स्मति गंध
रायपुर की फ्लाइट लेने के बाद से ही गोपाल का सीना जीरों से धड़कने लगा था।रघु उसकी व्यग्रता समझ रहा था। बापा का मन बदलने की नीयत से उसने कहा-वाहबापा,जीएम की कुर्सी पे बैठोगे अब तो तुम। हम छोटे-मोटे लोगों को भी एकाध बारअपने कैबिन में बिठा के चाय-नाश्ता तो कम से कम करा हीदेना। क्या पता फिर इतनेबड़े आफिस में घुसने मिले न इमिले।गोपाल ने भी नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा -बहुत झेल लिया तुझे। अब रायपुर पहुंचा दे रहा हूं। अब तू जाने,तेरा काम जाने।
सड़क झाप लोगों की मेरे केबिन में कोई जगह नहीं। -अच्छा.मैं सड़क-छाप। और तुमकिस जमींदार की औलाद हो.बताना ज़रा। रघु झट से बोला। और दोनों अपनी जमींदारी केदिन याद कर हंस पड़े।गोपाल और रघु का बड़ा भाई, दोनों गहरे दोस्त थे। दोनों बस्ती किनारे क ० तालाबपर अपने-अपने पिता के साथ मछली पकड़ने जाया करते थे। पिता जाल फैला के दूसरेकाम करने चले जाते।र् दोनों बच्चे घंटो वहीं रुककर मछलियों फंसने का इंतजारकरते और शाम तक जितनी मछलियां इकट्ठी होती उन्हें थैले में भर जाल समेट अपनेघर लौट जाते। कभी-कभी रघु भी अपने भाई के साथ आ जाया करता था। तालाब से कुछ हीदूरी पर एक आलीशान घर था। दोनों दोस्त अधिकतर समय उस घर के बच्चों को बालकनीमें तरह -तरह के खिलौनों से खेलते देखते। उनकी मां ढीच-बीच में बाहर आतीं।बच्चों से बात केरतीं। चाय का कप पकड़े कुछ देर आस-पास देखती फिर वही कुर्सीपर बैठ किताब पढ़ने लगतीं। कभी-कभार उनका ध्यान लगभग नंगे बदन,घुटनों तक पानीमें डूबे उन गरीब बच्चों पर भी जाता। ठे एकटक उन्हें देखती और शायद उनका मनखराब हो जाता होगा तो ठे उठकर अंदर चली जातीं। रेशमी सफेद गाउन मं> वे किसीदेवी की प्रतिमा-सी नजर आतीं।
बस्ती केअभावग्रस्त माहौल में पले-बढ़े वे बच्चेउस परिठार को बड़ी हसरत से देखते। गोपाल की बड़ी ख्वाहिश थी कि एक बार उन्हेंपास से देखने और बात करने का मौका मिले। लू-ेकिन ऐसा हो पाने की कोई ठजह नहींथी। कम से कम गोपाल को तब ऐसा लगता था। उसे नहीं पता था कि उसकी नियति मेंक्या लिखा-बदा था।एक शाम तेज आंधी चली। मौसम अचानक बदल गया। माधो और गोपाल जल्दी-जल्दी अपने जालसमेट रहे थे। तभी अचानक उस परिवार की एक शाल उड़कर तालाब के पास की झाड़ी मेंअटक गया। गोपाल ने जाल माधो को थमाया और बड़े एहतियात से शाल झाड़ी से उतार ली।
माधो समझ गया कि अब गोपाल क्या कहेगा। -ठे तुझे गेट के अंदर भी न घुसने देंगे।शाल रखनी है तो रख,ठरना यहीं फेंक और चुपचाप घर चल। उसने गोपाल को समझाया। परगोपाल नहीं माना। उसने कहा-एक बार कोशिश करने से क्या जाता है। मुझे बस मैडमको पास से देखने का मन है।-छोड़ न गोपाल। ये पैसे ठाले लोग हैं। हम लोगों सेबात भी करना नहीं चाहते। क्यों जबरन उनके यहां जाकर अपना अपमान कराना। -बस एकबार यार। हमेशा की तरह गोपाल ने अपने दोस्त को राज#»०ी कर लिया और शाल को करीनेसे तह कर गेट के सामने जाकर खड़ा हो गया। गार्ड ने तल्खी से पूछा-क्या चाहिए।गोपाल ने फौरन नग्रता से कहा-भैया कुछ नहीं चाहिए। मैडम का शाल गिर गया थाआंधी से। वही देने आया हूं।
-ला,दे। मैं ऊपर पहुंचा दूंगा। तू जा। सरन साहबआगए तो मेरी नौकरी जाएगी।-मैडम को दे कर मैं बस दो मिनट में ही नीचे आ जाऊंगा।गाड्डर्ऊ ने गोपाल को भगाने की हर तरह से कोशिश की पर वह ज़िद पर अड़ा रहा। आखिरगर्ड ने मैडम को फोन लगा कर बताया कि एक बच्चा सरन साहब की शाल लाया है औरआपके ही हाथों में देने पर अड़ा है। मैडम ने दो मिनट के लिए बच्चे को ऊपर लेकरआने के लिए कह दिया। गोपाल की मनचाही मुराद पूरी हो गई। गार्ड उसे लिफ्ट की ओरले गया। अब गोपाल की हालत खराब होने लगी थी। घर अंदर से इतना शानदार था कि अबउसे उसमें रहने ठालों से मिलने की हिम्मत नहीं हो रही थी। उसने जैसे-तैसे अपनेआप को मजबूत किया। नौकर ने घर का दरवाजा खोला। मैडम बाहर आ८इं। गोपाल ठिठकके उन्हें देखता रह गया। सुंदरता के साथ रईसी क ० जो असर उनके चेहरे पर थाउसके कारण तो वे इस दुनिया की ही न लगीं उसे।
मैडम ने मुस्क्राकर उससेकहा-बेटा,तुम शाल लाए,उसके लिए तुम्हारा धन्यवाद,पर सरन साहब अब इसे नपहनेंगे। अगर तुम चाहो तो इसे ले जा सकते हो। -पर ये बिल्कुल गंदी नहीं हुईहै। मैंने इसे संभाल के उठाया है। अब मैडम एक छोटे-से बच्चे से क्या कहती किसरन साहब को गंदगी और गरीबों दोनों से बेहद नफरत है। बोलीं -प्लीज० इसे ले जाओऔर अब तुम भी जाओ। तभी अचानक मैडम का एक नौकर हाथ जोड़ के उनके कदमों में बैठगया। मैडम हड़बड़ा ग:ईं। उन्हें याद आया कि इसी शाल पर दाल के दो छींटे आ जानेपर सरन साहब ने इस बादर्ची को दो झापड़ रसीद कर दिए थे।-ले लीजिए मैडम प्लीज़।साहब की पसंद की शाल है,बादर्ची बोला। मैडम ने उसके खोफ को समझ चुपचाप शाल लेलिया।
गोपाल भी खुश हो गया। अब उसे लगा कि उसने एक बहुत अच्छा काम कियाहै। उसके अंदर की तांकत भी ठापस आ गई। उसने हंस कर मैडम से कहा -कभी आइए न शिवमंदिर। बहुत अच्छे भजन होते हैं ठहां। मैडम ने हां में सिर हिलाया और नौकर सेमंगवा कर मिठाई का एक डब्बा गोपाल को दिया। गोपाल ने मना तो खूब किया पर मैडमने प्यार से उसे कुछ यूं घूरा कि फौरन उसने डब्बा पकड़ लिया। गार्ड के साथगोपाल को नीचे भेज दिया गया। ठह तो नीचे चला गया लेकिन पूरी लॉबी में एकविचित्र-सी तेज गंध छोड़ गया। माया ने अपने नौकरों की तरफ हैरानी से देखा। वेतुरंत सक्रिय हो गए। सरन साहब के आने से पहले घर ठीक-ठाक कर लिया गया।ठहां गोपाल बहुत खुश था। माधो को सुनाने के लिए उसके पास बहुत-सी बातें थीं।
अबढजब कभी गोपाल तालाब किनारे से मैडम को देखता तो उसे बड़ा सुकून मिलता कि उसनेउनसे बात कर ली है और वे वाकई बड़ी भली महिला है।ठह पंद्रह अक्टूबर का दिन था। उस दिन मैडम यानी माया सरन की शादी की सालगिरहहोती थी। सरन साहब के रूखे स्वभाव के चलते उन्होंने इन सब बातों का ज़िक्र करनाछोड़ दिया था। लेकिन उस दिन मंझले बेटे हर्षदर्धन ने दोनों को आमने-सामने बधाईदे दी। सरन साहब ने किसी तरह का कोई उत्साह तो नहीं दिखाया अलबत्ता आफिस जातेसमय बोल गए कि शाम को बच्चों के साथ घूम-फिर आना। शापिंग क रोगफिल्म देखो।मज#0 करो। माया ने मुस्कुरा के उन्हें विदा किया और अपने रूम में चली ग/इं।दोनों छोटे बच्चे हर्षदर्धन और सुनयना जि+द पर अड़ गए कि मम्मी चलो न घूमने। परबड़े बेटे विश्ववर्धन ने जाने से साफ मना कर दिया। वह अपने पिता की हबह कॉपीथा।
माया का मन वैसे भी नहीं था,बच्चे की रुखाई से वे और चिढ़ गर्हई। उन्होंनेदोनों छोटे बच्चों से फिर कभी ले जाने का ठादा किया और आंख बंद कर लेट ग/इं।मन ही मन उन्होंने शाम को शिठ मंदिर जाने का निर्णय कर लिया था।शिठ मंदिर छोटा सा लेकिन शांतिपूर्ण था। अभी उन्हें पांच मिनट ही हुए होंगे किगोपाल अपने दोस्तों के साथ वहां पहुंच गया। उसके आते ही एक तेज बदबू का झोंकाभी आया। माया का मन घबरा गया लेकिन गोपाल मैडम को देखते ही वह लपक के उनके पासपहुंच गया। उसने धाराप्रठाह बातें शुरू कर डालीं। अपने सभी दोस्तों को उनसेमिलठाया। वह इतना चंचल बच्चा उन्होंन असली बाल गोपाल ही लगा। उनका मन भीतर तकउत्साह से भर गया। आखिर उन्होंने गोपाल के साथ उस गंध से भी नाता जोड़ लिया।उनका अच्छा दिन ठाकई अच्छा बीता।अब तो वे हर सोमवार को शिठ मंदिर आने लगीं। उनके नौकर डरते कि सरन साहब को पताचला तो दे बड़े नाराज होंगे। पर इन कुछ महीनों में मैडम को इतना खुश देखकर देभी खुश और चकित थे।
ठहां गोपाल और माया सरन में मां-बेटे की-सी घनिष्ठता बढ़तीजा रही थी। माया उसकी मेहनत के अलावा उसकी पढ़ाई-उसकी कापियां देखकर चकित थीं।तमाम अभावों के बीच बच्चा कितना योग्य था,वे एकदम हैरान थी।पर फिर एक दिन सरन साहब को जाने कैसे खबर हो ही गई। उन्होंने कड़क लहजे में बातसाफ कर दी कि माया को उस बस्ती के मंदिर में नहीं जाना है। सरन साहब के आफिसजाने के बाद माया खूब रो३ं। सालों से उानके जीवन में पसरा सन्नाटा उस बच्चेने अपनी वाचालता-अपने स्रेह से दूर कर दिया था। उनके खुद के परिवार,यहां तक कीबच्ों से भी उन्हें इतना प्यार न मिला था।
एक हर्षवर्धन ही उनकी चिंता करताथा पर उसका भी पूरा दिन स्कूल,कोचिंग.स्पोर्ट्स,हॉबी क्लास जैसी तय गतिविधियोंमें बीतता था। कुल मिलाकर ठे एकदम अकेलापन महसूस करती थीं।...पर हर औरत की तरह उनकी भी प्राथमिकता चूंकि उनका परिवार ही था। इसलिए उसदिन माया आखिरी बार मंदिर गई। वे गोपाल के घर भी ग८इं। उसके पूरे परिवार सेमिलीं। माया ने गोपाल के माता- पिता से कहा कि वे गोपाल की पढ़ाई-लिखाई कीव्यवसथा मिशनरी स्कूल में करना चाहती हैं। ठह जितना पढ़ना चाहेगा.वे लोग इसेपढ़ाएंगे। गोपाल और उसकी मां हैरानी से उनकी बात सुन रहे थे।
पिताजी जरूर थोड़ीना-नुकूर के बाद राज़ी हुए। गोपाल इस बात से अनजान था कि आज मैडम आखिरी बारउससे मिल रही हैं। ठह मंदिर तक उनके साथ आया। मंदिर में माया उसके पास बैठी।बैग से एक पैकेट निकालकर उसे दिया। गोपाल ने पूछा तो बोलीं-पहन के दिखा। फिटआता है या नहीं। नया पेंट-शर्ट लाई हूं तेरे लिए। नए कपड़े पहन वह सकुचाताउनके सामने आया। ठे बोलीं-ठाह,ये तो बिल्कुल तेरे नाप का है। कितना प्यारी लगरहा है ०तू। - मैं कहां से प्यारा लग सकता हूं। गोपाल ने धीरे से कहा। -बसतेरा रंग ही तो ज#रा सा दबा है.बाकी तो तू सच का बाल गोपाल है। कह कर उन्होंनेगोपाल को गले लगा लिया और रो पड़ीं। गोपाल को अब लगा कि आज कुछ और बात है। उसनेपूछा-मांजी.क्या बात हो गई। तब माया सरन ने सब कुछ उसके सामने रख दिया।
उससेठादा भू०णा लिया कि वह कभी उनकी चौखट ना लांघेघा। मां-बेटा गले लगकर खूब रोए।जाते-जाते माया ज़रा-सा ठहरीं। उनके मन में आया कि वे गोपाल से पूछ लें क्या,कि वह गंध उसके पास से क्यों आती है। उन्होंने पलट कर देखा। गोपाल डबडबाईआंखों से उन्हें देख रहा था फिर उस भोले बालक का दिल दुखाने का उनका जी नहुआ। वे वापस आ०इं,उसके सिर पर हाथ फेरा। बोलीं-बेटा,अपना और अपने परिठार काध्यान रखना। -आप भी मेरी मां है,आप भी तो बहुत प्यार करती हैं। पर आप आज मुझसेदूर जा रहीं हैं। हह झुककर उनके पैरों में बैठ गया। और रो पड़ा। माया नेउसके सिर पर हाथ रख आशीर्दाद दिया। बोलीं,बेटा मजबूर हूं और तेज़ क&दमों से आगेबढ़ ग/इं। उन्होंने आज बहुत कुछ गंवा दिया था।..
.गोपाल ने माया मां की मदद का पूरा सदुपयोग किया। सने कड़ी मेहनत से पढ़ाई की।दो साल में उसने सभी विषयों को अंग्रेजी में पढ़ना सीख लिया। उसकी विशेषयोग्यता को परखते हुए मिशनरी ठालों ने उसे आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली भेजदिया। इसी दौरान सरकार ने बस्ती खाली करवा दी। बस्तीवालों को शहर के दूसरे छोरपर मकान दिए गए। वहां गोपाल एक नामी संस्थान से मैनेजमेंट की की पढ़ाई कररहा था। तभी उसे एक बेहद बुरी खबर मिली। बस्ती और आस- पास के क्षेत्रों मेंफेली एक संक्रामक बिमारी ने अधिकतर को जकड़ लिया था।
गोपाल भागा-भागा वापस आया।लेकिन तब तक उसकी मां अपनी जान गंवा चुकी थीं। पिता जी और माधो सरकारी अस्पतालमें भर्ती थे। उनके भी बचने की उम्मीद ना के बराबर थी। दो दिन के संघर्ष केबाद वे भी चल बसे। गोपाल पूरी तरह टूट गया था। उसकी बड़ी तमन्ना थी कि अच्छीनौकरी पकड़ माता-पिता के साथ एक सम्मानजनक जिंदगी जिए लेकिन अचानक सब खत्म होगया। गोपाल के सभी अपने एक-एक कर उसे छोड़ गए। बस्ती के अधिकतर परिवारों का यहीहाल था।आखिर में माधो का छोटा भाई रघु ही उसके करीबियों में बाकी बचा था। वहभी अनाथ हो चुका था। गोपाल ने उसका हाथ थामा.पुत्र के फर्ज निभाए. कुछ बची- खुचीयादें समेटी,और बस्ती हमेशा के लिए छोड़ दी।
दिल्ली दापस लौटने से पहले एक बारमाया मां को देख लेने की हसरत से वह उनके घर के सामने पहुंचा। मां-बच्चों मेंसे कोई भी बालकनी में नजर नहीं आया। भारी मन से गोपाल रघु को साथ लेकर दिल्लीचला गया।...आज एक नामी कंपनी के जीएकी पद पर नियुक्त हो गोपाल वापस रायपुर आया है।मकसद सिर्फ एक ही है-माया मां से मिलना,कुछ बन कर मिलना। जब गार्ड उसे भगाएनहीं। सरन साहब को उससे नफरत न हो और माया मां फख्ध से उसे सबसे मिलठा सकें।नए घर में घुसते ही उसने रघु से कहा कि आधे घंटे में ठीक से तैयार हो जाए। वेमाया मां के घर जा रहे हैं। खुद उसने नया काले रंग का सूट पहना। आइने के सामनेखड़ा हुआ तो माया मां का प्यार भरा चेहरा सामने उभर आया-अच्छा तो दिख रहा है।सिर्फ रंग ही थोड़ा दबा हुआ है।
गोपाल की आंखें नम हो ग:इं।दे चमचमाती कार से सरन साहब के घर पहुंचे। गार्ड ने अदब से सलाम ठोका। गोपालने कहा- दादा माया मैडम से मिलना है।...माया मैडम,माया सरन मैडम...वो लोग तोचार-पाँच साल पहले ही यह घर बेच कर चले गए। मलहोत्रा जी ने यह मकान खरीद लियाहै।...कुछ पता है वे लोग कहां गए? ...वो तो साहब पता नहीं। गोपाल तो सिर्फमाया मां से मिलने ही रायपुर वापस आया था। दरना इस शहर से तो उसकी सिर्फ बुरीयादें ही जुड़ी थीं। अब वह यहां रहकर क्या करेगा। उसका मन खट्टा हो गया। लेकिनअब ऐसे ही वापस जाना भी संभव नहीं था। ज्वॉइन तो उसे करना ही था। उचाट मन सेवह आटफिस पहुंचा। शानदार केबिन में अपनी कुर्सी पर बैठ उसने माया मां का सालोंसे सहेजा एम लेटर ठाला पैन निकाला। पहला साइन उसी पैन से किया। भावुक मन रोनेको हो गया। उसे सूझ ही नहीं रहा था कि वह उन्हें कहां ढूंढे ।
वह इस बात सेअनजान था कि उसे माया मां से मिलाने का प्रबंध ऊपरठाले ने कर दिया है। गोपाल को बताया गया कि कंपनी में इंटर्नशिप के लिए कुछ युवाओं ने आवेदन कियाथा। चयनित लोगों को उससे मिलने भेजा जा रहा है। वह एक बार उनसे बातें कर तयकर दे कि किसे किस विभाग में भेजा जाए। उम्मीदवारों का आना प्रारंभ हुआ। दोयुदकों के बाद एक युवती उसके केबिन में आई। गोपाल ने उसकी फाइल हाथ में ली।नाम...सुनयना सरन..., पिता-स्व.सिद्धार्थ सरन। माता-श्रीमती माया सरन।
गोपालका दिल धक से रह गया। माया मां की बेटी...सुनयना। उसने अचंभित हो सुनयना की ओरदेखा तो पाया कि वह भी हैरानी से उनके पैन को देख रही है। दोनों की आंखेंमिलीं। सुनयना बोली...सर मेरी मां भी ऐसा ही पैन इस्तेमाल करती हैं। वही देखनेलगी थी।...आप कुछ पूछ रहे थे क्या? गोपाल की आंखें झरने लगीं। बोला...बेटा,येपैन तुम्हारी मां का ही है। मैं गोपाल...तुम्हें > शायद याद न होगा पर सालोंपहले तुम्हारी माताजी एक शिठ मंदिर जाया करती थीं एक बच्चे से मिलने। उनकाअहसानमंद वह बच्चा मैं ही हूं। मुझे उनसे मिलना है बेटा। मैं सिर्फ उनसे मिलनेही रायपुर वापस आया हूं।...अब हैरान-परेशान सुनयना रो पड़ी। उसे सब याद आ गया था।
बोली-मां अब वैसीबिल्कुल नहीं है,जेसी वह आपकी यादों में होगी। मां तो बस नाम के लिए ही जिंदाहै। न कुछ बोलती,न कभी हंसती। कुछ साल पहले शहर में एक बीमारी फैली। पापा औरमंझले भेया दोनों उसकी चपेट में आ गए और हमने उन्हें गंठा दिया। पापा और मम्मीके रिश्ते में तो हमेशा से ही दूरी रही लेकिन मंझले भेया मम्मी की जान हुआकरते थे। उनके सुख-दुख के साथी। उनका यूं चले जाना उन्हें पूरी तरह खत्म करगया। हमें लगा कि उस मकान को छोड़े बिना मम्मी का मन नहीं बदलेगा। इसीलिए हमदूसरे मकान में शिफ्ट हो गए। हालांकि इतने साल बीत जाने पर भी मम्मी वैसी कीवैसी ही हैं।...
गोपाल स्तब्ध-हताश सुनयना की बातें सुन रहा था। वह बोल पड़ा -माया मां जैसीनेकदिल महिला के साथ भगठान ने कुछ भी अच्छा नहीं किया। शाम को आफिस के बादमैं तुम्हारे घर चलूंगा छुटकी। एक बार उन्हें देख ही लूंगा तो मुझे सुकून मिलजाएगा।...जु०->रूर चलिए सर,क्या पता आपको देखकर ही ठे दोबारा जीवन में लौटसकें।...हर्षवर्धन की जगह मैं कहां से ले सकूंगा 5सुनयना,पर कोशिश तो जः#रूरकरूंगा।...अच्छा सुनयना,तुम मुझे अपने घर का पता दे घ्जाओ मैं कल सुबह आताहुं।...उस रात गोपाल की आंखों में नींद दूर-दूर तक नहंठी थी। रघु भी उसके साथ जागरहा था। गोपाल बेहद निराश था। उसे कहीं कोई उम्मीद की किरण नजर नहीं आ रही थी।अचानक उसके दिमाग में एक ख्याल आया। वह उठा।
अपनी यादों के पिटारे में से मांका बनाया तेल निकाला,जो ठे तालाब के कीड़े-मकोड़ो से बचाने के लिए मछली पकड़नेजाने से उसके पूरे बदन में लगाया करती थीं।
वह समझ गया था कि माया मां को वहगंध बुरी लगती है। हालांकि वह बोलती कुछ नहीं थीं। उसने ढेर सारा तेल अपनेपूरे बदन पर रगड़ लिया। रघु सब समझ गया। गोपाल बोला.रघु गंध आ रही है न। ...हांबापा। गोपाल लेट गया। वापस उठा। मुझे तो कम लग रही है। और ठापस ढेर सारा तेलहाथ में लेकर सिर से पैर तक रगड़ डाला।...रघु दुखी हो गया। बस करो न बापा।...नरे पगले। कल को मुझे कुछ हो गया तो तू कोई कसर छोड़ेगा क्या ।सुबह तय समय पर आठ बजे गोपाल माया मां के दरठाजे पर खड़ा था। उसने घंटी ढजाई।सुनयना ने सर के स्वागत की पूरी तैयारी कर रखी थी। उसने तुरंत दरवाजा खोला औरजो सामने देखा तो धक से रह गई। गोपाल खुले बदन,सिर्फ कमर से घुटने तक का कपड़ाबांधे सामने खड़ा था। उसके पूरे शरीर से तेज़ बदबू आ रही थी।...मां कोबुलाओ.गोपाल ने कहा। सुनयना चुपचाप जाकर मां को बुला लाई। माया मां मजबूरीमें बाहर निकलीं।
दूर से ही गोपाल के नमस्ते का जवाब दे वापस अपने कमरे मेंलौटग/इं। गोपाल और सुनयना दोनों रो पड़े। गोपाल बिना कुछ बोले सीढ़ियां उतरनेलगा।सुनयना वहीं जड़वत बैठ गई। पाँच मिनट बाद माया मां हड़बड़ात्मे हुए वापसआ2इं और लॉबी में इधर-उधर देखने के बाद तेजी से सीढ़ियों की ओर भागीं। उनकीयादों में बसी ठह गंध उनके दिल को छू गई थी। सुनयना को लगा अब तक तो सर वापसचले गए होंगे। वह भी उनके पीछे भागी। गोपाल गया नहीं था। नीचे की सीढ़ी पर बैठारो रहा था। माया सरन दो पल उसे एकटक देख्>ती रहीं फिर बोलीं-गोपाल। मेरा बालगोपाल। और गोपाल बालक की तरह अपनी मां से लिपट गया। कभी अलग न होने के लिए।