shayri ki dayri shauq bahraichi selected shayari
shayri ki dayri shauq bahraichi selected shayari
शौक़ बहराइची के चुनिंदा शेर
हुस्न इक दिलरुबा हुकूमत है
इश्क़ इक क़ुदरती ग़ुलामी है
~अब्दुल हमीद अदम
ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है बढ़ता है तो मिट जाता है
ख़ून फिर ख़ून है टपकेगा तो जम जाएगा
~साहिर लुधियानवी
सवाल कर के मैं ख़ुद ही बहुत पशेमाँ हूँ
जवाब दे के मुझे और शर्मसार न कर
~अब्दुल हमीद अदम
काग़ज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के
दीवाना बे-पढ़े-लिखे मशहूर हो गया
~बशीर बद्र
मैं ने यूं दिल को बनाया आईना
आईना-गर को भी हैरत हो गई
तुझे अपने और पराए का नहीं कुछ शुऊर अभी तलक
मिरे जां-निसारों की लिस्ट में ज़रा देख तेरा भी नाम है
बैठा हुआ सिक्का है मिरी फ़िक्र-ए-सुख़न का
ऐ 'शौक़' न हों क्यूं मिरे अशआर रजिस्टर्ड
वाइज़ ये गुलिस्ताँ ये बहारें ये घटाएं
साग़र कोई ऐसे में खनक जाए तो क्या हो
जिस के हामी हो गए वाइ'ज़ वो बाज़ी ले गया
अहमियत है आप की दुनिया में जोकर की तरह
किस तरह जाता कोई मंज़िल-ए-मक़्सद की तरफ़
कोई यक्का कोई तांगा कोई रिक्शा न मिला
इक वो ज़ालिम ही नहीं मुझ पे जफ़ा करता है
आसमां भी इसी चक्कर में रहा करता है
जब भी वो बैठते हैं लिखने को इक़रार-ए-वफ़ा
गांव भर में कहीं मिलता नहीं पुर्ज़ा काग़ज़
अब ख़ुदा के लिए रख हम पे करम ऐ नासेह
हैं परेशां तिरी बकवास से हम ऐ नासेह
हज़ारों चाहने वाले हैं उन के
कम उन की आज कल इन्कम नहीं है
Top shayari collection
सुखन के इन उस्तादों के बेहतरीन शेर
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
- मिर्ज़ा ग़ालिब
अब तो जाते हैं बुत-कदे से 'मीर'
फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया
- मीर तक़ी मीर
अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएंगे
मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएंगे
- शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
शब-ए-विसाल है गुल कर दो इन चराग़ों को
ख़ुशी की बज़्म में क्या काम जलने वालों का
- दाग़ देहलवी
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
- साहिर लुधियानवी
इंसां की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद
- कैफ़ी आज़मी
बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मालूम
जो तेरे हिज्र में गुज़री वो रात रात हुई
- फ़िराक़ गोरखपुरी
इलाज ये है कि मजबूर कर दिया जाऊं
वगरना यूं तो किसी की नहीं सुनी मैंने
- जौन एलिया
दफ़्न कर सकता हूँ सीने में तुम्हारे राज़ को
और तुम चाहो तो अफ़्साना बना सकता हूं मैं
- मजाज़ लखनवी
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़