मुन्नी बदनाम हुई
अपने घर में सब से छोटी और सब की लाड़ली मुन्नी कब मोहित के प्यार में खो कर बहक गई, खुद उसे ही पता नहीं चला. उम्र के नाजुक मोड़ के प्यार में ऐसा क्या हुआ कि मुन्नी खुद अपनी नजरों से गिर गई?
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यौवनावस्था में कदम रखने वाली मुन्नी के स्वभाव का बचपना न जाने कब मोहित के प्यार में खो गया, खुद उसे ही नहीं पता चला. मोहित व कविता के बीच आखिर ऐसा क्या हुआ कि वह पूरी तरह से टूट गई और खुद की नजरों में ही गिर गई.
‘‘मम्मी, मेरा लंच बौक्स,’’ कविता चिल्लाती हुई रसोईघर में घुसी.
‘‘तैयार है, तू खुद लेटलतीफ है, देर से उठती है और सारे घर को सिर पर उठा लेती है. यह अच्छी बात नहीं है.’’
‘‘बस, मम्मी, हो गया. अब दो भी मेरा लंच बौक्स. कल से जल्दी उठूंगी,’’ कविता अपनी मम्मी की तरफ देखते हुए बोली.
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उस की मम्मी भी उस पर ऊपरी मन से गुस्सा करती थीं. उन्हें पता है कि कविता नहीं सुधरने वाली. उस का यह रोज का काम है.
कविता ने प्यार जताने के लिए मम्मी को गले लगाया और बोली,
‘‘बाय मम्मी.’’
‘‘बाय बेटा, पेपर अच्छे से करना.’’
कविता की मां नम्रता अपने रोजमर्रा के काम निबटाने में व्यस्त हो गईं. कविता के घर में उस के मातापिता, 1 भाई, दादादादी, ताऊताई व उन की 2 बेटियां रहते हैं. कविता अपने घर में सब से छोटी है और सब की लाड़ली है. सब उस से बहुत प्यार करते हैं. प्यार में सब उसे मुन्नी कहते हैं.
कविता 17 साल की एक सुंदर लड़की थी. उस का भराभरा सा सुडौल शरीर और चंचल स्वभाव सहज किसी को भी आकर्षित करने लायक था. उस को गांव में सभी प्यार से मुन्नी बुलाते थे. यौवनावस्था में कदम रखने वाली मुन्नी के स्वभाव में अभी तक बचपना था. उस की 12वीं कक्षा की वार्षिक परीक्षाएं चल रही थीं. पेपर देने के लिए उसे अपने गांव से 18 किलोमीटर दूर कसबे के उच्च माध्यमिक विद्यालय में जाना पड़ता था.
गांव से कसबे में जाना उस में रोमांच पैदा कर देता. उसे लगता कि जैसे वह आजाद हो गई हो. वह अपने बालों में क्लिप लगा कर, गले में सफेद रंग की माला, माथे पर छोटी सी बिंदी लगा कर, विद्यालय की ड्रैस में बहुत ही आकर्षक और सुंदर लगती.
एक दिन उस की सहेलियां उस का इंतजार कर रही थीं. उस के पहुंचते ही सभी उस पर गुस्सा करने लगीं.
‘‘मुन्नी की बच्ची, आज फिर लेट,’’ मीनू बोली.
‘‘कल से हम तेरा इंतजार नहीं करेंगे, अभीअभी दूसरी बस भी निकल गई,’’ सुजाता ने भी डांटा.
‘‘सौरी, लेट हो गई पर तुम टैंशन मत लो. मैं हूं न,’’ मुन्नी बोली, ‘‘लो, बस भी आ गई. बस स्टैंड से स्कूल तक आटो का खर्चा मेरा.’’
बस रुकी, सभी लड़कियां और अन्य लोग बस में चढ़ गए. बस में मुन्नी व उस की सहेलियों की चटरपटर सभी का ध्यान अपनी ओर खींच रही थी.
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लड़के मुन्नी को देख कर किसी न किसी बहाने उसे छूने के लिए बेताब रहते थे. मुन्नी को लड़कों का घूरना बाहर से तो अच्छा न लगता पर अंदर से वह खुश होती और अपनी सुंदरता का घमंड करती.
बस कसबे में पहुंची, सभी यात्री उतरे. वहां खड़े छिछोरे, आवारा लड़के, लड़कियों का झुंड देख कर तरहतरह की फब्तियां कसने लगे.
मुन्नी ने अपनी एक सहेली का हाथ खींचा, ‘‘चल, आटो ले कर आते हैं. तुम सभी यहीं इंतजार करना,’’ वे आटो ले कर आईं और सब उस में बैठ कर समय पर स्कूल पहुंच गईं.
विद्यालय के गेट के पास कई आउटसाइडर और छात्र खड़े थे. वे सभी आती हुई लड़कियों के ग्रुप की तरफ देख रहे थे. लड़कियां उन को अनदेखा कर के अंदर चली गईं. अंदर बहुत चहलपहल थी. सभी छात्र इधरउधर चहलकदमी कर रहे थे. कुछ अपने रोल नंबर नोटिसबोर्ड पर देख रहे थे, कुछ किताबें पढ़ रहे थे और कुछ कमरों की तरफ जा रहे थे.
‘‘हाय, एवरीबडी,’’ एक लड़का उन की तरफ आते हुए बोला.
‘‘हाय, अविनाश,’’ कविता बोली.
‘‘रोल नंबर देख लिया क्या?’’ अविनाश ने पूछा.
‘‘नहीं, अभी नहीं.’’
‘‘सभी अपने रोल नंबर दो, मैं देखता हूं, किस रूम में है तुम्हारी सीट,’’ अविनाश ने सब के रोल नंबर ले लिए.
सभी लड़कियां पेड़ के नीचे खडे़ हो कर अविनाश का इंतजार करते हुए बातें करने लगीं.
‘‘यह लो, तुम्हारा रोल नंबर रूम नं. 4 में और बाकी सभी का रूम नं. 5 में है,’’ अविनाश ने आ कर बताया.
‘‘ओह, मेरा रोल नंबर तुम सब के साथ नहीं आया,’’ कविता निराश हो कर बोली.
सभी एकदूसरे को पेपर के लिए शुभकामनाएं बोल कर अपनेअपने कमरे की तरफ लपकीं. कविता के कमरे में कुछ छात्र उसी विद्यालय के और कुछ उस के विद्यालय के थे. उस के पास ही मोहित नाम का लड़का बैठा था.
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पेपरों के दौरान मोहित से उस की हैलोहाय शुरू हुई. मोहित कसबे के मशहूर वकील का इकलौता लड़का था. वह बहुत स्मार्ट और अमीर घर का था. उस पर उस के विद्यालय की कई लड़कियां मरती थीं पर वह किसी को भाव नहीं देता था. पेपरों के दौरान उसे कविता सब से अलग और अच्छी लगी.
कविता को मोहित का बात करना अच्छा लगता. पहली बार उसे भी कोई लड़का अच्छा लगा था. मोहित रोज किसी न किसी बहाने से कविता के ग्रुप से बात करता. सभी को उस का बात करना अच्छा लगता.
अंतिम पेपर के दिन मोहित ने कविता को एक खत और एक फूल दिया. कविता कुछ समझ नहीं पाई, ‘‘मोहित, क्या है यह?’’
‘‘घर जा कर पढ़ना, सब पता लग जाएगा. पर देखो, मेरे ऊपर गुस्सा मत करना. इस में जो लिखा है, सब सच है,’’ मोहित प्यार से बोला.
कविता ने लड़कियों की नजर बचा कर वह पत्र बैग में डाला और बस का इंतजार कर रही सहेलियों के पास पहुंच गई.
‘‘अरे कविता, बड़ी देर कर दी, पेपर कैसा हुआ?’’
‘‘अच्छा हुआ, मम्मी का दिया परांठा खाने में देर हो गई.’’
‘‘मोहित क्या कह रहा था?’’
‘‘कुछ नहीं, ऐसे ही पूछ रहा था
कि इस के बाद किस कालेज में ऐडमिशन लोगी? मैं ने कहा द्रोणाचार्य कालेज में.’’
‘‘वह कहां लेगा?’’ लड़कियों ने पूछा.
‘‘मुझे क्या पता, मैं ने ज्यादा बात नहीं की,’’ कविता बोली और तभी सामने बस रुकी. लड़कियां बस की तरफ भागीं, कविता ने पीछे मुड़ कर देखा. मोहित पेड़ के नीचे बैठा उसी को देख रहा था. मोहित ने हाथ उठा कर बाय का इशारा किया, पर कविता ने सिर झुकाया और बस में चढ़ गई. उस के मन में पत्र को ले कर उत्सुकता थी. पूरे रास्ते उस ने ज्यादा कुछ नहीं कहा, बस कुछ सोचती रही.
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‘‘भैया रोकना,’’ लड़कियां बोलीं.
कंडक्टर ने सीटी बजाई. बस रुकी और सभी लड़कियां उतर गईं.
‘‘अच्छा, डेढ़ महीने बाद जाएंगे, ऐडमिशन लेने कालेज में. फोन पर बता देंगे कि कितने बजे जाना है.’’
इस के साथ ही सभी एकदूसरे को बाय कर के अपनेअपने घर की तरफ चले गए.
कविता के घर में घुसते ही, ‘‘मुन्नी बेटा, पेपर कैसा हुआ?’’ मम्मी ने पूछा.
‘‘बहुत अच्छा. मम्मी, भूख लगी है, खाना दो.’’
‘‘ठीक है, तुम हाथमुंह धो लो. मैं खाना गरम कर के परोसती हूं.’’
खाना खा कर कविता सीधे अपने कमरे में चली गई, दरवाजा बंद किया और जल्दी से चिट्ठी निकाल कर पढ़ने लगी :
‘डियर कविता,
जब से तुम्हें देखा है, मुझे नींद नहीं आती. तुम से मिलने का मन करता है. तुम बहुत अच्छी हो. क्या तुम मुझ से दोस्ती करोगी? मेरा नं. 9813000××× है. मुझे फोन करना. मेरी बातों का बुरा मत मानना. पर यह सच है, मुझे तुम से प्यार हो
गया है. तुम्हारे फोन का बेसब्री से इंतजार करूंगा.
बाय, टेक केयर.’
कविता का रोमरोम सिहर उठा पत्र को पढ़तेपढ़ते. वह खुश भी हुई साथ में उसे एक अनजाना सा भय भी लगा. उसे भी मोहित अच्छा लगा था. वह साधारण परिवार से थी और मोहित कसबे के जानेमाने वकील का बेटा था. उन की अपनी गाडि़यां, बंगला और दादा की थोक की 2 दुकानें थीं और बहुत सारे नौकरचाकर.
कविता को अपने ऊपर बहुत गुमान हुआ कि कसबे की फैशनेबल लड़कियों में मोहित को वह पसंद आई. वह खुश थी. कविता ने शाम को किसी बहाने अपनी ताई से फोन मांगा.
‘‘बड़ी मम्मी, मीनू को फोन करना है, आप का फोन कहां है?’’
‘‘अंदर कमरे में रखा है, ले ले.’’
उस की ताई अपनी बेटी नीता और संगीता को साथ ले कर बाहर चली गईं. कविता ने छत पर जा कर मोहित का नंबर मिलाया.
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‘‘हैलो,’’ कविता धीरे से बोली.
‘‘हैलो, कविता,’’ मोहित की आवाज में उत्साह छलक रहा था.
‘‘तुम ने कैसे पहचाना कि कविता का फोन है?’’
‘‘मुझे पता लग जाता है. मैं तुम्हारे फोन का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. बड़ी देर लगा दी सोचने में, फिर क्या सोचा?’’
‘‘मुझे डर लग रहा है.’’
‘‘अरे, सिर्फ दोस्ती करनी है और तुम्हें डर लग रहा है? बोलो भी अब.’’
‘‘ठीक है, मुझे मंजूर है,’’ कविता ने इतना कहते ही फोन काट दिया. उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. उसे मोहित की आवाज से शरीर में कुछ अजीब सा एहसास, सिहरन सी महसूस हुई.
उस के बाद हर पल वह मोहित के बारे में न जाने क्याक्या सोचती रही.
उधर मोहित का भी ऐसा ही हाल था. रात ठीक 12 बजे उस ने कविता के नंबर पर फोन किया, ‘‘हैलो.’’
दूसरी तरफ कविता के ताऊजी ने नींद से उठ कर हड़बड़ाहट के साथ फोन उठाया और बोले, ‘‘हैलो.’’
आवाज सुनते ही दूसरी तरफ से फोन कट हो गया.
‘‘शायद किसी से रौंग नंबर लग गया होगा,’’ ताऊजी बड़बड़ाए और सो गए.
दूसरे दिन कविता की मौसी के घर में जागरण था. वह सुबह ही वहां अपनी बहनों के साथ चली गई. सारा दिन उन्होंने जागरण की तैयारियों में मौसी की सहायता की और पूरी रात जागरण चला. बीचबीच में उस का ध्यान मोहित की तरफ जा रहा था.
अगले दिन सुबह उठते ही उस ने मौसी का फोन लिया और छत पर जा कर मोहित को फोन किया.
‘‘हैलो, मोहित.’’
‘‘अरे कहां रह गईं तुम? हद है यार, एक फोन तक नहीं कर सकती थीं क्या? कहां थीं तुम?’’ मोहित बोलता गया.
‘‘मोहित, मैं ने फोन तो किया.’’
‘‘क्या खाक किया? मैं ने मंगलवार को तुम्हारे नंबर पर फोन किया था, शायद तुम्हारे पापा ने फोन उठाया था.’’
‘‘क्या…’’ कविता के मुंह से चीख सी निकल पड़ी.
‘‘कब किया तुम ने बेवकूफ, वह मेरे ताऊजी का फोन है. दूसरी बार मत करना, तुम मुझे मरवाओगे.’’
‘‘कविता, अपना नंबर दो,’’ मोहित बोला.
मुन्नी बदनाम हुई
‘‘मेरा नंबर, मेरे पास तो फोन ही नहीं है.’’
‘‘ओह,’’ मोहित के मुंह से निकला, ‘‘क्या तुम आज कसबे में आ सकती हो?’’
‘‘क्यों?’’
‘‘आ सकती हो क्या?’’ वह बिना उत्तर दिए बोला.
कविता सोचने लगी फिर बोली, ‘‘आज तो नहीं पर कल आ सकती हूं.’’
‘‘ठीक है, राजू चाय वाले के ढाबे के बाहर सुबह 9 बजे मिलना, ठीक है?’’
‘‘ठीक है,’’ कविता बोली.
कविता ने यह सोचते हुए रात गुजारी कि मोहित को क्या काम होगा. उस का भी मोहित से मिलने का बहुत मन था. सुबह उठ कर कविता ने मम्मी से कहा, ‘‘मम्मी, मुझे मेहंदी और अपना कुछ सामान लाना है, मुझे पैसे दे देना. मैं 8.30 बजे की बस में जाऊंगी.’’
‘‘पापा से मांग ले जितने की जरूरत है और घर जल्दी आ जाना.’’
‘‘ठीक है.’’
तैयार हो कर कविता बड़ी देर तक शीशे के आगे खुद को निहारती रही. उस ने सफेद रंग का सूट पहना, बालों को खुला छोड़ा, पर्स लिया और बस पकड़ कर राजू के सामने उतर गई. 9 बज कर 10 मिनट हो चुके थे पर मोहित कहीं नहीं दिख रहा था. तभी उसे कार का हौर्न सुनाई दिया. देखा, मोहित कार चला रहा था और उस ने ढाबे से थोड़ा आगे कार रोक दी.
मोहित ने दरवाजा खोला, ‘‘कविता, बैठो.’’
कविता निसंकोच बैठ गई, ‘‘और कैसी हो?’’
‘‘ठीक हूं, तुम कैसे हो?’’
‘‘मैं ठीक नहीं हूं,’’ मोहित ने मुसकरा कर कहा तो कविता शरमा सी गई.
‘‘कविता, तुम्हारे लिए कुछ है, यह बैग उठाओ और खोलो.’’
‘‘क्या है?’’
‘‘खोलो और खुद ही देख लो,’’ कविता ने बैग खोला. उस में मोबाइल फोन था.
‘‘फोन, पर मैं इसे नहीं रख सकती, मम्मीपापा गुस्सा करेंगे.’’
‘‘मम्मीपापा को बताने को कौन कह रहा है. छिपा कर रखना. मैं रात को फोन किया करूंगा.’’
कविता ने ज्यादा नानुकुर नहीं की. वह बहुत खुश थी. मोहित के साथ वाली सीट पर बैठेबैठे कविता के सिर में झुरझुरी हो रही थी. उसे लग रहा था जैसे वह पिघल रही है.
‘‘मोहित, कार को वापस बस स्टैंड ले चलो, मुझे घर जाना है, रात को बात करेंगे.’’
‘‘जल्दी क्या है, थोड़ी देर बाद
चली जाना.’’
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‘‘नहीं, मम्मी गुस्सा करेंगी.’’
मोहित ने कविता के मुंह पर गिरे बालों को गाड़ी चलातेचलाते अपने हाथ से पीछे किया. अब तो कविता का बुरा हाल था. मोहित का स्पर्श उसे अंदर तक करंट लगा गया. वह कुछ नहीं बोल सकी. मोहित ने उस की झुकी नजरें और शर्माता चेहरा देखा. उसे वह बहुत ही अच्छी लग रही थी. उस ने उसे बस स्टौप तक छोड़ा.
दोनों ने मुसकरा कर एकदूसरे से विदा ली.
अब दोनों के बीच फोन का दौर शुरू हो गया. 2 महीने कब बीत गए, उन्हें पता ही नहीं चला. घर में कविता के फोन की किसी को खबर तक न हुई. दोनों रातभर बातें करते. कालेज में ऐडमिशन शुरू हो गए थे. कविता और उस की बाकी सहेलियों ने भी ऐडमिशन ले लिए थे.
काफी दिनों बाद दोनों मिलने वाले थे, रोज फोन पर बात करने के बाद भी उन को एकदूसरे से मिलनेदेखने की ललक थी. कविता और मीनू ने साइंस और बाकी सहेलियों ने कौमर्स. मोहित ने भी साइंस में ऐडमिशन लिया. कुछ दिनों बाद मीनू की घर में गिरने से टांग की हड्डी टूट गई. वह 2 महीने कालेज न जा सकी. इस बात का फायदा कविता और मोहित ने पूरापूरा उठाया. मोहित कार ले कर आता. दोनों कालेज से बंक मार कर घूमने चले जाते. उम्र के इस मोड़ पर दोनों को बहकने में देर न लगी. कविता, मोहित पर खुद से ज्यादा यकीन करने लगी थी.
समय बीतता गया. एक दिन मोहित उस को घुमाने ऐसी जगह ले गया जहां जंगल था. दोनों गाड़ी से उतरे और फिर मोहित ने उस की पीठ पर हाथ रखा. कविता को करंट सा लगा, साथ में कुछ अच्छा भी लगा. वह मोहित पर विश्वास करती थी. मोहित उस के शरीर के विभिन्न हिस्सों को छूने लगा. अब तो हद हो गई. फिर मोहित ने कुछ ऐसा किया कि कविता ने कहा, ‘‘मोहित, ऐसा न करो प्लीज.’’
‘‘कुछ नहीं होगा, कविता मेरा विश्वास करो, मैं सिर्फ तुम्हीं से शादी करूंगा. क्या तुम्हें मेरा भरोसा नहीं?’’
कविता मोहित के गले लग गई. शायद दोनों के कदम बहकने के लिए इतना काफी था. दोनों का जीवन बदल गया. ऐसी मुलाकातों का सिलसिला चलता रहा. अब तो मोहित उसे होटलों में ले कर जाता. 3 साल तक यह सिलसिला चलता रहा. अब वे एकदूसरे के बिना रह नहीं पाते थे.
मोहित के मांबाप को कविता पसंद थी और वे दोनों की शादी के लिए राजी हो गए. वे मोहित की खुशी में खुश थे. दोनों को अब कोई डर न रहा.
कुछ समय के बाद मोहित का लैपटौप खराब हो गया. उस ने उसे चंडीगढ़ भेजा. कुछ दिनों में उस का लैपटौप ठीक हो गया. मोहित के पापा ने उसे ला की पढ़ाई करने के लिए चंडीगढ़ भेजने का निर्णय लिया. कविता का मन दुखी हो गया तो मोहित ने कहा कि तुम भी चल पड़ो. उन्होंने झूठमूठ की जौब का बहाना बनाया. कविता ने जैसेतैसे अपने मम्मीपापा को मना लिया. उस के परिवार ने पहले तो आनाकानी की फिर सैलरी पैकेज अच्छा देख कर भेजने की स्वीकृति दे दी. वहां दोनों साथ रहने लगे. इसी दौरान एक दिन मोहित के कालेज में एक लड़के ने उसे टौंट मारी, ‘‘यार, तुम तो बहुत छिपेरुस्तम निकले. क्या मजे लिए, कौन है यह लड़की, हमें भी मिलाओ कभी.’’
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मोहित समझ न सका कौन सी लड़की की बात उस का दोस्त कर रहा है. उस ने अपनी भौंहें सिकोड़ते हुए पूछा,
‘‘कौन लड़की?’’
‘‘वही लड़की जिस के साथ तुम…’’
‘‘अरे, क्यों मसखरी कर रहा है. कोई लड़कीवड़की नहीं. तू भी न, ऐसे ही बोले जा रहा है.’’
‘‘अच्छा, तो यह कौन है, निकुल के फोन में?’’ कविता और मोहित के एमएमएस का पूरा जखीरा था. उस के पैरों तले जमीन खिसक गई.
उस ने हैरानी से पूछा, ‘‘यह तुम्हें कहां से मिला?’’
निकुल ने कहा, ‘‘यार, यह कालेज के हर एक लड़के के पास है और सुनने में आया है कि दिल्ली, चंडीगढ़, मंडी में इस की बहुत डिमांड है.’’
मोहित का हाल देखने लायक था. वह पसीने से तरबतर हो गया. पसीना पोंछ कर वह जैसेतैसे कालेज से निकला और सीधा कविता के पास गया. सारी बातें सुन कर कविता रोने लगी कि अब क्या होगा. मोहित ने कहा कि फिक्र मत करो. मैं तुम से ही शादी करूंगा लेकिन अब यहां रहना ठीक नहीं. दोनों ने घर वापस जाने का मन बनाया. दोनों ने अपनाअपना सामान पैक किया और घर से निकल पड़े. कविता बहुत डरी हुई थी.
यह क्या हो गया. फिर पता चला जहां लैपटौप ठीक करने को दिया था वहां से उन के ये कारनामे लीक हुए थे. पर अब क्या किया जा सकता था. घर जा कर मोहित ने शादी का प्रस्ताव रखा. सभी खुशी से रिश्ता ले कर कविता के घर गए. बात पक्की हुई, शादी की तारीख तय हुई लेकिन उन के प्यार को शायद उन की अपनी ही नजर लग गई. 2 दिन बाद वह मार्केट में खड़ा था, उस का दोस्त मुकेश लपक कर उस के पास आया और बोला, ‘‘मोहित, यार, भाभी के साथ शादी के पहले काफी मस्ती की तू ने.’’
‘‘क्या मतलब?’’
‘‘भोले मियां, तुम्हारा मस्ती भरा एमएमएस सारे कसबे के लड़कों के फोन में पहुंच चुका है.’’
मोहित को अब एहसास हुआ कि सभी उस की तरफ अजीब सी नजरों से क्यों देख रहे थे. मोहित के पिता तक बात पहुंची, उन्होंने शादी से मना कर दिया. फिर भी मोहित अपनी बात पर अडिग था. उस ने कविता से कोर्ट मैरिज कर ली पर अब वे कहीं आजा नहीं सकते थे. सभी ने उन का मजाक उड़ाया. उसे अपना भविष्य अंधकारमय होता दिख रहा था और कुछ ही दिनों में उस ने कविता से तलाक ले लिया.
कविता न घर की रही न घाट की, क्योंकि वह न घर जा सकती थी और न कहीं और. उस ने अपनी खुशियों के महल को स्वयं धराशायी होते देखा. वह पूरी तरह से टूट गई और खुद की नजरों से गिर गई. वह खुद को ऐसी सजा देना चाहती थी कि वह हर दिन एक मौत
मरे क्योंकि उसे प्यार करने वाला मोहित भी उस के पास न था. उस ने सोचा, लड़कों का क्या जाता है, बदनाम तो लड़कियां होती हैं. लड़के तो इतना होने पर भी सिर उठा कर चलते हैं पर लड़कियां कहां जाएं. उन को समाज जीने नहीं देता.
कविता की एक गलती से उस के परिवार की बहुत बदनामी हुई.
कई दिनों तक उस के मातापिता घर से बाहर नहीं निकले. कई बड़ेबुजुर्गों ने उन्हें समझाया, हिम्मत दी तब कहीं जा कर वे घर से बाहर निकले. जिन की कविता के परिवार वालों से नहीं बनती थी वे अपने घरों में ‘मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए…’ गाना जोरजोर से बजाते थे. पर अब कविता का परिवार करता भी तो क्या. उन की बच्ची की एक गलती ने उन्हें अंदर तक तोड़ कर रख दिया था. और लोग धीरेधीरे यह बात भूल से गए.
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