प्याज़ दूनी दिन दूनी,
कीमत इसकी दिन दूनी।
प्याज़ तीया कुछ ना कीया
रोई जनता कुठ ना कीया
प्याज़ चौके खाली,
सबके चौके खाली।
प्याज़ पंजे गर्दन कस,
पंजे इसके गर्दन कस।
प्याज़ छक्के छूटे
सबके ठक्के छूटे
प्याज़ सत्ते सत्ता कांपी
इस चुनाव में सत्ता कांपी
प्याज़ अट्ठे कट्टम कट्टे
खाली बोरे खाली कट्टे
प्याज़ निम्मा किस्का जिम्मा
किसका जिम्मा किसका जिम्मा
प्याज़ धाम बढ़ गए दाम
बढ़ गए दाम बढ़ गए दाम
जिस प्याज़ को
हम समझते थे मामूली
उससे बहुत पीठे छूट गए
सेब, संतरा, बैगन, मूली।
प्याज़ बता दिया कि
जनता नेता सब
उसके बस में हैं आज
बहुत भाव खा रही है
इन दिनों प्याज़।
~अशोक चक्रधर