, पर डिले हो गई है और वो कल सुबह आठ बजे तक आ पाएंगे,’’ कांपते हुए मीता एक सांस में कह गई. ‘‘तो वो कौन है?’’ सिमरन चीखी. दोनों बाथरूम की ओर दौड़े... बाथरूम की लाइट जल रही थी, नल चल रहा था. उन दोनों ने पूरा घर छान लिया पर वहां कोई नहीं था!!!

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक दिन अचानक हिंदी कहानी, Hindi Kahani Ek Din Achanak

एक दिन अचानक दीदी के पत्र ने सारे राज खोल दिए थे. अब समझ में आया क्यों दीदी ने लिखा था कि जिंदगी में कभी किसी को अपनी कठपुतली मत बनाना और न ही कभी खुद किसी की कठपुतली बनना. Hindi Kahani Ek Din Achanak लता दीदी की आत्महत्या की खबर ने मुझे अंदर तक हिला दिया था क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. फिर मुझे एक दिन दीदी का वह पत्र मिला जिस ने सारे राज खोल दिए और मुझे परेशानी व असमंजस में डाल दिया कि क्या दीदी की आत्महत्या को मैं यों ही व्यर्थ जाने दूं? मैं बालकनी में पड़ी कुरसी पर चुपचाप बैठा था. जाने क्यों मन उदास था, जबकि लता दीदी को गुजरे अब 1 माह से अधिक हो गया है. दीदी की याद आती है तो जैसे यादों की बरात मन के लंबे रास्ते पर निकल पड़ती है. जिस दिन यह खबर मिली कि ‘लता ने आत्महत्या कर ली,’ सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बात सच भी हो सकती है. क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. शादी के बाद, उन के पहले 3-4 साल अच्छे बीते. शरद जीजाजी और दीदी दोनों भोपाल में कार्यरत थे. जीजाजी बैंक में सहायक प्रबंधक हैं. दीदी शादी के पहले से ही सूचना एवं प्रसार कार्यालय में स्टैनोग्राफर थीं.

Hindi Family Story Big Brother Part 1 to 3

  Hindi kahani big brother बड़े भैया-भाग 1: स्मिता अपने भाई से कौन सी बात कहने से डर रही थी जब एक दिन अचानक स्मिता ससुराल को छोड़ कर बड़े भैया के घर आ गई, तब भैया की अनुभवी आंखें सबकुछ समझ गईं. अश्विनी कुमार भटनागर बड़े भैया ने घूर कर देखा तो स्मिता सिकुड़ गई. कितनी कठिनाई से इतने दिनों तक रटा हुआ संवाद बोल पाई थी. अब बोल कर भी लग रहा था कि कुछ नहीं बोली थी. बड़े भैया से आंख मिला कर कोई बोले, ऐसा साहस घर में किसी का न था. ‘‘क्या बोला तू ने? जरा फिर से कहना,’’ बड़े भैया ने गंभीरता से कहा. ‘‘कह तो दिया एक बार,’’ स्मिता का स्वर लड़खड़ा गया. ‘‘कोई बात नहीं,’’ बड़े भैया ने संतुलित स्वर में कहा, ‘‘एक बार फिर से कह. अकसर दूसरी बार कहने से अर्थ बदल जाता है.’’ स्मिता ने नीचे देखते हुए कहा, ‘‘मुझे अनिमेष से शादी करनी है.’’ ‘‘यह अनिमेष वही है न, जो कुछ दिनों पहले यहां आया था?’’ बड़े भैया ने पूछा. ‘‘जी.’’ ‘‘और वह बंगाली है?’’ बड़े भैया ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए पूछा. ‘‘जी,’’ स्मिता ने धीमे स्वर में उत्तर दिया. ‘‘और हम लोग, जिस में तू भी शामिल है, शुद्ध शाकाहारी हैं. वह बंगाली तो अवश्य ही

Maa Ki Shaadi मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था?

मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? समीर की मृत्यु के बाद मीरा के जीवन का एकमात्र मकसद था समीरा को सुखद भविष्य देना. लेकिन मीरा नहीं जानती थी कि समीरा भी अपनी मां की खुशियों को नए पंख देना चाहती थी. संध्या समीर और मैं ने, परिवारों के विरोध के बावजूद प्रेमविवाह किया था. एकदूसरे को पा कर हम बेहद खुश थे. समीर बैंक मैनेजर थे. बेहद हंसमुख एवं मिलनसार स्वभाव के थे. मेरे हर काम में दिलचस्पी तो लेते ही थे, हर संभव मदद भी करते थे, यहां तक कि मेरे कालेज संबंधी कामों में भी पूरी मदद करते थे. कई बार तो उन के उपयोगी टिप्स से मेरे लेक्चर में नई जान आ जाती थी. शादी के 4 वर्षों बाद मैं ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया. उस के नामकरण के लिए मैं ने समीरा नाम सुझाया. समीर और मीरा की समीरा. समीर प्रफुल्लित होते हुए बोले, ‘‘यार, तुम ने तो बहुत बढि़या नामकरण कर दिया. जैसे यह हम दोनों का रूप है उसी तरह इस के नाम में हम दोनों का नाम भी समाहित है.’’ समीरा को प्यार से हम सोमू पुकारते, उस के जन्म के बाद मैं ने दोनों परिवारों मे