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'इंसाफ़' पर कहे शायरों के अल्फ़ाज़


तुम्हारे शहर का इंसाफ़ है अजब इंसाफ़
इधर निगाह उधर ज़िंदगी बदलती है
- महबूब ख़िज़ां


रौशन घरों में बांट दी फिर रौशनी तमाम
इंसाफ़ ये हुआ है मिरी तीरगी के साथ
- माजिद अली काविश



मुंसिफ़ अगर बना है तो सब को गवारा रख
इंसाफ़ है तो मेरा फटा पैरहन भी ला
- जावेद शाहीन



अब उस के सामने इंसाफ़ का तराज़ू है
उन्हें कहें कि अदालत का एहतिराम करें
- रुख़्सार नाज़िमाबादी



अहद-ए-इंसाफ़ आ रहा है 'मुनीर'
ज़ुल्म दाएम हुआ नहीं करता
- मुनीर नियाज़ी



क्या क्या मुझे तुम कहते हो इंसाफ़ तो कीजे
ये हौसला मेरा है कि मैं कुछ नहीं कहता
- निज़ाम रामपुरी



मुंसिफ़ हो अगर तुम तो कब इंसाफ़ करोगे
मुजरिम हैं अगर हम तो सज़ा क्यूँ नहीं देते
- अहमद फ़राज़



हश्र में इंसाफ़ होगा बस यही सुनते रहो
कुछ यहाँ होता रहा है कुछ वहाँ हो जाएगा
- आग़ा हश्र काश्मीरी



कहता है यार जुर्म की पाते हो तुम सज़ा
इंसाफ़ अगर नहीं है तो बे-दाद भी नहीं
- बहराम जी



गंवाए बैठे हैं आंखों की रौशनी 'शाहिद'
जहां-पनाह का इंसाफ़ देखने वाले
- शाहिद मीर

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