‘‘यह क्या है मिट्ठी? 2 दिन रह गए हैं तुम्हारी विदाई को और तुम यहां बैठी खीखी कर रही हो, नाक कटवाओगी क्या? तुम लड़कियों को कुछ काम नहीं है क्या? अरे, शादी का घर है, सैंकड़ों काम पड़े हैं, थोड़े हाथपैर चलाओगी तो छोटी नहीं हो जाओगी,’’ नीरा ने अपनी बेटी मिट्ठी और उस की सहेलियों को इस तरह लताड़ा कि सब सकते में आ गईं. सहेलियां उठ कर कमरे से बाहर निकल गईं और इधरउधर कार्य करने का दिखावा करने लगीं. मिट्ठी वहीं बैठी रही और अपनी मां को अपलक देखती रही.
‘‘अब हम क्या करें, मां, कुछ काम भी तो करने नहीं देती हैं आप? हमारे हंसनेबोलने से आप की नाक कटने का खतरा कैसे पैदा हो गया, यह भी हमारी समझ में नहीं आया.’’
‘‘हांहां, तुम्हारी समझ में क्यों आने लगा. अकेले में तुम्हें समझा सकूं, इसीलिए उन लड़कियों को यहां से भगा दिया. हमारे जमाने में तो विवाह से
10-12 दिनों पहले से ही लड़कियां धीरेधीरे स्वर में रोने लगती थीं. आनेजाने वाले भी लड़की से गले मिल कर दो आंसू बहा लेते थे कि लड़की अब पराई होने जा रही है. माना, अब नया जमाना है पर 2 दिन पहले तो धीरेधीरे रो ही सकती हो. नहीं तो लोग क्या कहेंगे कि लड़की को शादी की बड़ी खुशी है.’’
‘‘वाह मां, किस युग की बातें कर रही हैं आप, आजकल विदाई के समय कोई नहीं रोता. हमारी बात तो आप जाने दीजिए, पर आजकल की अधिकतर लड़कियां पढ़ीलिखी हैं, अपने पैरों पर खड़ी हैं. वे इन पुराने ढकोसलों में विश्वास नहीं करतीं.’’
‘‘बदल गया होगा जमाना, पर इस महल्ले में तो सब जैसे का तैसा है, यहां लोग अभी भी पुरानी परंपराओं का पालन करते हैं. हर विवाह के बाद वर्षों यह चर्चा चलती रहती है कि लड़की विदाई के समय कितना रोई. उसी से तो मायके के प्रति लगाव का पता चलता है. अच्छा, मैं चलती हूं, ढेरों काम पड़े हैं, पर अब ठहाके सुनाई न दें, इस का ध्यान रखना,’’ कहती हुई नीरा चली गई थीं.
उन के जाते ही मिट्ठी का मन हुआ कि वह इतना जोर से खिलखिला कर हंसे कि सारा घर कांप जाए. विदाई के समय रोने की प्रथा को इतनी गंभीरता से तो शायद ही कभी किसी ने लिया हो. 40 वर्ष की उम्र के करीब पहुंच रही है मिट्ठी, अब क्या रोना और क्या हंसना. लेकिन मां नहीं समझेंगी.
आज भी वह दिन मिट्ठी की यादों में उतना ही ताजा है, जब पहली बार उसे वर पक्ष के लोग देखने आए थे. उन दिनों तो उस का अपना अलग ही स्वप्निल संसार था और वास्तविकता से उस का दूरदूर कोई वास्ता नहीं था. घूमनाफिरना, सिनेमा देखना और उत्सवों व विवाहों में भाग लेना, यही उस की दिनचर्या थी. कालेज जाना भी इस में शामिल था पर उस में पढ़ाई से अधिक महत्त्व सहेलियों, फिल्मों और गपशप का था. कालेज जाना तो विवाह होने तक के समय का सदुपयोग मात्र था.
भावी वर को देख कर तो उस की आंखें चौंधिया गई थीं. वैसा सुदर्शन युवक आज तक उस की नजरों के सामने से नहीं गुजरा. साथ ही ऊंची नौकरी, संपन्न परिवार, उस की तो मानो रातोंरात काया ही पलट गईर् थी.
पर जब एक सप्ताह बीतने पर भी उधर से कोई जवाब नहीं मिला था तो सब का माथा ठनका था. शीघ्र ही देवदत्त बाबू से, जो मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे थे, संपर्क किया गया तो वे स्वयं ही चले आए और आते ही मिट्ठी के पिता को ऐसी खरीखोटी सुनाई थी कि बेचारे के मुख से आवाज नहीं निकली थी.
‘इतने ऊंचे स्तर का घरवर और आप ने उन्हें अच्छे दहेज तक का प्रलोभन नहीं दिया? पूरी बिरादरी में कहीं देखा है ऐसा सजीला युवक?’ देवदत्त बाबू बोले थे.
‘लेकिन देवदत्त बाबू, देखनेसुनने में तो अपनी मिट्ठी भी किसी से कम नहीं है,’ उस के पिता सर्वेश्वर बाबू बोले.
‘हां जी, आप की मिट्ठी तो परी है परी. कल कोई राजकुमार आएगा और फोकट में उसे ब्याह कर ले जाएगा.’ देवदत्त बाबू के स्वर ने अंदर अपने कमरे में बैठी मिट्ठी को पूरी तरह से लहूलुहान कर दिया था और पता नहीं सर्वेश्वर बाबू पर क्या बीती थी.
ये भी पढ़ें- हिंदी कहानी, स्मिता
‘मैं ने तो फोकट में विवाह करने की बात कभी की नहीं, मैं ने आप से पहले ही कहा था कि हम 3 लाख रुपए तक खर्च करने को तैयार हैं,’ सर्वेश्वर बाबू दबे स्वर में बोले थे.
‘सच कहूं? 3 लाख रुपए की बात सुन कर देर तक हंसते रहे थे लड़के के घर वाले. लड़के की मां ने तो सुना ही दिया कि 3 लाख रुपए में कहीं शादी होती है. अरे, इतने में तो ठीक से बरात की खातिरदारी भी नहीं हो सकेगी,’ देवदत्त बाबू ने एक और वार किया था.
‘इस से अधिक तो मेरे लिए संभव नहीं हो सकेगा. आप तो जानते हैं कि मिट्ठी से छोटे 4 और भाईबहन हैं. बहुत कोशिश करने पर 3 का साढ़े 3 लाख रुपए हो जाएगा.’
‘फिर तो आप उसी स्तर का वर ढूंढ़ लीजिए अपनी मिट्ठी के लिए. आप तो जानते ही हैं कि जितना गुड़ डालोगे उतना ही मीठा होगा. वैसे भी उस लड़के का संबंध तय हो गया और 15 लाख रुपए पर बात पक्की हुईर् है. 5-6 लाख रुपए का तो केवल तिलक आएगा,’ कहते हुए देवदत्त बाबू उठ खड़े हुए थे.
मिट्ठी ने बीए पास कर एमए में दाखिला ले लिया था. उधर सर्वेश्वर बाबू ने वर खोजो अभियान तेज कर दिया था. हर माह 2-3 भावी वर और उस के मातापिता उसे देखने आते. पर कुछ न कुछ ऐसा हो जाता था कि बात बनतेबनते रह जाती. सर्वेश्वर बाबू ने अब यह कहना भी बंद कर दिया था कि वे दहेज प्रथा में विश्वास नहीं करते और प्रस्तावित दहेज की रकम बढ़ा कर 4 लाख रुपए कर दी थी. पर जब सभी प्रयत्नों के बाद भी वह बेटी के लिए एक अदद वर नहीं ढूंढ़ पाए तो सब का क्रोध मिट्ठी पर उतरने लगा था. उस की दादीमां ने तो एक दिन खुलेआम ऐलान भी कर दिया था कि घर में कन्या पैदा होने से बड़ा अभिशाप कोई और नहीं है.
अगले भाग में पढ़ें- पुष्पी ने तो मुग्ध हो कर मिट्ठी की उंगलियां ही चूम ली थीं.