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Hindi Story Ummedien Part - 1 Read In hindi उम्मीदें भाग-1 हिंदी कहानी - hindi Shayari H

Hindi Story Ummedien, Part 1 Read about Ummedien in hindi Kahani



Hindi Story Ummedien Part - 1 | भारत से पाकिस्तान जाने वाली अंतिम समझौता एक्सप्रेस टे्रन जैसे ही प्लेटफार्म पर आ कर लगी, तसलीमा को लगा कि उस का दिल बैठता जा रहा है.


उस ने अपने दोनों हाथों से उन 3 औरतों को और भी कस कर पकड़ लिया जिन के जीने की एकमात्र उम्मीद तसलीमा थी और अब न चाहते हुए भी उन औरतों को इन के हाल पर छोड़ कर उसे जाना पड़ रहा था, दूर, बहुत दूर, सरहद के पार, अपनी ससुराल.


तसलीमा का शौहर अनवर हर 3 महीने बाद ढेर सारे रुपयों और सामान के साथ उसे पाकिस्तान से भारत भेज देता ताकि वह मायके में अपने बड़े होने का फर्ज निभा सके. बीमार अब्बू के इलाज के साथ ही अम्मी की गृहस्थी, दोनों बहनों की पढ़ाई, और भी जाने क्याक्या जिम्मेदारियां तसलीमा ने अपने पति के सहयोग से उठा रखी हैं पर अब इस परिवार का क्या होगा?


तसलीमा के दोनों भाई तारिक और तुगलक जब से एक आतंकवादी गिरोह के सदस्य बने हैं तब से अब्बू भी बीमार रहने लगे. उन का सारा कारोबार ही ठप पड़ गया. ऊपर से थाने के बारबार बुलावे ने तो जैसे उन्हें तोड़ ही दिया. बुरे समय में रिश्तेदारों ने भी मुंह फेर लिया. अकेले अब्बू क्याक्या संभालें, एक दिन ऐसा आ गया कि घर में रोटी के लाले पड़ गए.


ऐसे में बड़ी बेटी होने के नाते तसलीमा को ही घर की बागडोर संभालनी थी. वह तो उसे अनवर जैसा शौहर मिला वरना कैसे कर पाती वह अपने मायके के लिए इतना कुछ.

तसलीमा सोचने लगी कि अब जो वह गई तो जाने फिर कब आना हो पाए. कई दिनों की दौड़धूप के बाद तो किसी तरह उस के अब्बू सरहद पार जाने वाली इस आखिरी ट्रेन में उस के लिए एक टिकट जुटा पाए थे.

कमसिन कपोलों पर चिंता की रेखाएं लिए तसलीमा दाएं हाथ से अम्मी को सहला रही थी और उस का बायां हाथ अपनी दोनों छोटी बहनों पर था.

तसलीमा ने छिपी नजरों से अब्बू को देखा जो बारबार अपनी आंखें पोंछ रहे थे और साथ ही नन्हे असलम को गोद में खिला रहे थे. उन्हें देख कर उस के मन में एक हूक सी उठी. बेचारे अब्बू की अभी उम्र ही क्या है. समय की मार ने तो जैसे उन्हें समय से पहले ही बूढ़ा बना दिया है.

नन्हे असलम के साथ बिलकुल बच्चा बन जाते हैं. तभी तो वह जब भी अपने नाना के घर हिंदुस्तान आता है, उन से ही चिपका रहता है.

लगता है, जैसे नाती को गले लगा कर वह अपने 2-2 जवान बेटों का गम भूलने की कोशिश करते हैं पर हाय रे औलाद का गम, आज तक कोई भूला है जो वह भूल पाते?

तसलीमा ने अपने ही मन से पूछा, ‘क्या खुद वह भूल पाई है अपने दो जवान भाइयों को खोने का गम?’
ससुराल में इतनी खुशहाली और मोहब्बत के बीच भी कभीकभी उस का दिल अपने दोनों छोटे भाइयों के लिए क्या रो नहीं पड़ता? अनवर की मजबूत बांहों में समा कर भी क्या उस की आंखें अपने भाइयों के लिए भीग नहीं जातीं? अगर वह अपने भाइयों को भूल सकी होती तो अनवर के छोटे भाइयों में तारिक और तुगलक को ढूंढ़ती ही क्यों?

‘‘दीदी, देखो, अम्मी को क्या हो गया?’’
तबस्सुम की चीख से तसलीमा चौंक उठी.
खयालों में खोई तसलीमा को पता ही नहीं चला कि कब उस की अम्मी उस की बांहों से फिसल कर वहीं पर लुढ़क गईं.

‘‘यह क्या हो गया, जीजी. अम्मी का दिल तो इतना कमजोर नहीं है,’’ सब से छोटी तरन्नुम अम्मी को सहारा देने के बजाय खुद जोर से सिसकते हुए बोली.

अब तक तसलीमा के अब्बू भी असलम को गोद में लिए ही ‘क्या हुआ, क्या हुआ’ कहते हुए उन के पास आ गए.
तसलीमा ने देखा कि तीनों की जिज्ञासा भरी नजरें उसी पर टिकी हैं जैसे इन लोगों के सभी सवालों का जवाब, सारी मुश्किलों का हल उसी के पास है. उस के मन में आ रहा था कि वह खूब चिल्लाचिल्ला कर रोए ताकि उस की आवाज दूर तक पहुंचे… बहुत दूर, नेताओं के कानों तक.

पर तसलीमा जानती है कि वह ऐसा नहीं कर सकती क्योंकि अगर वह जरा सा भी रोई तो उस के अब्बू का परिवार जो पहले से ही टूटा हुआ है और टूट जाएगा. आखिर वही तो है इन सब के उम्मीद की धुरी. अब जबकि कुछ ही मिनटों में वह इन्हें छोड़ कर दूसरे मुल्क के लिए रवाना होने वाली है, उन्हें किसी भी तरह की तकलीफ नहीं देना चाहती थी.

समझौता एक्सप्रेस जब भी प्लेटफार्म छोड़ती है, दूसरी ट्रेन की अपेक्षा लोगों को कुछ ज्यादा ही रुला जाती है. यही इस गाड़ी की विशेषता है. आखिर सरहद पार जाने वाले अपनों का गम कुछ ज्यादा ही होता है, पर आज तो यहां मातम जैसा माहौल है.

कहीं कोई सिसकियों में अपने गम का इजहार कर रहा है तो कोई दिल के दर्द को मुसकान में छिपा कर सामने वाले को दिलासा दे रहा है. आज यहां कोसने वालों की भी कमी नहीं दिखती. कोई नेताओं को कोस रहा है तो कोई आतंकवादियों को, जो सारी फसाद की जड़ हैं.

तसलीमा किसे कोसे? उसे तो किसी को कोसने की आदत ही नहीं है. सहसा उसे लगा कि काश, वह औरत के बजाय पुरुष होती तो अपने परिवार को इस तरह मझधार में छोड़ कर तो न जाती.

मन जितना अशांत हो रहा था स्वर को उतना ही शांत बनाते हुए तसलीमा बोली, ‘‘अम्मी को कुछ नहीं हुआ है, वह अभी ठीक हो जाएंगी. तरन्नुम, रोना बंद कर और जा कर अम्मी के लिए जरा ठंडा पानी ले आ और अब्बू, आप मेरा टिकट कैंसल करवा दो. मैं आप लोगों को इस हालात में छोड़ कर पाकिस्तान हरगिज नहीं जाऊंगी.’’
टिकट कैंसल करने की बात सुनते ही अम्मी को जैसे करंट छू गया हो, वह धीरे से बोलीं, ‘‘कुछ नहीं हुआ मुझे. बस, जरा चक्कर आ गया था. तू फिक्र न कर लीमो, अब मैं बिलकुल ठीक हूं.’’

आगे पढ़ें- एक घूंट गले से उतार कर अम्मी फिर बोलीं,

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