लंबे प्रयास के दाद अग्नि ने इस बार सरकारी नौकरी पास कर किरानी की नौकरी पर नियुक्त हुआ था।उनके पिता एक प्रधानाध्यापक थे तथा बड़ा भाई प्ररंड विकास पदाधिकारी। बड़ा भाई दहेज विरोधी था।हमेशा कहा करता था कि दहेज स्त्रियों का हत्यारा है।लड़के दाले ही दहेज को समाज से समाप्त कर सकते हैं।अग्नि की नौकरी के दाद उसकी माता ने अपने पति से कहा कि उसकी विवाह के लिए अच्छी लड़की तलाशी जाय।
मनोहर बाबू की एक ही लड़की थी जो भौतिकी में स्नाकोत्तर थी तथा नेट उतीर्ण थी।मनोहर बाबू ने अपने जीवन की पूरी कमाई उसे पढ़ाने में खर्च कर दिया था।वे एक अबरख के कारखाने में मुंसी का काम किया करते थे।इन दिनों अबरख का काम नहीं चल रहा था कई मजदूरों की छंटनी हो गई थी।मनोहर बाबू पुराने कर्मचारी थे इसलिए वे आज भी काम कर रहे थे।पर वेतन नियमित नहीं मिलती थी।उनकी बेटी सुशीला व्यवहार से भी सुशील थी।माता की मृत्यु के बाद पिता ने बहुत ही प्रेम से उसका लालन-पालन किया था।समाज में उसके व्यवहार की काफी चर्चे थे।हाल ही में उसने एक कॉलेज ज्वाइन किया था।
अग्नि व सुशीला की शादी तय हुई।सुशीला कहा करती थी कि बाबूजी मैं दहेज देकर विवाह नहीं करूंगी।अपने मुझे पढ़ाया लिखाया क्या यह कम है? कई ढार तो दह यह कहते हुए रो पड़ती थी कि बाढूजी मेरी विदाह के बाद आप एकदम से अकेले पड़ जाएंगे।माँ भी नहीं है आपका जीदन-यापन कैसे होगा।अच्छा होगा कि मैं पराए घर जाऊँ ही नहीं।पिता कुछ बोल नहीं पाते थे। अग्नि द सुशीला की शादी तय हो गयी।अग्नि के बड़े भाई को तथा सुशीला को यह नहीं बताया गया कि शादी में दहेज की भी बात हुई है।
शहनाई बजने लगी बारात घर आ गयी थी।पंडित ने जब बताया की शादी की शुभ घड़ी बीती जा रही है दर को बुलाइये।सुशीला मंडप में आ गयी थी पर अग्नि अभी तक नहीं आया था।सुशीला की कानोकान खबर मिली कि बाबूजी ने दहेज के 0 लाख में 4 लाख नहीं दिए हैं।पहले तो सुशीला के आँखों मे आँसू छलक गए।पर वह अपनी आँसुओं को अपनी कमजोरी न बनाते हुए।सीधे दहाँ गयी जहाँ दराती ठहरी हुई थी।सुशुला अग्नि का हाथ पकड़ी और उसे मंडप तक ले आयी। तब तक कई लोग मंडप तक पहुँच गए थे।सुशीला गुस्साते हुए बोली जब आपका परिदार सम्पन्न है तो फिर दहेज की मांग क्यों रखे?दहेज को भिखारी लोग लेते हैं।अग्नि के बड़े भाई भी पहुँच चुके थे।उन्हें जब पता चला कि अग्नि की शादी में लेनदेन हुई है तो वे बहुत गुस्साए।उन्होंने दर-दधु को मंडप पर बैठाकर पंडित से शादी करवाने को कहा तथा भरी बरातियों के सामने घोषणा की कि मेंरे पिताजी ने जो रुपये दहेज के रूप में लिए हैं दह मैं दापस करूँगा।और यह भी घोषणा किये
कि आज के बाद से हमारे परिवार में ना दहेज ली जाएगी ना दी जाएगी।
बरातियों ने इस घोषणा का ताली बजाकर स्वागत किया।पंडितजी ने कहा कि मैं भी आज से यह घोषणा करता हूँ कि आज के बाद से मैं विवाह उसी जोड़े को करवाऊंगा जिसके अभिभावक हस्ताक्षर करके देंगे कि इन्होंने किसी भी तरह का कोई दहेज नहीं लिया है।तथा दक्षिणा स्वरूप मुझे जो भी देंगे उसी में संतुष्ट रहँगा।बरातियों ने भी प्रभावित होकर जलती हुई अग्नि के ऊपर अपने हाथ रखकर शपथ ली कि हमलोग भी आज से इस अग्नि में अपने लालच को जलाते हैं,दहेज को अपनी जीदन से भगाते हैं।
“सुशीला का प्रयास था रंग लाया* “बारातियों के सामने दहेज था शरमाया*
महेश"अमन"
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