Famous poem on gandhi ji. BY Dushyant Kumar दुगांधी जी पर दुष्यंत कुमार की कविता. Read more about shaheed diwas 2020, mahatma gandhi death date, dushyant kumar poem on Hindishayarih.
मैं फिर जनम लूँगा
फिर मैं
इसी जगह आऊँगा
उचटती निगाहों की भीड़ में
अभावों के बीच
लोगों की क्षत-विक्षत पीठ सहलाऊँगा
लँगड़ाकर चलते हुए पावों को
कंधा दूँगा
गिरी हुई पद-मर्दित पराजित विवशता को
बाँहों में उठाऊँगा ।
मैं फिर जनम लूँगा
फिर मैं
इसी जगह आऊँगा...
इन अनगिनत अनचीन्ही आवाज़ों में
कैसा दर्द है
कोई नहीं सुनता !
पर इन आवाज़ों को
और इन कराहों को
दुनिया सुने, मैं ये चाहूँगा !
मैं फिर जनम लूँगा
फिर मैं
इसी जगह आऊँगा ...
मेरी तो आदत है
रोशनी जहाँ भी हो
उसे खोज लाऊँगा
कातरता, चुप्पी या चीख़ें,
या हारे हुओं की खीज
जहाँ भी मिलेगी
उन्हें प्यार के सितार पर बजाऊँगा ।
मैं फिर जनम लूँगा
फिर मैं
इसी जगह आऊँगा...
जीवन ने कई बार उकसाकर
मुझे अनुल्लंघ्य सागरों में फेंका है
अगन-भट्ठियों में झोंका है,
मैंने वहाँ भी
ज्योति की मशाल प्राप्त करने के यत्न किए
बचने के नहीं,
तो क्या इन टटकी बंदूकों से डर जाऊँगा ?
फिर मैं
इसी जगह आऊँगा...
तुम मुझको दोषी ठहराओ
मैंने तुम्हारे सुनसान का गला घोंटा है
पर मैं गाऊँगा
चाहे इस प्रार्थना सभा में
तुम सब मुझ पर गोलियाँ चलाओ
मैं मर जाऊँगा
लेकिन मैं कल फिर जनम लूँगा
कल फिर आऊँगा ।