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Aaj ke Top 4 Shayari






अहद-ए-इंसाफ़ आ रहा है 'मुनीर'
ज़ुल्म दाएम हुआ नहीं करता
- मुनीर नियाज़ी



दुनिया में हम रहे तो कई दिन पे इस तरह
दुश्मन के घर में जैसे कोई मेहमां रहे
- क़ाएम चांदपुरी


किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में
मिरे नसीब में तुम भी नहीं ख़ुदा भी नहीं
- अख़्तर सईद ख़ान


इक ज़माना था कि सब एक जगह रहते थे
और अब कोई कहीं कोई कहीं रहता है
- अहमद मुश्ताक़






2) 'आरज़ू' पर शायराना अल्फ़ाज़...

किसी चीज को पाने, देखने या महसूस करने की ललक ही आरज़ू या ख़्वाहिश है। इसी ललक को जब शायराना रंग मिलता है तो हुस्न और इश्क़ भी अपने भी रंग बिखेरने लगते हैं। पेश है 'आरज़ू' पर शायरों के अल्फ़ाज़-



मिरी अपनी और उस की आरज़ू में फ़र्क़ ये था
मुझे बस वो उसे सारा ज़माना चाहिए था
- बुशरा एजाज़


नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़


न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
- बशीर बद्र


इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद
- कैफ़ी आज़मी


मुझ को ये आरज़ू वो उठाएँ नक़ाब ख़ुद
उन को ये इंतिज़ार तक़ाज़ा करे कोई
- असरार-उल-हक़ मजाज़


तुम्हारी याद में जीने की आरज़ू है अभी
कुछ अपना हाल सँभालूँ अगर इजाज़त हो
- जौन एलिया


मुझे ये डर है तिरी आरज़ू न मिट जाए
बहुत दिनों से तबीअत मिरी उदास नहीं
- नासिर काज़मी


तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली
मिरी दास्ताँ तिरी ज़ुल्फ़ है जो बिखर बिखर के सँवर गई
- बशीर बद्र


मुझे ये डर है तिरी आरज़ू न मिट जाए
बहुत दिनों से तबीअत मिरी उदास नहीं
- नासिर काज़मी


तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली
मिरी दास्ताँ तिरी ज़ुल्फ़ है जो बिखर बिखर के सँवर गई
- बशीर बद्र


बहाने और भी होते जो ज़िंदगी के लिए
हम एक बार तिरी आरज़ू भी खो देते
- मजरूह सुल्तानपुरी


ख़्वाब, उम्मीद, तमन्नाएँ, तअल्लुक़, रिश्ते
जान ले लेते हैं आख़िर ये सहारे सारे
- इमरान-उल-हक़ चौहान


डरता हूँ देख कर दिल-ए-बे-आरज़ू को मैं
सुनसान घर ये क्यूँ न हो मेहमान तो गया
- दाग़ देहलवी


बाद मरने के भी छोड़ी न रिफ़ाक़त मेरी
मेरी तुर्बत से लगी बैठी है हसरत मेरी
- अमीर मीनाई


होती कहाँ है दिल से जुदा दिल की आरज़ू
जाता कहाँ है शम्अ को परवाना छोड़ कर
- जलील मानिकपूरी


दिल में वो भीड़ है कि ज़रा भी नहीं जगह
आप आइए मगर कोई अरमाँ निकाल के
- जलील मानिकपूरी

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