सुवर्णा चक्रबोर्ती
निर्शझर झरकर नदी में मिलजाती हैं और नदी सागर में
कितना स्वर्गीय हैं दो आत्माओं का एक मधुर
आठेश में एक दूसरे के साथ मिलजाना |
एक स्वर्गीय नियम से सभी एक दूसरे से
मिलने के लिए ही बने हैं|
फिर मैं तुम्हारे साथ क्यूँ नहीं।
देखो! पहाड़ की ऊँची चोटियाँ जैसे गगन को चुम रहीं हैं।
लहरें एक दूसरे से मिल रहीं हैं।
इन सब क्या मूल्य हैं अगर तुम मेरे साथ नहीं हो ।
देखोतो! लताएँ कैसे पौधों को जकड़ रहीं हैं।
जैसे की तुम्हारा मेरा मिलजाना या मिलते हुए कहीं खो जाना।
पंछीया गगन पत्ते निर्झर सभी गा रहें हैं,
तुम पास नहीं हो तो मेरी अपनी आवाज भी सुनाई नहीं देती
Hindi Poem Milan - Suvarna Chakraborty | "मिलन" सुवर्णा चक्रबोर्ती