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Hindi Best Ghazals Collection Of Javed Akhtar


Hindi Best Ghazals Collection Of Javed Akhtar : जावेद अख़्तर (17 जनवरी 1945-) शायर, फिल्मों के गीतकार और पटकथा लेखक हैं। उनका जन्म ग्वालियर में हुआ था। उनके वालिद जां निसार अख़्तर प्रसिद्ध प्रगतिशील कवि और वालिदा सफ़िया अख़्तर क़स्बा रुदौली, जिला बाराबंकी की एक उच्च शिक्षा प्राप्त महिला थीं। वह प्रगतिशील आंदोलन के एक और सितारे लोकप्रिय शायर मजाज़ के भांजे भी हैं। अपने दौर के प्रसिद्ध शायर मुज़्तर ख़ैराबादी जावेद जी के दादा थे। जावेद के काव्य संग्रह हैं : तरकश और लावा । उर्दू शायरी के गुलशन में रंग-रंग के जो फूल खिले हैं उसमें एक रंग जावेद अख़्तर का भी है। 'तरकश' और 'लावा' उनके काव्य संग्रह हैं। प्रस्तुत है जावेद अख़्तर की 3 चुनिंदा ग़ज़लें-


Hindi Best Ghazals Collection Of Javed Akhtar
Hindi Best Ghazals Collection Of Javed Akhtar 





ब-ज़ाहिर क्या है जो हासिल नहीं है
मगर ये तो मिरी मंज़िल नहीं है


ये तूदा रेत का है बीच दरिया
ये बह जाएगा ये साहिल नहीं है


बहुत आसान है पहचान उस की
अगर दुखता नहीं तो दिल नहीं है


मुसाफ़िर वो अजब है कारवाँ में
कि जो हमराह है शामिल नहीं है


बस इक मक़्तूल ही मक़्तूल कब है
बस इक क़ातिल ही तो क़ातिल नहीं है


कभी तो रात को तुम रात कह दो
ये काम इतना भी अब मुश्किल नहीं है


जब आईना कोई देखो इक अजनबी देखो
कहाँ पे लाई है तुम को ये ज़िंदगी देखो

Hindi Best Ghazals Collection Of Javed Akhtar 


मोहब्बतों में कहाँ अपने वास्ते फ़ुर्सत
जिसे भी चाहे वो चाहे मिरी ख़ुशी देखो


जो हो सके तो ज़ियादा ही चाहना मुझ को
कभी जो मेरी मोहब्बत में कुछ कमी देखो


जो दूर जाए तो ग़म है जो पास आए तो दर्द
न जाने क्या है वो कम्बख़्त आदमी देखो


उजाला तो नहीं कह सकते इस को हम लेकिन
ज़रा सी कम तो हुई है ये तीरगी देखो


निगल गए सब की सब समुंदर ज़मीं बची अब कहीं नहीं है
बचाते हम अपनी जान जिस में वो कश्ती भी अब कहीं नहीं है


बहुत दिनों बा'द पाई फ़ुर्सत तो मैं ने ख़ुद को पलट के देखा
मगर मैं पहचानता था जिस को वो आदमी अब कहीं नहीं है


गुज़र गया वक़्त दिल पे लिख कर न जाने कैसी अजीब बातें
वरक़ पलटता हूँ मैं जो दिल के तो सादगी अब कहीं नहीं है


वो आग बरसी है दोपहर में कि सारे मंज़र झुलस गए हैं
यहाँ सवेरे जो ताज़गी थी वो ताज़गी अब कहीं नहीं है


तुम अपने क़स्बों में जा के देखो वहाँ भी अब शहर ही बसे हैं
कि ढूँढते हो जो ज़िंदगी तुम वो ज़िंदगी अब कहीं नहीं है

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