Kaleem ajiz best Hindi shayari, sher collection |
दामन पे कोई छींट न ख़ंजर पे कोई दाग़
तुम क़त्ल करो हो कि करामात करो हो
करे है अदावत भी वो इस अदा से
लगे है कि जैसे मोहब्बत करे है
ज़िंदगी में है वो उलझन कि परेशां हो कर
ज़ुल्फ़ की तरह बिखर जाने को जी चाहे है
मय में कोई ख़ामी है न साग़र में कोई खोट
पीना नहीं आए है तो छलकाए चलो हो
दिल की बाज़ी लगे फिर जान की बाज़ी लग जाए
इश्क़ में हार के बैठो नहीं हारे जाओ
आ रख दहन-ए-ज़ख़्म पे फिर उंगलियां अपनी
दिल बांसुरी तेरी है बजाने के लिए आ
ज़ालिम था वो और ज़ुल्म की आदत भी बहुत थी
मजबूर थे हम उस से मोहब्बत भी बहुत थी
जैसा बे-दर्द हो वो फिर भी ये जैसा महबूब
ऐसा कोई न हुआ और कोई होगा भी नहीं
न जाने रूठ के बैठा है दिल का चैन कहां
मिले तो उस को हमारा कोई सलाम कहे
भूली हुई याद आ के कलेजे को मले है
जब शाम गुज़र जाए है जब रात ढले है
मिरी बर्बादियों का डाल कर इल्ज़ाम दुनिया पर
वो ज़ालिम अपने मुंह पर हाथ रख कर मुस्कुरा दे है