'तहज़ीब' पर कहे गये शेर...
जानवर में हया इंसाँ से ज़ियादा देखी
उल्टे बहने लगे तहज़ीब के धारे साहब
~नदीम सिरसीवी
ख़ुद अपने शहर की तहज़ीब भूल बैठे हैं
ये कौन लोग हैं और जाने कैसे बन के हैं
~शाहिद कमाल
माहौल की हो ताज़ा हवा तुझ को गवारा
दरकार है तहज़ीब को फिर तेरा सहारा
~जगन्नाथ आज़ाद
पहुँचा जहाँ भी लोग ये कहते हुए मिले
तहज़ीब अपने शहर की ऐसी मिटी कि बस
~इक़बाल उमर
हम अपने आप के क़ातिल बने हैं
ये किस तहज़ीब की जादूगरी है
~सोहन राही
आज के दौर में वीराने भी ता'मीर हुए
कल की तहज़ीब ख़ुदा जानिए क्या ठहरेगी
~शाज़ तमकनत
मेरी बहकी हुई बातों का बुरा मत मानो
मेरे एहसास को तहज़ीब कुचल देती है
~अख़्तर पयामी
पल पल बदलता रहता है तहज़ीब का मिज़ाज
लम्हों की दस्तरस में अजब सिलसिले हैं यार
~हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी
उर्दू जिसे कहते हैं तहज़ीब का चश्मा है
वो शख़्स मोहज़्ज़ब है जिस को ये ज़बाँ आई
~रविश सिद्दीक़ी
उन परिंदों ने भी एक एक शजर बाँध लिया
~क़ैसर-उल जाफ़री
चेहरे पढ़ना तो सभी सीख गए हैं लेकिन
कैसी तहज़ीब है अपनों को पराया कहिए
~फ़ैज़ुल हसन ख़्याल
उचटती आँखों से तहज़ीब का सफ़र कैसा
तू अपने-आप को तारीख़ के उधर ले जा
~मोहम्मद अली असर
शायद नई तहज़ीब की मेराज यही है
हक़-गो ही ज़माने में ख़ता-कार लगे है
~अहमद शाहिद ख़ाँ
तहज़ीब खंडरों में है कुछ पत्थरों में है
~अफ़ज़ल मिनहास
रौशनी का रंग जैसे कुछ समझ आता नहीं
शहर की तहज़ीब का रुख़ किस तरफ़ है क्या पता
~चन्द्रभान ख़याल
आज के दौर की तहज़ीब का पत्थर ले कर
एक दीवाने का सर फोड़ दिया बच्चों ने
~कँवल ज़ियाई