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hindi shayari happy new year 2020: January shayari collection




hindi shayari happy new year 2020: January shayari collection

hindi shayari happy new year 2020: January shayari collection

जनवरी के महीने और नए साल पर शायराना अल्फ़ाज़...


सोलहवें ज़ीने पे सूरज था 'उबैद'
जनवरी की इक सलोनी शाम थी
- एजाज़ उबैद



यकुम जनवरी है नया साल है
दिसम्बर में पूछूँगा क्या हाल है
- अमीर क़ज़लबाश



जनवरी का महीना जो आ कर गया
फिर नए साल की इब्तिदाई कर गया
- हैदर बयाबानी



दीवारों पर नए कैलेंडर नए मनाज़िर होंगे
दौड़ी दौड़ी आई जनवरी बॉय दिसम्बर बाबा
- अब्दुर्रहीम नश्तर



ऐ जाते बरस तुझ को सौंपा ख़ुदा को
मुबारक मुबारक नया साल सब को
-मोहम्मद असदुल्लाह



न शब ओ रोज़ ही बदले हैं न हाल अच्छा है
किस बरहमन ने कहा था कि ये साल अच्छा है
-अहमद फ़राज़



सफ़र का एक नया सिलसिला बनाना है
अब आसमान तलक रास्ता बनाना है
- शहबाज़ ख़्वाजा



नए साल में पिछली नफ़रत भुला दें
चलो अपनी दुनिया को जन्नत बना दें
- अज्ञात



फिर आ गया है एक नया साल दोस्तो
इस बार भी किसी से दिसम्बर नहीं रुका
- अज्ञात



मुबारक मुबारक नया साल आया
ख़ुशी का समाँ सारी दुनिया पे छाया
- अख़्तर शीरानी




hindi shayari Anwar jalalpuri best sher collection in hindi shayari


गीता का उर्दू में अनुवाद करने वाले शायर अनवर जलालपुरी की ग़ज़लों से शेर




तुम अपने सामने की भीड़ से हो कर गुज़र जाओ
कि आगे वाले तो हरगिज़ न तुम को रास्ता देंगे



कोई पूछेगा जिस दिन वाक़ई ये ज़िंदगी क्या है
ज़मीं से एक मुट्ठी ख़ाक ले कर हम उड़ा देंगे



ज़ुल्फ़ को अब्र का टुकड़ा नहीं लिखा मैंने
आज तक कोई क़सीदा नहीं लिखा मैंने



मैंने लिख्खा है उसे मर्यम ओ सीता की तरह
जिस्म को उस के अजंता नहीं लिखा मैंने



तुम प्यार की सौग़ात लिए घर से तो निकलो
रस्ते में तुम्हें कोई भी दुश्मन न मिलेगा



सोते हैं बहुत चैन से वो जिन के घरों में
मिट्टी के अलावा कोई बर्तन न मिलेगा



न जाने क्यूं अधूरी ही मुझे तस्वीर जचती है
मैं काग़ज़ हाथ में लेकर फ़क़त चेहरा बनाता हूं



मिरी ख़्वाहिश का कोई घर ख़ुदा मालूम कब होगा
अभी तो ज़ेहन के पर्दे पे बस नक़्शा बनाता हूं



ग़लत कामों का अब माहौल आदी हो गया शायद
किसी भी वाक़ये पर कोई हंगामा नहीं होता



जो बा हिम्मत हैं दुनिया बस उन्हीं का नाम लेती है
छुपा कर ज़ेहन में बरसो मेरा ये तजरूबा रखना



गुलों के बीच में मानिन्द ख़ार मैं भी था
फ़क़ीर ही था मगर शानदार मैं भी था



अगर ख़ुशबू न निकले मेरे सपनों से तो क्या निकले
मेरे ख़्वाबों में अब भी तुम, तुम्हारी ज़ात बाक़ी है








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