शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है
- बशीर बद्र
आता है यहां सब को बुलंदी से गिराना
वो लोग कहां हैं कि जो गिरतों को उठाएं
- अज्ञात
अपनी ही रवानी में बहता नज़र आता है
ये शहर बुलंदी से दरिया नज़र आता है
- इनाम नदीम
आसमां इतनी बुलंदी पे जो इतराता है
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है
- वसीम बरेलवी
ज़रा ये भी तो देखो हंसने वालो
कि मैं कितनी बुलंदी से गिरा हूं
- नूर क़ुरैशी
तुम उस को बुलंदी से गिराने में लगे हो
तुम उस को निगाहों से गिरा क्यूं नहीं देते
- सिराज फ़ैसल ख़ान
मैं एक ज़र्रा बुलंदी को छूने निकला था
हवा ने थम के ज़मीं पर गिरा दिया मुझ को
- नज़ीर बाक़री
जब बुलंदी पर पहुंच जाते हैं लोग
किस क़दर छोटे नज़र आते हैं लोग
- फ़ैज़ी निज़ाम पुरी
बुलंदी के लिए बस अपनी ही नज़रों से गिरना था
हमारी कम-नसीबी हम में कुछ ग़ैरत ज़ियादा थी
- राजेश रेड्डी
अपनी क़िस्मत का बुलंदी पे सितारा देखूं
ज़ुल्मत-ए-शब में यही एक नज़ारा देखू
ग़ुलाम मुर्तज़ा राह
इश्क़ में कौन बता सकता है
किस ने किस से सच बोला है
- अहमद मुश्ताक़
ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है बढ़ता है तो मिट जाता है
ख़ून फिर ख़ून है टपकेगा तो जम जाएगा
- साहिर लुधियानवी
रात को सोना न सोना सब बराबर हो गया
तुम न आए ख़्वाब में आंखों में ख़्वाब आया तो क्या
- जलील मानिकपूरी
रात तो वक़्त की पाबंद है ढल जाएगी
देखना ये है चराग़ों का सफ़र कितना है
- वसीम बरेलवी
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