सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Hindi Story AajKal Ki Ladkiya: - Part 1 | हिंदी कहानी आजकल की लड़कियां : भाग 1 - hindi shayari


आजकल की लड़कियां : भाग 1 

Hindi Story AajKal Ki Ladkiya: - Part 1 | हिंदी कहानी आजकल की लड़कियां : भाग 1 - hindi shayari


(AajKal Ki Ladkiya) ‘‘कुछ सुना आप ने, वो अपने मिश्रा जी हैं न… उन की बहू घर छोड़ कर चली गई,’’ औफिस से घर आते ही रमा ने चाय के साथ पति योगेश को यह सनसनीखेज खबर भी परोस दी.


‘‘कौन से मिश्रा जी? वो जो पिछली गली में रहते हैं, जिन के यहां हम भी गए थे शादी में… वो? लेकिन उस शादी के तो अभी 6 महीने भी नहीं हुए. आखिर ऐसा क्या हुआ होगा?’’ योगेश ने चाय के घूंट के साथ खबर को भी गटकने की कोशिश की, लेकिन खबर थी कि गले से नीचे ही नहीं उतर रही थी.


‘‘हांहां वही. बहू कहती है ससुराल में उसे घुटन होती है. ये आजकल की लड़कियां भी न… रिश्तों को तो कुछ समझती ही नहीं हैं. मानो रिश्ते न हुए नए फैशन के कपड़े हो गए. इधर जरा सा अनफिट हुए, उधर अलमारी से बाहर. एक हम थे जो कपड़ों को फटने तक रफू करकर के पहनते रहते थे, वैसे ही रिश्तों को भी लाख गिलेशिकवों के बावजूद निभाते रहते हैं,’’ रमा ने अपने जमाने को याद कर के ठंडी सांस ली.


‘‘लेकिन तुम्हीं ने तो एक बार बताया था कि मिश्राजी अपनी बहू को एकदम बेटी की तरह रखते हैं. न खानेपीने में पाबंदी, न घूमनेफिरने में रोकटोक. यहां तक कि अपनी बिटिया की तरह बहू को भी लेटैस्ट फैशन के कपड़े पहनने की छूट दे रखी है. फिर भला बहू को क्या परेशानी हो गई?’’


‘‘वही तो, मिश्रा जी ने पहले तो जरूरत से ज्यादा लाड़ कर के उसे सिर पर चढ़ा लिया, और देखो, अब वही लाड़ उस के सिर चढ़ कर बोलने लगा. इन बहुओं की लगाम तो कस कर ही रखनी चाहिए जैसी हमारे जमाने में रखी जाती थी. क्या मजाल कि मुंह से चूं भी निकल जाए,’’ रमा ने अपना समय याद किया.


‘‘तो तुम भी कहां खुश थीं मेरी मां से, हर वक्त रोना ही रहता था तुम्हारी जबान पर,’’ योगेश ने उस के खयालों के फूले हुए गुब्बारे को तंज की पिन चुभो कर फुस्स कर दिया.





‘‘बसबस, रहने दो. तुम्हारी मां थीं ही हिटलर की कौर्बनकौपी. उन्हें तो हमेशा मुझ में कमियां ही नजर आती थीं,’’ कहते हुए रमा ने चाय के बरतन उठाए और बड़बड़ाते हुए रसोई की तरफ चल दी. योगेश ने भी टीवी चलाया और न्यूज देखने में व्यस्त हो गया. मिश्रापुराण पर एकबारगी विराम लग गया.


‘‘अरे रमा, सुना तुम ने, वह अपनी किटी ऐडमिन कांता है न, उस की बेटी अपने पति को छोड़ कर मायके वापस आ गई,’’ दूसरे दिन शाम को पार्क में पड़ोसिन शिल्पी ने उसे रोक कर अपने चटपटे अंदाज में यह ब्रेकिंग न्यूज दी तो रमा के दिमाग में एक बार फिर से मिश्राजी की बहू घूम गई.


‘‘क्या बात कर रही हो? उस ने तो लवमैरिज की थी न, फिर ऐसा क्या हुआ?’’ रमा ने आश्चर्य से पूछा.


‘‘अरे, कुछ मत पूछो. ये आजकल की लड़कियां भी न. न जाने किस दुनिया में जीती हैं. कहती है मुझ से गलती हो गई. शादी के बाद मुझे पता चला कि यह मेरे लिए परफैक्ट मैच नहीं है. यह भी कोई तर्क हुआ भला?’’ शिल्पी ने हाथों के साथसाथ आंखें भी नचाईं.


‘‘अब क्या बताएं, यह तो आजकल घरघर की कहानी हो गई. बहुओं को ज्यादा छूट दो, तो उन के पर निकल आते हैं. कस कर रखो तो उन्हें घुटन होने लगती है. सहनशीलता का तो नाम ही नहीं है इन की डिक्शनरी में. शादी की पहली सालगिरह से पहले ही बेटियां मायके आ जाती हैं और बहुएं ससुराल छोड़ जाती हैं. पता नहीं कहां जाएगी यह 21वीं सदी,’’ कहते हुए रमा ने बात खत्म की और घर लौट आई.


कहने को तो रमा ने बात खत्म कर दी थी लेकिन क्या सचमुच सिर्फ बात को खत्म कर देनेभर से ही मुद्दा भी खत्म हो जाता है? नहीं न, और तब तो बिलकुल भी नहीं जब घर में खुद अपनी ही जवान औलाद हो. रमा रास्तेभर अपने बेटे प्रथम के बारे में सोचती जा रही थी.




उस की उम्र भी तो विवाह लायक हो गई है. सीधे, सरल स्वभाव का प्रथम अपनी पढ़ाईलिखाई पूरी कर के अब एक एमएनसी में आकर्षक पैकेज पर नौकरी कर रहा है, बेंगलुरू में अपना फ्लैट ले कर अकेला रहता है. घर का इकलौता बेटा है. देखने में भी किसी फिल्मी हीरो सा डार्क, टौल और हैंडसम है. क्या ये सब खूबियां किसी की पसंद बनने के लिए काफी नहीं हैं? लेकिन फिर भी क्या गारंटी है कि मेरी होने वाली बहू प्रथम के साथ निबाह कर लेगी. रमा के विचार थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे..








best story, best story in hindi, hindi kahani, hindi kahani online, कहानी, बेस्ट स्टोरी, बेस्ट स्टोरी इन हिन्दी, हिंदी कहानी, hindi story, hindi story online, story in hindi, thriller story, thriller story online, हिंदी कहानी औनलाइन, हिंदी स्टोरी, हिन्दी कहानी, hindi Story aajkal ki ladkiya: - part 1, read about आजकल की लड़कियां : भाग 1 

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक दिन अचानक हिंदी कहानी, Hindi Kahani Ek Din Achanak

एक दिन अचानक दीदी के पत्र ने सारे राज खोल दिए थे. अब समझ में आया क्यों दीदी ने लिखा था कि जिंदगी में कभी किसी को अपनी कठपुतली मत बनाना और न ही कभी खुद किसी की कठपुतली बनना. Hindi Kahani Ek Din Achanak लता दीदी की आत्महत्या की खबर ने मुझे अंदर तक हिला दिया था क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. फिर मुझे एक दिन दीदी का वह पत्र मिला जिस ने सारे राज खोल दिए और मुझे परेशानी व असमंजस में डाल दिया कि क्या दीदी की आत्महत्या को मैं यों ही व्यर्थ जाने दूं? मैं बालकनी में पड़ी कुरसी पर चुपचाप बैठा था. जाने क्यों मन उदास था, जबकि लता दीदी को गुजरे अब 1 माह से अधिक हो गया है. दीदी की याद आती है तो जैसे यादों की बरात मन के लंबे रास्ते पर निकल पड़ती है. जिस दिन यह खबर मिली कि ‘लता ने आत्महत्या कर ली,’ सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बात सच भी हो सकती है. क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. शादी के बाद, उन के पहले 3-4 साल अच्छे बीते. शरद जीजाजी और दीदी दोनों भोपाल में कार्यरत थे. जीजाजी बैंक में सहायक प्रबंधक हैं. दीदी शादी के पहले से ही सूचना एवं प्रसार कार्यालय में स्टैनोग्राफर थीं.

Hindi Family Story Big Brother Part 1 to 3

  Hindi kahani big brother बड़े भैया-भाग 1: स्मिता अपने भाई से कौन सी बात कहने से डर रही थी जब एक दिन अचानक स्मिता ससुराल को छोड़ कर बड़े भैया के घर आ गई, तब भैया की अनुभवी आंखें सबकुछ समझ गईं. अश्विनी कुमार भटनागर बड़े भैया ने घूर कर देखा तो स्मिता सिकुड़ गई. कितनी कठिनाई से इतने दिनों तक रटा हुआ संवाद बोल पाई थी. अब बोल कर भी लग रहा था कि कुछ नहीं बोली थी. बड़े भैया से आंख मिला कर कोई बोले, ऐसा साहस घर में किसी का न था. ‘‘क्या बोला तू ने? जरा फिर से कहना,’’ बड़े भैया ने गंभीरता से कहा. ‘‘कह तो दिया एक बार,’’ स्मिता का स्वर लड़खड़ा गया. ‘‘कोई बात नहीं,’’ बड़े भैया ने संतुलित स्वर में कहा, ‘‘एक बार फिर से कह. अकसर दूसरी बार कहने से अर्थ बदल जाता है.’’ स्मिता ने नीचे देखते हुए कहा, ‘‘मुझे अनिमेष से शादी करनी है.’’ ‘‘यह अनिमेष वही है न, जो कुछ दिनों पहले यहां आया था?’’ बड़े भैया ने पूछा. ‘‘जी.’’ ‘‘और वह बंगाली है?’’ बड़े भैया ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए पूछा. ‘‘जी,’’ स्मिता ने धीमे स्वर में उत्तर दिया. ‘‘और हम लोग, जिस में तू भी शामिल है, शुद्ध शाकाहारी हैं. वह बंगाली तो अवश्य ही

Maa Ki Shaadi मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था?

मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? समीर की मृत्यु के बाद मीरा के जीवन का एकमात्र मकसद था समीरा को सुखद भविष्य देना. लेकिन मीरा नहीं जानती थी कि समीरा भी अपनी मां की खुशियों को नए पंख देना चाहती थी. संध्या समीर और मैं ने, परिवारों के विरोध के बावजूद प्रेमविवाह किया था. एकदूसरे को पा कर हम बेहद खुश थे. समीर बैंक मैनेजर थे. बेहद हंसमुख एवं मिलनसार स्वभाव के थे. मेरे हर काम में दिलचस्पी तो लेते ही थे, हर संभव मदद भी करते थे, यहां तक कि मेरे कालेज संबंधी कामों में भी पूरी मदद करते थे. कई बार तो उन के उपयोगी टिप्स से मेरे लेक्चर में नई जान आ जाती थी. शादी के 4 वर्षों बाद मैं ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया. उस के नामकरण के लिए मैं ने समीरा नाम सुझाया. समीर और मीरा की समीरा. समीर प्रफुल्लित होते हुए बोले, ‘‘यार, तुम ने तो बहुत बढि़या नामकरण कर दिया. जैसे यह हम दोनों का रूप है उसी तरह इस के नाम में हम दोनों का नाम भी समाहित है.’’ समीरा को प्यार से हम सोमू पुकारते, उस के जन्म के बाद मैं ने दोनों परिवारों मे