Movie Review: थप्पड़
कलाकार: तापसी पन्नू, पवैल गुलाटी, माया सराओ, रत्ना पाठक, तनवी आजमी, कुमुद मिश्रा, गीतिका वैद्य, राम कपूर और दीया मिर्जा आदि
निर्देशक: अनुभव सिन्हा
निर्माता: भूषण कुमार, अनुभव सिन्हा, कृष्ण कुमार
रेटिंग: ***1/2
दिल्ली की गलियों पर मैंगो आइस्क्रीम खाती अलग अलग परिवेश में रहने वाली और अलग अलग ख्यालात वाली महिलाओं के साथ फिल्म थप्पड़ (Review film thappad)शुरु होती है। एक कोलाज है छह अलग अलग महिलाओं की कहानियों को इस आइस्क्रीम के सहारे जोड़ने का। अनुभव सिन्हा की फिल्म मेकिंग का कोलाज भी किसी आइस्क्रीम कैंडी जैसा ही रहा है। कहां तो तुम बिन, तुम बिन 2, दस, तथास्तु, कैश और रा वन जैसी फिल्में और कहां मुल्क, आर्टिकल 15 और थप्पड़ जैसी फिल्में। अनुराग के भीतर का असल फिल्म निर्देशक उनके 50 साल के होने के बाद ही जागा है। पिछले दो साल में वह तीन फिल्में ऐसी बना चुके हैं जिनका जिक्र हिंदी सिनेमा के इतिहास में पीढ़ियों तक होता रहेगा।
थप्पड़ धैर्य के साथ देखी जाने वाली फिल्म है। एक अमृता है जो अपने पति का ख्याल एक मां की तरह रखती है। एक उसका पति है विक्रम जो दिन रात काम के नशे में चूर रहता है। दफ्तर की सियासत कैसे घरों को बर्बाद करती है, इसका आहिस्ते से जिक्र करती फिल्म अपने उस बिंदु पर आती है, जिससे इसका नामकरण हुआ है। फिल्म घरेलू हिंसा से ज्यादा उस पुरुष अहम के बारे में है जिसके बारे में चर्चा कम ही होती है। अमृता की बाई को उसका पति सिर्फ इसलिए मारता है क्योंकि वह उसकी बात काट देती है। अमृता की मां ने गायिकी को इसलिए तिलांजलि दे दी क्योंकि मां ने समझाया घर जरूरी है। अमृता की सास अपने बेटे के लिए अपने पति से अलग रहती है। तापसी की वकील अपने पति की शोहरत में घुटती है, वह एक शेफ से अपना दुख दर्द साझा करती है।
शुरू में तो फिल्म काफी धीमी रफ्तार से चलती है। थिएटर के अंधेरे में खुसर पुसर होती रहती है कि जिस वजह से विक्रम अपनी पत्नी अमृता को थप्पड़ मारता है वह वैसी हिंसा नहीं है कि जिस पर कोई पत्नी घर छोड़ जाए। और, वह भी तीन चार दिन बाद। लेकिन, मुद्दा यहां थप्पड़ मारने का नहीं है। मुद्दा है कि थप्पड़ मारा क्यों? इस बात को अनुभव अलग अलग किरदारों के जरिए अलग अलग दृष्टिकोणों से उभारते हैं। कानूनी दांवपेंच भी पारिवारिक ताने बाने पर तीखी टिप्पणी करते हैं। फिल्म अपनी पकड़ धीरे धीरे बनाती है और फिर अमृता की गोद भराई वाले दृश्य में यह अपने चरम पर पहुंचती है। यह एक दृश्य फिल्म की टिकट के पैसे वसूल करा देना का माद्दा रखता है। ये फिल्म हर मां, हर बेटी और हर पत्नी को देखनी ही चाहिए और वह भी अपने बेटे, अपने पिता या अपने पति के साथ।
अनुराग की बढ़ती उम्र के साथ आ रही उनके भीतर आ रही संजीदगी उनके सिनेमा में दिखने लगी है। रा वन के लिए शाहरुख ने उनका नाम फाइनल कर लिया है, ये बात कभी उन्हें दस की शूटिंग के दौरान हॉटमेल चैट पर पता चली थी। लेकिन, तब से अब तक के अनुभव का दृष्टिकोण सिनेमा को लेकर पूरा 180 अंश घूम गया है। अच्छा होता है आत्मावलोकन करना। और, सिनेमा का लिए अच्छा होता है कभी म्यूजिक वीडियो बनाने वाले निर्देशक का ये समझना कि वह सिनेमा किसके लिए बना रहा है? अनुराग के भीतर का बागी मुल्क, आर्टिकल 15 और अब थप्पड़ में कैमरे के जरिए बाहर आया है। पहले धर्म, फिर समाज और अब परिवार। सिनेमा की ये एक अनूठी सिनेत्रयी है।
थप्पड़ कुछ बेहतरीन कलाकारों की अद्भुत अदाकारी का भी कोलाज है। तापसी पन्नू ने दक्षिण भारतीय सिनेमा में जो किया, ये उससे कहीं अलग है। हिंदी सिनेमा में वह धीरे धीरे अपनी ऐसी जगह बना चुकी हैं जहां उनका मुकाबला किसी से नहीं है। वह कंगना की नकल बिल्कुल नहीं करती हैं, ये बात उन पर तोहमत लगाने वालों को इस फिल्म से और साफ होगी। फिल्म की खोज हैं, पवैल गुलाटी। अनुराग कश्यप की टीवी सीरीज युद्ध से अपना करियर शुरू करने वाले पवैल की ये पहली फिल्म है। और, उन्हें अगले साल के सारे बेस्ट डेब्यू अवार्ड मिलें तो अचरज नहीं होना चाहिए। कुमुद मिश्रा, रत्ना पाठक, गीतिका वैद्य के अलावा माया सराओ ने बेहतरीन अभिनय किया है। दूसरों के लिए अदालत में लड़ने वाली एक वकील का कैसे घर में ही दम घुटता है, इसे निभाने में उन्होंने कमाल का काम किया है।
Taapsee pannu Pic |
Thappad, Taapsee Pannu आर्टिकल 15 में जो काम इसके लेखक गौरव सोलंकी ने किया वही काम थप्पड़ के लिए मृणमयी लागू ने किया है। संवेदनाओं का ऐसा ज्वार हिंदी सिनेमा में इधर कम ही देखने को मिला है। लेखन सिनेमा का सबसे मुश्किल काम है। लेखकों की ये नई पौध ही नया सिनेमा तैयार कर रही है। फिल्म बहुत अच्छी है, बस दिक्कत ये है कि इस साल छपाक और पंगा जैसी अच्छी फिल्में भी देखने दर्शक सिनेमा हॉल तक नहीं गए। असली लड़ाई थप्पड़ की बस इसी सोच से है जो अच्छे सिनेमा की बॉक्स ऑफिस कामयाबी में फिर से बाधक बनने लगी है। अमर उजाला मूवी रिव्यू में फिल्म थप्पड़ को मिलते हैं साढ़े तीन स्टार।