इंसानी अधिकारों को पहचान देने और उसके हक की लड़ाई को ताकत देने के लिए हर साल 10 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है। पूरी दुनिया में मानवता के खिलाफ हो रहे जुल्मों रोकने और उसके खिलाफ आवाज उठाने में इस दिवस की महत्वूपूर्ण भूमिका है।
रखते हैं जो औरों के लिए प्यार का जज्बा
वो लोग कभी टूट कर बिखरा नहीं करते
- अज्ञात
ख़ारिज इंसानियत से उस को समझो
इंसाँ का अगर नहीं है हमदर्द इंसान
- तिलोकचंद महरूम
क्या क्या ग़ुबार उठाए नज़र के फ़साद ने
इंसानियत की लौ कभी मद्धम न हो सकी
- आल-ए-अहमद सूरूर
जहाँ इंसानियत वहशत के हाथों ज़ब्ह होती हो
जहाँ तज़लील है जीना वहाँ बेहतर है मर जाना
- गुलज़ार देहलवी
प्यार की चाँदनी में खिलते हैं
दश्त-ए-इंसानियत के फूल हैं हम
- मसूद मैकश मुरादाबादी
उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा
- निदा फ़ाज़ली
सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं
जिस को देखा ही नहीं उस को ख़ुदा कहते हैं
- सुदर्शन फ़ाख़िर
इश्क़ इंसानियत से था उस को
हर तअ'स्सुब से मावरा था फ़िराक़
- हबीब जालिब
इंसानियत की तीरगी हो दूर इस लिए
क़ानून की किताब में जलता रहा हूँ में
- मजीद मैमन
कहाँ हर एक से इंसानियत का बार उठा
कि
ये बला भी तिरे आशिक़ों के सर आई
- फ़िराक़ गोरखपुरी
वो आदमी ही तो इंसानियत का दुश्मन है
जो कह रहा है कि इंसाँ है कौन मेरे सिवा
- शमीम करहानी
क़त्ल इंसानियत का करते हैं
भेड़िये आदमी की खालों में
- मुक़द्दस मालिक
कहाँ हर एक से इंसानियत का बार उठा
कि ये बला भी तिरे आशिक़ों के सर आई
- फ़िराक़ गोरखपुरी
आदमी का आदमी हर हाल में हमदर्द हो
इक तवज्जोह चाहिए इंसाँ को इंसाँ की तरफ़
- हफ़ीज़ जौनपुरी
मज़हबी बहस मैंने की ही नहीं
फ़ालतू अक़्ल मुझमें थी ही नहीं
- अकबर इलाहाबादी
नई मंज़िल नया जादू उजाला ही उजाला
दूर तक इंसानियत का बोल-बाला
- मोहम्मद अली असर