आई आँच जब नारी पर
तब तीर राम का छूटा था
गदाधारी की गदा ने कैसे
पापी की जंघा तोड़ा था
गौतम नानक की भूमि ने
क्या पुरूष जनना छोड़ दिया
सिंहों की इस पावन भूमि ने
क्या सिंह बनाना छोड़ दिया
उठो भरत के वंशजों
अब तुम्हारी बारी है
जमा हुई गिद्धों की टोली
आँच बहन पर आई है
मासूम हिरणी पर कोई
आँख अभी न उठने पाए
उजले दामन को कोई
मैला हाथ न छूने पाए
तोड़ जकड़ती जंजीरों को
खड्ग हाथ में लेना है
ख़ैर नही महिषासुर तेरी
हर नारी दुर्गा होना है
कसम खाते दूध की
अब हम सिंह बन जाएंगे
लहू बहाकर महिष का
हम धर्म भारती निभाएंगे
-विनोद यादव 'शहीद'