नहीं भगवान ने इंसान को ऐसा बनाया है,
नापाक इरादों का जमघट इंसान ने,
अपने मस्तिष्क में ख़ुद बनाया है,
ऊपर बैठा वह स्वयं की रचना पर,
लज्जित हो रहा होगा,
कहां त्रुटि कर दिया मैंने विचार कर रहा होगा,
मिटाकर सारे संसार को मैं स्थापित पुनः कर दूं,
और इंसान को बनाने में त्रुटि हो गई हो,
तो तराश कर उसे ठीक मैं कर दूं,
या दुनिया में स्त्रियों का जन्म ही बंद कर दूं,
किंतु चीखें धरा से कान में जब गूंजीं,
भगवान को ध्यान तब आया,
यहाँ ना केवल स्त्रियां, बचपन भी असुरक्षित है,
भेड़ियों का है बड़ा जमघट,
हैवानियत से अपनी सबको डराया है,
कैसे करुं नियंत्रण बड़ी जटिल समस्या है,
व्यस्त हैं प्रभु ढूंढ़ने में तरक़ीब कोई,
जिससे इंसान को बदल पाएं,
इंतज़ार लम्बा है किंतु उम्मीद,
पर ही तो ज़माना टिका है,
काश भगवान कोई चमत्कार कर पाएं,
और इंसान के नापाक इरादों को बदल पाएं,
किंतु डर लगता है कि भगवान भी,
कहीं हिम्मत ना हार जाएं,
राक्षसों से तो विजयी हो गए थे,
इंसानों से कहीं मात ना खा जाए।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)