जीवन वह जो जीता कविता" जीवन वह जो जीता कविता
कविता मुझमें या मैं कविता -
प्रश्न ने दिल मे दस्तक दी है
अक्सर मन ने पूछा हमसे
कविता कब कैसे रचती है,
कविता लिखना बड़ा सरल है
क्योकि वह सबको दिखती है
पर कविता जी लेना मुश्किल
जब जीवन बन जाता कविता,
सरहद पर सैनिक डटा हुआ
दुश्मन को मारे, ख़ुद मरता
बलिदान को अपना गर्व समझता
वीर का जीवन, जीता कविता,
जिसके जीवन मे सार्थकता है
वह ही जी सकता है कविता
बनी बनाई ही दिखती जब
हम सब गढ़ सकते इक कविता,
गहन समंदर उठती लहरें
बीच भंवर में नाव उलझती
माझी के कड़वे,मीठे पल से
तब ख़ुद वह जी जाता कविता,
बचपन, यौवन गुनगुन करता
दिल जब गाता, रुनझुन झरता
रचता नया तरन्नुम कविता
वह जीवन जी लेता कविता,
ग़म से जब आँखें, भर जाती
आँसू का सैलाब उमड़ता
जीवन उसका जीता कविता
सरिता सी बहती तब कविता,
जीवन का अंतिम क्षण आता
उठती लौ संग, तन जल जाता
मर कर वह कविता जी जाता
अंतिम लौ संग गढ़ता कविता,
जीवन का हर अर्थ है कविता
दिल,लय-स्वर,मन संग जो जीता
ख़ुद से उपजती रहती कविता
जीवन वह जो जीता कविता !!
रमेश शुक्ल ~
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