कमरे में मज़े की रौशनी हो
अच्छी सी कोई किताब देखूं
- मोहम्मद अल्वी
सच है एहसान का भी बोझ बहुत होता है
चार फूलों से दबी जाती है तुर्बत मेरी
- जलील मानिकपूरी
बारूद के बदले हाथों में आ जाए किताब तो अच्छा हो
ऐ काश हमारी आँखों का इक्कीसवाँ ख़्वाब तो अच्छा हो
- ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
तिरी तलाश में निकले तो इतनी दूर गए
कि हम से तय न हुए फ़ासले जुदाई के
- जुनैद हज़ीं लारी