इश्क़ का रोग भला कैसे पलेगा मुझ से
क़त्ल होता ही नहीं यार अना का मुझ से
~प्रखर मालवीय कान्हा
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
~मिर्ज़ा ग़ालिब
इश्क़ का रोग तो विर्से में मिला था मुझ को
दिल धड़कता हुआ सीने में मिला था मुझ को
~भारत भूषण पन्त
रोग ऐसे भी ग़म-ए-यार से लग जाते हैं
दर से उठते हैं तो दीवार से लग जाते हैं
~अहमद फ़राज़
इश्क़ का रोग उन के बस का नहीं
दूर से वो सलाम करते हैं
~
रईस नारवी
घटे तो चैन नहीं है बढ़े तो चैन नहीं
हमें लगा है ये क्या रोग कोई पहचाने
~जिगर बरेलवी
ताक़-ए-जाँ में तेरे हिज्र के रोग संभाल दिए
उस के बाद जो ग़म आए फिर हँस के टाल दिए
~शहनाज़ नूर
हिज्र बना आज़ार सफ़र कैसे कटता
इश्क़ के रोग हज़ार सफ़र कैसे कटता
~अली अकबर मंसूर
रोग ही रोग हैं जिस ओर नज़र जाती है
फिर भटकता हूँ फ़क़त मौत मुझे भाती है
~ज़ाहिद डार
इश्क़ का रोग कि दोनों से छुपाया न गया
हम थे सौदाई तो कुछ वो भी दिवाने निकले
~कुमार पाशी
इश्क़ का रोग लगा है कई बरसों से मुझे
किस लिए मुझ को ये फिर दुनिया दवा देती है
~अम्बर जोशी
क्या कहूँ तुम से मैं कि क्या है इश्क़
जान का रोग है बला है इश्क़
~मीर तक़ी मीर
हुज़ूर छोड़िए हमें हज़ार और रोग हैं
हुज़ूर जाइए कि हम बहुत ग़रीब लोग हैं
~अहमद फ़राज़
घटे तो चैन नहीं है बढ़े तो चैन नहीं
हमें लगा है ये क्या रोग कोई पहचाने
~जिगर बरेलवी
दिल में हो फ़क़त तुम ही तुम आँखों पे न जाओ
आँखों को तो है रोग परेशाँ-नज़री का
~हफ़ीज़ होशियारपुरी
न तू बंदों से है राज़ी न बंदे तुझ से राज़ी हैं
ख़ुदाई रोग है परवरदिगारा हम न कहते थे
~ज़ीशान साजिद
इश्क़ आसाँ है मगर रोग है दीवानों का
बार-ए-ग़म यूँही बहुत है उसे दो-चंद न कर
~नामी अंसारी
साहिल-ए-मर्ग पे रफ़्ता रफ़्ता ले आया
तन्हाई का रोग भी अच्छा दुश्मन है
~अहमद ज़फ़र
इश्क़ में पहले तो बीमार बना देते हैं
फिर पलटते ही नहीं रोग लगाने वाले
~ज़िया ज़मीर
इश्क़ का रोग उन के बस का नहीं
दूर से वो सलाम करते हैं
~रईस नारवी