अब तो खुश होंगे न तुम. मैं बहुत दूर जो हूँ तुमसे, कभी न लौटने लिए चली जो आयी हूँ। मगर सच कहो, तुम्हे मेरी याद बिल्कुल भी नहीं आती? सही तो है क्यों याद करोगे अब तुम। मैं कोई नहीं थी न तुम्हारी, नहीं तो इतनी बेदर्दी से दिल क्यों तोड़ते? मगर मुझे बहुत आती है तुम्हारी याद। हर उस जगह जहां हम साथ था। वो अकेला सा रास्ता, जहां जाते हुए भी मैं डरती थी, और तुम कहते क्या डरती हो तुम भी, मेरा हाथ पकड़ चलो, डर नहीं लगेगा। और मैं जानकर तुम्हारा हाथ पकड़ लेती थी, ताकि तुम्हारा स्पर्श हर दक़त महसूस हो। जानते हो अब नहीं डरती मैं वहां से गुजरते, पहले जाती नहीं थी अब वहीं रहती हूं, तुम्हारी यादें अब भी मेरा हाथ पकड़े जो चलती हैं।
याद है दो स्ट्रीट लाइट, जिसके नीचे खड़े हो मेरे आने का इंतज़ार करते थे तुम। अब मैं वहां घंटों खड़े रहती हूं, वो अब भी नहीं जलती। ढाकी सब आज भी उस रास्ते को रोशन करती हैं। मैंने पूछा था न तुमसे यहीं क्यों? तुमने कहा था क्योंकि ये जलती नहीं है। और तुम्हारा आना इसे रोशनी दे दे क्या पता। मैं कितना हंसती थी न तब।
याद है वो पेड़, अरे वही पेड़, जिसमें मेरा नाम अब भी आधा लिखा है। तुम जब लिख रहे थे तो मैंने तुम्हें रोक दिया था,
मुझे अच्छा नहीं लगा था तुम्हारा उस पैड़ को कुरेदना। जबकि तुम तो दूसरों को खुशिया देते थे। किसी को दर्द दो कैसे अच्छा लगता। अब सोचती हूँ, तुम्हे न रोका होता तो उस पेड़ पर ही सही तुम साथ होते। पर मैं वहां भी अकेली और अधूरी हूँ तुम्हारे बिना।
याद है तुम्हे दो पार्क और वो बेंच, जहां मैं अक्सर तुम्हारा इंतज़ार करती थी। तुम्हे मेरा उस लाइट के नीचे खड़े होना अच्छा नहीं लगता था। कितनी देर लगाते थे तुम। मैं गुस्सा होती तो तुम ढेरों बहाने बनाते, तुम्हे पता था न, मैं जान कर भी तुम्हारे बहानों को सच मान लेती थी। उस बेंच पर जब तुम पहली बार मेरी गोद में सर रखकर लेटे थे, कितनी हाय तौबा मचाई थी मैंने। जबकि उस तरह से लेटना अच्छा लगा था। उसके बाद तुम वैसे करने से कतराते थे, तो एक दिन मैं ही तुम्हारो गोदी में लेट गयी थी। तुम्हारा हिचकिचाते हुए मेरे बालों को धीरे धीरे सहलाना अब भी महसूस होता है मुझे।
याद है वो पहला गुलाब, अब भी रखा है मेरी डायरी में, तुम्हारा पहली बार वो गुलाबों का गुच्छा देना और कहना, मुझे
तुमसे प्यार हो गया है, नहीं भूलता है।अब भी कानों में गूंजता है। वो पहला गिफ्ट, वो हार्ट जिस पर आई लव यू लिखा था, वो पायल, कितने प्यार से पहनाई थी मेरे पैरों में, पहनते दक़त मेरे पैरों को निहार रहे थे तुम।और फिर तुमने पूछा था, ज़मीन पर कभी रखती भी हो तुम इन्हें। और में शर्म से लाल हो गई थी। और न जाने कितनी यादें जुड़ी हैं उस रास्ते से।
अरे हाँ! दो बारिश याद है, जब तुम्हारे ये कहने पर कि तुमसे मेरी छाता नहीं संभलती, अगली बार नहीं लेकर आई थी, और दिनभर बारिश हुई थी। कितना भीगे थे हम साथ मैं, शाम को जब घर लौटी थी खूब डांट खाई थी मैंने।अगले दिन बीमार पड़ गयी थी। बारिश का पानी मुझे बीमार कर देता था, तुम्हे भी झुकाम हुई थी न। कुछ छोटा सा भी तुम्हे होता तुम पैनिक हो जाते थे।।
बहुत सी यादें हैं कैसे लिखूं दूबारा जी रही हूं ऐसा ही लगता है। तुम पढ़ोगे नहीं इस खत को, इसलिए इसे पोस्ट नहीं करूंगी। तुम तो खुश हो न मुझे भूलकर।