सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

प्यार का शब्दों से क्या सरोकार है hindi harivansh rai bachchan best hindi poems collection


चिड़िया बोली, 'प्यार का शब्दों से क्या सरोकार है?





कवि हरिवंश राय बच्चन ने एक नया अध्याय हिंदी साहित्य में जोड़ा था। मधुशाला तो उनकी जगप्रसिद्ध कविता है। इसके अलावा उन्होंने हिंदी साहित्य को अपनी काव्य प्रतिभा का विपुल भंडार दिया है। अजर-अमर गीतों के रचयिता हरिवंश राय बच्चन ने सरल शब्दों में गहरे भाव वाली कई कविताएं लिखी हैं। प्रसतुत है हरिवंश राय बच्चन की 2 चुनिंदा कविताएं-



मैंने चिड़िया से कहा, 'मैं तुम पर एक
कविता लिखना चाहता हूं।'
चिड़िया ने मुझसे पूछा, ' तुम्हारे शब्दों में
मेरे परों की रंगीनी है?'
मैंने कहा, 'नहीं।'
'तुम्हारे शब्दों में मेरे कंठ का संगीत है ?'
'नहीं।'
'तुम्हारे शब्दों में मेरे डैनों की उड़ान है? '
'नहीं।'
'जान है?'
'नहीं।'
'तब तुम मुझ पर कविता क्या लिखोगे ?'
मैंने कहा, 'पर तुमसे मुझे प्यार है।'
चिड़िया बोली, 'प्यार का शब्दों से क्या सरोकार है?'
एक अनुभव हुआ नया ।
मैं मौन हो गया !
हरिवंश राय बच्चन: सुधियों की घाटी में चुपके से घुस जाना
सुधियों की घाटी में
चुपके से घुस जाना
कहां कठिन है ?
पत्र, चित्र, उपहार पुराने
चट से राह बना देते हैं
और समय की दूरी
कैसे जादू की आभा से उसको ढंके हुए है !
चंदा से चांदी चूती है
सूरज से सोना ढलता है
पेड़ों में मरकत लगते हैं
फूलों से हीरा झरता है
राहें सब सीधी, सब मधुबन को जाती हैं,
सब अपकारी उपकारी हैं,
क्रीड़ा सब संघर्ष,
भाग्य-दुर्भाग्य सभी का सिद्ध हुआ है,
मोती हर आंसू का कण है,
क्रंदन भीतर से गायन है,
और समस्याएं जितनी भी, सुलझ गई हैं,
मन में कोई गांठ नहीं है।




सपनों की चोटी पर
हल्के से उड़ जाना,
कहां कठिन है ?
इच्छा करते ही कंधों पर
पंख कल्पना के उग आते।
देश नहीं है,
काल नहीं है जहां,
वहां पर पलक मारते पहुंचा देते।
वहां चांद में दाग नहीं है,
सूरज की किरणें न जलातीं
पेड़ों पर पतझर न आता
कली नहीं खिलकर मुर्झाती
ह पथ पर कोमल पंखुरियां बिठी हुई हैं
कोई नहीं किसी की बाधा
सबको मिलता है मुंहमागा
दीपक लेकर भी ढूंढो तो
मिलता कोई नहीं अभागा
आनन-आनन हंसी बिछलती
नीं कहीं पछताती ग़लती,
खड़ी समस्याएं होती हैं समाधान ले
औ आता है प्रलय
कंठ में सृजन गान ले।
किंतु कठिन है,
बड़ा कठिन है,
महा कठिन है,
कुश कांटों की इस ऊबड़-खाबड़ धरती पर
ठोकर खाते,
छाले छिलवाते,
घावों से रक्त बहाते बढ़ते जाना,
नहीं कहीं पर सुस्ताना,
जब राहों की भूल-भूलैया में मंज़िल का पता न चलता।
यहां चांदनी चार दिनों तक ही रहती है,
सूरज शोले बरसाता है।






पेड़ों से फल-फूल तोड़ना जो चाहो तो
पोर-पोर को कांटों से बिंधवाना पड़ता
एक कलाई को मरोड़ने को
बंधतीं मुट्ठियां एक सौ।
छोटी सी उपलब्धि
परिश्रम जीवनभर का मांगा करती ।
क्या यह कुत्ती जगह है !
यहां पर बहुत करो माथापच्ची तब
लग पाती है बस थोड़ी-सी ख़ाक भाल पर
(तिलक इसे दुनिया कहती है)
पुरस्कार तृण है,
प्रतियोगी, पर, हज़ार हैं,
पाकर भी संतोष किसी को कब होता है,
इर्ष्या, कुंठा, द्वेष शेष के बढ़ जाते हैं
जग के सौ-सौ तत्व, विरोधी आपस में
हैं शीश उठाते
उम्रें चुक जाया करती हैं
उ्हें समझते औ' समझाते
सिरे नहीं जिनके मिलते हैं
ऐसे उलझे-पुलझे सूतों को सुलझाते ।
ऐसे में उदास हो जाना,
या पागल हो जाना भी स्वाभाविक
किसी बड़ी बेहया धातु के बने हुए वे
जो ऐसे में भी हैं गाते।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक दिन अचानक हिंदी कहानी, Hindi Kahani Ek Din Achanak

एक दिन अचानक दीदी के पत्र ने सारे राज खोल दिए थे. अब समझ में आया क्यों दीदी ने लिखा था कि जिंदगी में कभी किसी को अपनी कठपुतली मत बनाना और न ही कभी खुद किसी की कठपुतली बनना. Hindi Kahani Ek Din Achanak लता दीदी की आत्महत्या की खबर ने मुझे अंदर तक हिला दिया था क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. फिर मुझे एक दिन दीदी का वह पत्र मिला जिस ने सारे राज खोल दिए और मुझे परेशानी व असमंजस में डाल दिया कि क्या दीदी की आत्महत्या को मैं यों ही व्यर्थ जाने दूं? मैं बालकनी में पड़ी कुरसी पर चुपचाप बैठा था. जाने क्यों मन उदास था, जबकि लता दीदी को गुजरे अब 1 माह से अधिक हो गया है. दीदी की याद आती है तो जैसे यादों की बरात मन के लंबे रास्ते पर निकल पड़ती है. जिस दिन यह खबर मिली कि ‘लता ने आत्महत्या कर ली,’ सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बात सच भी हो सकती है. क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. शादी के बाद, उन के पहले 3-4 साल अच्छे बीते. शरद जीजाजी और दीदी दोनों भोपाल में कार्यरत थे. जीजाजी बैंक में सहायक प्रबंधक हैं. दीदी शादी के पहले से ही सूचना एवं प्रसार कार्यालय में स्टैनोग्राफर थीं.

Hindi Family Story Big Brother Part 1 to 3

  Hindi kahani big brother बड़े भैया-भाग 1: स्मिता अपने भाई से कौन सी बात कहने से डर रही थी जब एक दिन अचानक स्मिता ससुराल को छोड़ कर बड़े भैया के घर आ गई, तब भैया की अनुभवी आंखें सबकुछ समझ गईं. अश्विनी कुमार भटनागर बड़े भैया ने घूर कर देखा तो स्मिता सिकुड़ गई. कितनी कठिनाई से इतने दिनों तक रटा हुआ संवाद बोल पाई थी. अब बोल कर भी लग रहा था कि कुछ नहीं बोली थी. बड़े भैया से आंख मिला कर कोई बोले, ऐसा साहस घर में किसी का न था. ‘‘क्या बोला तू ने? जरा फिर से कहना,’’ बड़े भैया ने गंभीरता से कहा. ‘‘कह तो दिया एक बार,’’ स्मिता का स्वर लड़खड़ा गया. ‘‘कोई बात नहीं,’’ बड़े भैया ने संतुलित स्वर में कहा, ‘‘एक बार फिर से कह. अकसर दूसरी बार कहने से अर्थ बदल जाता है.’’ स्मिता ने नीचे देखते हुए कहा, ‘‘मुझे अनिमेष से शादी करनी है.’’ ‘‘यह अनिमेष वही है न, जो कुछ दिनों पहले यहां आया था?’’ बड़े भैया ने पूछा. ‘‘जी.’’ ‘‘और वह बंगाली है?’’ बड़े भैया ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए पूछा. ‘‘जी,’’ स्मिता ने धीमे स्वर में उत्तर दिया. ‘‘और हम लोग, जिस में तू भी शामिल है, शुद्ध शाकाहारी हैं. वह बंगाली तो अवश्य ही

Maa Ki Shaadi मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था?

मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? समीर की मृत्यु के बाद मीरा के जीवन का एकमात्र मकसद था समीरा को सुखद भविष्य देना. लेकिन मीरा नहीं जानती थी कि समीरा भी अपनी मां की खुशियों को नए पंख देना चाहती थी. संध्या समीर और मैं ने, परिवारों के विरोध के बावजूद प्रेमविवाह किया था. एकदूसरे को पा कर हम बेहद खुश थे. समीर बैंक मैनेजर थे. बेहद हंसमुख एवं मिलनसार स्वभाव के थे. मेरे हर काम में दिलचस्पी तो लेते ही थे, हर संभव मदद भी करते थे, यहां तक कि मेरे कालेज संबंधी कामों में भी पूरी मदद करते थे. कई बार तो उन के उपयोगी टिप्स से मेरे लेक्चर में नई जान आ जाती थी. शादी के 4 वर्षों बाद मैं ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया. उस के नामकरण के लिए मैं ने समीरा नाम सुझाया. समीर और मीरा की समीरा. समीर प्रफुल्लित होते हुए बोले, ‘‘यार, तुम ने तो बहुत बढि़या नामकरण कर दिया. जैसे यह हम दोनों का रूप है उसी तरह इस के नाम में हम दोनों का नाम भी समाहित है.’’ समीरा को प्यार से हम सोमू पुकारते, उस के जन्म के बाद मैं ने दोनों परिवारों मे