Makar Sankranti 2020, Hindh Shayari मकर संक्रांति 2020: 'पतंग' पर कहे गये शेर
मैं हूँ पतंग-ए-काग़ज़ी डोर है उस के हाथ में
चाहा इधर घटा दिया चाहा उधर बढ़ा दिया
~नज़ीर अकबराबादी
तिलिस्म-ए-होश-रुबा में पतंग उड़ती है
किसी अक़ब की हवा में पतंग उड़ती है
~ज़फ़र इक़बाल
पतंग उड़ाने से पहले ये जान लेना था
कि इस की असल है क्या और माहियत क्या है
~शहराम सर्मदी
दिल के किसी कोने में पड़े होंगे अब भी
एक खुला आकाश पतंगें डोर बहुत
~ज़ेब ग़ौरी
तुम दिया हो तो उन पतंगों को
कम से कम रौशनी में आने दो
~अम्मार इक़बाल
कहा मैं रात पतंगों को शम्अ के आगे
गिरो हो आँख में माशूक़ की ये क्या है अदब
~वली उज़लत
फिर पूछना कि कैसे भटकती है ज़िंदगी
पहले किसी पतंग की मानिंद कट के देख
~नज़ीर बाक़री
कई पतंग की सूरत ख़ला में डूब गया
वो जितना तेज़ था इतना ही ला-उबाली था
~फ़रहत क़ादरी
Makar Sankranti 2020 Hindi Patang shayari
कल पतंग उस ने जो बाज़ार से मँगवा भेजा
सादा माँझे का उसे माह ने गोला भेजा
~मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
कट गईं सारी पतंगें डोर से
चलती हैं कैसे हवाएँ ज़ोर से
~असलम हबीब
आज के टॉप 4 शेर
आज के टॉप 4 शेर
सब कुछ तो है क्या ढूंढ़ती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूं नहीं जाता
- निदा फ़ाज़ली
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएंगे हम तुम को ख़बर होते तक
- मिर्ज़ा ग़ालिब
वो ज़हर देता तो सब की निगह में आ जाता
सो ये किया कि मुझे वक़्त पे दवाएं न दीं
- अख़्तर नज़्मी
फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था
- अदीम हाशमी