मदद' पर शायरों के अल्फ़ाज़...
Help Shayari hindi shayari collection
किसी को कैसे बताएँ ज़रूरतें अपनी
मदद मिले न मिले आबरू तो जाती है
- वसीम बरेलवी
समुंदरों को भी हैरत हुई कि डूबते वक़्त
किसी को हम ने मदद के लिए पुकारा नहीं
- इफ़्तिख़ार आरिफ़
कुछ न कहने से भी छिन जाता है एजाज़-ए-सुख़न
ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है
- मुज़फ़्फ़र वारसी
हम चराग़ों की मदद करते रहे
और उधर सूरज बुझा डाला गया
- मनीश शुक्ला
तदबीर के दस्त-ए-रंगीं से तक़दीर दरख़्शाँ होती है
क़ुदरत भी मदद फ़रमाती है जब कोशिश-ए-इंसाँ होती है
- हफ़ीज़ बनारसी
शायद निकल ही आए कोई चारागर 'फ़िगार'
इक बार और देख सदा कर के शहर में
- अमर सिंह फ़िगार
सर पे तूफ़ान भी है सामने गिर्दाब भी है
मेरी हिम्मत कि वही कच्चा घड़ा है देखो
- अख़्तर होशियारपुरी
सर पर गिरे मकान का मलबा ही रख लिया
दुनिया के क़ीमती सर-ओ-सामान से गए
- आबिद वदूद
न कुछ सितम से तिरे आह आह करता हूँ
मैं अपने दिल की मदद गाह गाह करता हूँ
- शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शायद निकल ही आए कोई चारागर 'फ़िगार'
इक बार और देख सदा कर के शहर में
- अमर सिंह फ़िगार
मुझे मंज़ूर गर तर्क-ए-तअल्लुक़ है रज़ा तेरी
मगर टूटेगा रिश्ता दर्द का आहिस्ता आहिस्ता
- अहमद नदीम क़ासमी
शाख़-दर-शाख़ तिरी याद की हरियाली है
हम ने शादाब बहुत दिल का शजर रक्खा है
- सलीम फ़िगार
क़मर जलालाबादी की ग़ज़लों से चुनिंदा शेर...
qamar jalalabadi best shayari collection
गीतकार और शायर कमर जलालाबादी ने अपने सिनेमा के कैरियर में- फ़िल्म 'महुआ' का गीत ‘दोनों ने किया था प्यार मगर’, फ़िल्म ‘हावड़ा ब्रिज’ का गाना ‘आइए मेहरबान’ जैसे हिट गीत लिखे। 9 मार्च 1917 को पंजाब के अमृतसर के पास जलालाबाद में जन्मे क़मर जलालाबादी का असली नाम ओम प्रकाश भंडारी था लेकिन वो जाने गए 'क़मर' के नाम से ही। क़मर साहब बचपन से शायराना मिज़ाज के थे। काव्य प्रतिभा उनमें कूट-कूटकर भरी थी, लेकिन उनके घर-परिवार की तरफ़ से उन्हें कविताई करने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता था। क़मर थे कि 7 लाल की उम्र में ही उर्दू में कविता लिखने लगे थे। प्रस्तुत है क़मर जलालाबादी की ग़ज़लों से चुनिंदा अशआर-
आख़री हिचकी से पहले चारा-गर से पूछ लूँ
जो नज़र आता नहीं रिश्ता कहाँ ले जाएगा
कुछ तो है बात जो आती है क़ज़ा रुक रुक के
ज़िंदगी क़र्ज़ है क़िस्तों में अदा होती है
तेरे ख़्वाबों में मोहब्बत की दुहाई दूँगा
जब कोई और न होगा तो दिखाई दूँगा
जाती हुई मय्यत देख के भी वल्लाह तुम उठ कर आ न सके
दो चार क़दम तो दुश्मन भी तकलीफ़ गवारा करते हैं
जब तक न नज़र आओगे ऐसा करेंगे हम
हर रोज़ इक ख़ुदा को तराशा करेंगे हम
रफ़्ता रफ़्ता वो हमारे दिल के अरमाँ हो गए
पहले जाँ फिर जान-ए-जाँ फिर जान-ए-जानाँ हो गए
राह में उन से मुलाक़ात हो गई
जिस से डरते थे वही बात हो गई
चाहा तुझे तो ख़ुद से मोहब्बत सी हो गई
खोने के बाद मिल गई अपनी ख़बर मुझे
मिरे ख़ुदा मुझे थोड़ी सी ज़िंदगी दे दे
उदास मेरे जनाज़े से जा रहा है कोई
यारब तिरे करम से ये सौदा करेंगे हम
दुनिया में पी के ख़ुल्द में तौबा करेंगे हम
इश्क़ में उस ने जलाना ही नहीं सीखा कभी
आग दे जाएगा मुझ को ख़ुद धुआँ ले जाएगा
इक हसीन ला-जवाब देखा है
रात को आफ़्ताब देखा है
गोरा मुखड़ा ये सुर्ख़ गाल तिरे
चाँदनी में गुलाब देखा है
मैं ने कहा कि देते हैं दिल तुम भी लाओ दिल
कहने लगे कि ये तो तिजारत की बात है
मैं ने कहा कभी है सितम और कभी करम
कहने लगे कि ये तो तबीअ'त की बात है