सोशल मीडिया: सँपोले मुद्दतों तक आस्तीनों में ही पलते है...
Viral hindi poem in social media by Dr Rahul Awasthi Poem
कभी उस ओर जाते हैं, कभी इस ओर चलते हैं
फिसलते आये हैं जो लोग वे फिर-फिर फिसलते हैं
ये बिल से बिलबिलाते, भागते तो आज देखे हैं
सँपोले मुद्दतों तक आस्तीनों में ही पलते है
लहू के घूँट भी पीने पड़ेंगे इनकी सोहबत में
शहद-सी बात करते हैं, ज़हर जमकर उगलते हैं
समझ आ जायेगा, ये लोग जो तुमसे मुख़ातिब हैं
बड़े जज़्बे जगाते हैं शुरू में, फिर कुचलते हैं
अमाँ इनकी मुहब्बत पर किसी से बात क्या करना
दलाली खाने वाले हैं, हलाली पर उबलते हैं
हमारे सुनने-कहने भर से केवल, कुछ नहीं होगा
बुरे हालात हैं, हम क्या करें, हम हाथ मलते हैं
जो दिल-बदलू हैं वे दिल को बदलते हैं दिमागों से
जो दल-बदलू हैं वो पाली-बदल, पाला बदलते हैं
मैं इतना ज़िन्दगानी का सफ़र जब करके आया हूँ
तभी मैं जान पाया, रास्ते पग-पग पे छलते हैं
तमन्ना थी दिये-सी उगने की तो शाम तक चुप था
न जाने कितने सूरज तो सुबह होते ही ढलते हैं
अकेला भी चला हूँ मैं, मुझे इंसान कहते हैं
मगर ये टिड्डियों के दल करोड़ों में निकलते हैं