सच्चाई और प्रेम उकेरने वाली बेकल उत्साही की 3 चुनिंदा ग़ज़लें | Bekal Utsahi Best Ghazals Collection |
सच्चाई और प्रेम उकेरने वाली बेकल उत्साही की 3 चुनिंदा ग़ज़लें रहीम और कबीर की परंपरा में दोहे लिखे, खेत-खलिहानों, बाढ़, सूखे और संघर्ष को वाणी देने वाले गीत लिखे, ज़िंदगी की सच्चाई और प्रेम उकेरने वाली ग़ज़लें लिखीं। प्रस्तुत है बेकल की उत्साही की 3 ग़ज़लें-
यूँ तो कहने को तिरी राह का पत्थर निकला
तू ने ठोकर जो लगा दी तो मिरा सर निकला
लोग तो जा के समुंदर को जला आए हैं
मैं जिसे फूँक कर आया वो मिरा घर निकला
एक वो शख़्स जो फूलों से भरे था दामन
हर कफ़-ए-गुल में छुपाए हुए ख़ंजर निकला
यूँ तो इल्ज़ाम है तूफ़ाँ पे डुबो देने का
तह में दरिया की मगर नाव का लंगर निकला
घर के घर ख़ाक हुए जल के नदी सूख गई
फिर भी उन आँखों में झाँका तो समुंदर निकला
फ़र्श ता अर्श कोई नाम-ओ-निशाँ मिल न सका
मैं जिसे ढूँढ रहा था मिरे अंदर निकला
मैं जब भी कोई अछूता कलाम लिखता हूँ
तो पहले एक ग़ज़ल तेरे नाम लिखता हूँ
बदन की आँच से सँवला गए हैं पैराहन
मैं फिर भी सुब्ह के चेहरे पे शाम लिखता हूँ
चले तो टूटें चट्टानें रुके तो आग लगे
शमीम-ए-गुल को तो नाज़ुक-ख़िराम लिखता हूँ
घटाएँ झूम के बरसीं झुलस गई खेती
ये हादसा है ब-सद-ए-एहतिराम लिखता हूँ
ज़मीन प्यासी है बूढ़ा गगन भी भूका है
मैं अपने अहद के क़िस्से तमाम लिखता हूँ
चमन को औरों ने लिक्खा है मय-कदा बर दोश
मैं फूल फूल को आतिश-ब-जाम लिखता हूँ
न राब्ता न कोई रब्त ही रहा बेकल
उस अजनबी को मगर मैं सलाम लिखता हूँ
हम चटानों की तरह साहिल पे ढाले जाएँगे
फिर हमें सैलाब के धारे बहा ले जाएँगे
ऐसी रुत आई अँधेरे बन गए मिम्बर के बुत
गुंबद-ओ-मेहराब क्या जुगनू बचा ले जाएँगे
पहले सब ता'मीर करवाएँगे काग़ज़ के मकाँ
फिर हवा के रुख़ पे अंगारे उछाले जाएँगे
हम वफ़ादारों में हैं उस के मगर मश्कूक हैं
इक न इक दिन उस की महफ़िल से निकाले जाएँगे
जंग में ले जाएँगे सरहद पे सब तीर-ओ-तफ़ंग
हम तो अपने साथ मिट्टी की दुआ ले जाएँगे
शहर को तहज़ीब के झोंकों ने नंगा कर दिया
गाँव के सर का दुपट्टा भी उड़ा ले जाएँगे
दास्तान-ए-इश्क़ को बेकल न दे गीतों का रूप
दोस्त हैं बेबाक सब लहजे चुरा ले जाएँगे