Best Migration And Majdoor Shayari Collection ‘पलायन’ पर कहे गए शेर |
‘मजदूरों’ पर शायरों के अल्फ़ाज़
सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते
- मुनव्वर राना
कुचल कुचल के न फ़ुटपाथ को चलो इतना
यहाँ पे रात को मज़दूर ख़्वाब देखते हैं
- अहमद सलमान
नींद आएगी भला कैसे उसे शाम के बाद
रोटियां भी न मयस्सर हों जिसे काम के बाद
- अज़हर इक़बाल
दौलत का फ़लक तोड़ के आलम की जबीं पर
मज़दूर की क़िस्मत के सितारे निकल आए
- नुशूर वाहिदी
मिल मालिक के कुत्ते भी चर्बीले हैं
लेकिन मज़दूरों के चेहरे पीले हैं
- तनवीर सिप्रा
मैंने 'अनवर' इस लिए बाँधी कलाई पर घड़ी
वक़्त पूछेंगे कई मज़दूर भी रस्ते के बीच
- अनवर मसूद
सरों पे ओढ़ के मज़दूर धूप की चादर
ख़ुद अपने सर पे उसे साएबाँ समझने लगे
- शारिब मौरान्वी
ज़िंदगी अब इस क़दर सफ़्फ़ाक हो जाएगी क्या
भूक ही मज़दूर की ख़ूराक हो जाएगी क्या
- रज़ा मौरान्वी
शहर में मज़दूर जैसा दर-ब-दर कोई नहीं
जिस ने सब के घर बनाए उस का घर कोई नहीं
- अज्ञात
हम हैं मज़दूर हमें कौन सहारा देगा
हम तो मिट कर भी सहारा नहीं माँगा करते
- राही शहाबी
उर्दू ज़ुबान में पलायन को हिजरत कहते हैं।
हमें हिजरत समझ में इतनी आई
परिंदा आब-ओ-दाना चाहता है
- ओबैदुर रहमान
मुझे भी लम्हा-ए-हिजरत ने कर दिया तक़्सीम
निगाह घर की तरफ़ है क़दम सफ़र की तरफ़
- शहपर रसूल
हिजरतों में हूजुरियों के जतन
पांव को दूरियों ने घेरा है
- नासिर शहज़ाद
कुछ बे-ठिकाना करती रहीं हिजरतें मुदाम
कुछ मेरी वहशतों ने मुझे दर-ब-दर किया
- साबिर ज़फ़र
ये हिजरतों के तमाशे, ये क़र्ज़ रिश्तों के
मैं ख़ुद को जोड़ते रहने में टूट जाता हूँ
- मुईद रशीदी
अभी तो एक वतन छोड़ कर ही निकले हैं
हनूज़ देखनी बाक़ी हैं हिजरतें क्या क्या
- सबा अकबराबादी
दर्द-ए-हिजरत के सताए हुए लोगों को कहीं
साया-ए-दर भी नज़र आए तो घर लगता है
- बख़्श लाइलपूरी
लम्हा-ब-लम्हा पांव से लिपटी हैं हिजरतें
कैसे लगाते नाम की तख़्ती मकान पर
- मुईन शादाब
मैं कि ख़ाना-ब-दोश हूं मुझ को
हिजरतों का मलाल क्या होगा
- शहनाज़ परवीन शाज़ी
हिजरत करने वालों देखो
पीछे मलबा रह जाता है
- जानां मलिक