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Ek Nanhi Pari Part1-3 Hindi Kahani Best Hindi Story एक नन्ही परी

Ek Nanhi Pari Part1-3 Hindi Kahani Best Hindi Story एक नन्ही परी
Ek Nanhi Pari Part1-3 Hindi Kahani Best Hindi Story एक नन्ही परी



विनीता कठघरे में खड़े राम नरेश को गौर से देख रही थीं पर उन्हें याद नहीं आ रहा था कि इसे कहां देखा है. साफ रंग, बाल खिचड़ी और भोले चेहरे पर उम्र की थकान थी. एक नन्ही परी: भाग 1

विनीता कठघरे में खड़े राम नरेश को गौर से देख रही थीं पर उन्हें याद नहीं आ रहा था कि इसे कहां देखा है. साफ रंग, बाल खिचड़ी और भोले चेहरे पर उम्र की थकान थी. साथ ही, चेहरे पर उदासी की लकीरें थीं. वह उन के चैंबर में अपराधी की हैसियत से खड़ा था. वह आत्मविश्वासविहीन था. लग रहा था जैसे उसे दुनिया से कोई मतलब ही नहीं. वह जैसे अपना बचाव करना ही नहीं चाहता था. कंधे झुके थे. शरीर कमजोर था. वह एक गरीब और निरीह व्यक्ति था. लगता था जैसे बिना सुने और समझे हर गुनाह कुबूल कर रहा था. ऐसा अपराधी उन्होंने आज तक नहीं देखा था. उस की पथराई आखों में अजीब सा सूनापन था, जैसे वे निर्जीव हों.

लगता था वह जानबूझ कर मौत की ओर कदम बढ़ा रहा था. जज साहिबा को लग रहा था, यह इंसान इतना निरीह है कि यह किसी का कातिल नहीं हो सकता. क्या इसे किसी ने झूठे केस में फंसा दिया है या पैसों के लालच में झूठी गवाही दे रहा है? नीचे के कोर्ट से उसे फांसी की सजा सुनाई गई थी. आखिरी अपील के समय अभियुक्त के शहर का नाम देख कर उन्होंने उसे बुलवा लिया था और चैंबर में बात कर जानना चाहा था कि वह है कौन.

विनीता ने जज बनने के समय मन ही मन निर्णय किया था कि कभी किसी निर्दोष या लाचार को सजा नहीं होने देंगी. झूठी गवाही से उन्हें सख्त नफरत थी. अगर राम नरेश का व्यवहार ऐसा न होता तो शायद जज साहिबा ने उस पर ध्यान भी न दिया होता. दिनभर में न जाने कितने केस निबटाने होते हैं. ढेरों जजों, अपराधियों, गवाहों और वकीलों की भीड़ में उन का समय कटता था. पर ऐसा दयनीय कातिल नहीं देखा था. कातिलों की आंखों में दिखने वाला पश्चाताप या आक्रोश कुछ भी तो नजर नहीं आ रहा था. विनीता अतीत को टटोलने लगीं. आखिर कौन है यह? कुछ याद नहीं आ रहा था.


विनीता शहर की जानीमानी सम्माननीय हस्ती थीं. गोरा रंग, छोटी पर सुडौल नासिका, ऊंचा कद, बड़ीबड़ी आंखें और आत्मविश्वास से भरे व्यक्तित्व वाली विनीता अपने सही और निर्भीक फैसलों के लिए जानी जाती थीं. उम्र के साथ सफेद होते बालों ने उन्हें और प्रभावशाली बना दिया था. उन की चमकदार आंखें एक नजर में ही अपराधी को पहचान जाती थीं. उन के न्यायप्रिय फैसलों की चर्चा होती रहती थी.

पुरुषों के एकछत्र कोर्ट में अपना कैरियर बनाने में उन्हें बहुत तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा था. सब से पहला युद्ध तो उन्हें अपने परिवार से लड़ना पड़ा था. विनीता के जेहन में बरसों पुरानी बातें याद आने लगीं…

घर में सभी प्यार से उसे विनी बुलाते थे. उस की वकालत करने की बात सुन कर घर में तो भूचाल आ गया. मां और बाबूजी से नाराजगी की उम्मीद थी, पर उसे अपने बड़े भाई की नाराजगी अजीब लगी. उन्हें पूरी आशा थी कि महिलाओं के हितों की बड़ीबड़ी बातें करने वाले भैया तो उस का साथ जरूर देंगे. पर उन्होंने ही सब से ज्यादा हंगामा मचाया था.

तब विनी को हैरानी हुई जब उम्र से लड़ती बूढ़ी दादी ने उस का साथ दिया. दादी उसे बड़े प्यार से ‘नन्ही परी’ बुलाती थीं. विनी रात में दादी के पास ही सोती थी. अकसर दादी कहानियां सुनाती थीं. उस रात दादी ने कहानी तो नहीं सुनाई पर गुरुमंत्र जरूर दिया. दादी ने रात के अंधेरे में विनी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘मेरी नन्ही परी, तू शिवाजी की तरह गरम भोजन बीच थाल से खाने की कोशिश कर रही है. जब भोजन बहुत गरम हो तो किनारे से फूंकफूंक कर खाना चाहिए. तू सभी को पहले अपनी एलएलबी की पढ़ाई के लिए राजी कर, न कि अपनी वकालत के लिए. मैं कामना करती हूं, तेरी इच्छा जरूर पूरी हो.’


विनी ने लाड़ से दादी के गले में बांहें डाल दीं. फिर उस ने दादी से पूछा, ‘दादी, तुम इतनी मौडर्न कैसे हो गईं?’

दादी रोज सोते समय अपने नकली दांतों को पानी के कटोरे में रख देती थीं. तब उन के गाल बिलकुल पिचक जाते थे और चेहरा झुर्रियों से भर जाता था. विनी ने देखा दादी की झुर्रियों भरे चेहरे पर विषाद की रेखाएं उभर आईं और वे बोल पड़ीं, ‘बिटिया, औरतों के साथ बड़ा अन्याय होता है. तू उन के साथ न्याय करेगी, यह मुझे पता है. जज बन कर तेरे हाथों में परियों वाली जादू की छड़ी भी तो आ जाएगी न.’

अपनी अनपढ़ दादी की ज्ञानभरी बातें सुन कर विनी हैरान थी. दादी के दिए गुरुमंत्र पर अमल करते हुए विनी ने वकालत की पढ़ाई पूरी कर ली. तब उसे लगा, अब तो मंजिल करीब है. पर तभी न जाने कहां से एक नई मुसीबत सामने आ गई. बाबूजी के पुराने मित्र शरण काका ने आ कर खबर दी. उन के किसी रिश्तेदार का पुत्र शहर में ऊंचे पद पर तबादला हो कर आया है. क्वार्टर मिलने तक उन के पास ही रह रहा है. होनहार लड़का है. परिवार भी अच्छा है. विनी के विवाह के लिए बड़ा उपयुक्त वर है. उस ने विनी को शरण काका के घर आतेजाते देखा है. बातों से लगता है कि विनी उसे पसंद है. उस के मातापिता भी कुछ दिनों के लिए आने वाले हैं.

शरण काका रोज सुबह एक हाथ में छड़ी और दूसरे हाथ में धोती थाम कर टहलने निकलते थे. अकसर टहलना पूरा कर उस के घर आ जाते थे. सुबह की चाय के समय उन का आना विनी को हमेशा बड़ा अच्छा लगता था. वे दुनियाभर की कहानियां सुनाते. बहुत सी समझदारी की बातें समझाते. पर आज विनी को उन का आना अखर गया. पढ़ाई पूरी हुई नहीं कि शादी की बात छेड़ दी. विनी की आंखें भर आईं. तभी शरण काका ने उसे पुकारा, ‘बिटिया, मेरे साथ मेरे घर तक चल. जरा यह तिलकुट का पैकेट घर तक पहुंचा दे. हाथों में बड़ा दर्द रहता है. तेरी मां का दिया यह पैकेट उठाना भी भारी लग रहा है.’


बरसों पहले भाईदूज के दिन मां को उदास देख कर उन्होंने बाबूजी से पूछा था. भाई न होने का गम मां को ही नहीं, बल्कि नानानानी को भी था. विनी अकसर सोचती थी कि क्या एक बेटा होना इतना जरूरी है? उस भाईदूज से ही शरण काका ने मां को मुंहबोली बहन बना लिया था. मां भी बहन के रिश्ते को निभातीं, हर तीजत्योहार में उन्हें कुछ न कुछ भेजती रहती थीं. आज का तिलकुट मकर संक्रांति का एडवांस उपहार था. अकसर काका कहते, ‘विनी की शादी में मामा का फर्ज तो मुझे ही निभाना है.’

शरण काका और काकी अपनी इकलौती काजल की शादी के बाद जब भी अकेलापन महसूस करते, तब उसे बुला लेते थे. अकसर वे अम्माबाबूजी से कहते, ‘काजल और विनी दोनों मेरी बेटियां हैं.’













एक नन्ही परी: भाग 2
शरण काका भी अजीब हैं. लोग बेटी के नाम से घबराते हैं और काका का दिल ऐसा है कि दूसरे की बेटी को भी अपना मानते हैं.




शरण काका भी अजीब हैं. लोग बेटी के नाम से घबराते हैं और काका का दिल ऐसा है कि दूसरे की बेटी को भी अपना मानते हैं.

काजल दीदी की शादी के समय विनी अपनी परीक्षा में व्यस्त थी. काकी उस के परीक्षा विभाग को रोज कोसती रहतीं. हलदी की रस्म के एक दिन पहले तक उस की परीक्षा थी. काकी कहती रहती थीं, ‘विनी को फुरसत होती तो मेरा सारा काम संभाल लेती. ये कालेज वाले परीक्षा लेले कर लड़की की जान ले लेंगे,’ शांत और मृदुभाषी विनी उन की लाड़ली थी.’

आखिरी पेपर दे कर विनी जल्दीजल्दी काजल दीदी के पास जा पहुंची. उसे देखते काकी की तो जैसे जान में जान आ गई. काजल के सभी कामों की जिम्मेदारी उसे सौंप कर काकी को बड़ी राहत महसूस हो रही थी. उन्होंने विनी के घर फोन कर ऐलान कर दिया कि विनी अब काजल की विदाई के बाद ही घर वापस जाएगी.

शाम के वक्त काजल के साथ बैठ कर विनी उन का सूटकेस ठीक कर रही थी, तब उसे ध्यान आया कि दीदी ने शृंगार का सामान तो खरीदा ही नहीं है. मेहंदी की भी व्यवस्था नहीं है. वह काकी से बात कर भागीभागी बाजार से सारे सामान की खरीदारी कर लाई. विनी ने रात में देर तक बैठ कर काजल दीदी को मेहंदी लगाई. मेहंदी लगा कर जब हाथ धोने उठी तो उसे अपनी चप्पलें मिली ही नहीं. शायद किसी और ने पहन ली होंगी. शादी के घर में तो यह सब होता ही रहता है. घर मेहमानों से भरा था. बरामदे में उसे किसी की चप्पल नजर आई. वह उसे ही पहन कर बाथरूम की ओर बढ़ गई. रात में वह दीदी के बगल में रजाई में दुबक गई. न जाने कब बातें करतेकरते उसे नींद आ गई.



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सुबह, जब वह गहरी नींद में थी, किसी ने उस की चोटी खींच कर झकझोर दिया. कोई तेज आवाज में बोल रहा था, ‘अच्छा, काजल दीदी, तुम ने मेरी चप्पलें गायब की थीं.’


हैरान विनी ने चेहरे पर से रजाई हटा कर अपरिचित चेहरे को देखा. उस की आखों में अभी भी नींद भरी थी. तभी काजल दीदी खिलखिलाती हुई पीछे से आ गईं, ‘अतुल, यह विनी है. श्रीकांत काका की बेटी और विनी, यह अतुल है. मेरे छोटे चाचा का बेटा. हर समय हवा के घोड़े पर सवार रहता है. छोटे चाचा की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए छोटे चाचा और चाची नहीं आ सके तो उन्होंने अतुल को भेज दिया.’

अतुल उसे निहारता रहा, फिर झेंपता हुआ बोला, ‘मुझे लगा, दीदी तुम सो रही हो. दरअसल, मैं रात से ही अपनी चप्पलें खोज रहा था.’

विनी को बड़ा गुस्सा आया. उस ने दीदी से कहा, ‘मेरी भी तो चप्पलें खो गई हैं. उस समय मुझे जो चप्पलें नजर आईं, मैं ने पहन लीं. मैं ने इन की चप्पलें पहनी हैं, किसी का खून तो नहीं किया. सुबहसुबह नींद खराब कर दी. इतने जोरों से झकझोरा है. सारी पीठ दुख रही है,’ गुस्से में वह मुंह तक रजाई खींच कर सो गई.

अतुल हैरानी से देखता रह गया. फिर धीरे से दीदी से कहा, ‘बाप रे, यह तो वकीलों की तरह जिरह करती है.’ तबतक काकी बड़ा पैकेट ले कर विनी के पास पहुंच गईं और रजाई हटा कर उस से पूछने लगीं, ‘बिटिया, देख मेरी साड़ी कैसी है?’

विनी हुलस कर बोल पड़ी, ‘बड़ी सुंदर साड़ी है. पर काकी, इस में फौल तो लगी ही नहीं है. हद करती हो काकी. सारी तैयारी कर ली और तुम्हारी ही साड़ी तैयार नहीं है. मुझे दो, मैं जल्दी से फौल लगा देती हूं.’

विनी पलंग पर बैठ कर फौल लगाने में मशगूल हो गई. काकी भी पलंग पर पैरों को ऊपर कर बैठ गईं और अपने हाथों से अपने पैरों को दबाने लगीं.

विनी ने पूछा, ‘काकी, तुम्हारे पैर दबा दूं क्या?’

वे बोलीं, ‘बिटिया, एकसाथ तू कितने काम करेगी. देख न पूरे घर का काम पड़ा है और अभी से मैं थक गई हूं.’



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सांवलीसलोनी काकी के पैर उन की गोलमटोल काया को संभालते हुए थक जाएं, यह स्वाभाविक ही है. छोटे कद की काकी के ललाट पर बड़ी सी गोल लाल बिंदी विनी को बड़ी प्यारी लगती थी.

तभी काजल की चुनरी में गोटा और किरण लगा कर छोटी बूआ आ पहुंचीं, ‘देखो भाभी, बड़ी सुंदर बनी है चुनरी. फैला कर देखो न,’ छोटी बूआ कहने लगीं.

पूरे पलंग पर सामान बिखरा था. काकी ने विनी की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘इस के ऊपर ही डाल कर दिखाओ, छोटी मइयां.’

सिर झुकाए, फौल लगाती विनी के ऊपर लाल चुनरी बूआ ने फैला दी.

चुनरी सचमुच बड़ी सुंदर बनी थी. काकी बोल पड़ीं, ‘देख तो, विनी पर कितना खिल रहा है यह रंग.’

विनी की नजरें अपनेआप ही सामने रखी ड्रैसिंग टेबल के शीशे में दिख रहे अपने चेहरे पर पड़ीं. उस का चेहरा गुलाबी पड़ गया. उसे अपना ही चेहरा बड़ा सलोना लगा. तभी अचानक किसी ने उस की पीठ पर मुक्के जड़ दिए.

‘तुम अभी से दुलहन बन कर बैठ गई हो, दीदी,’ अतुल की आवाज आई. वह सामने आ कर खड़ा हो गया. अपलक कुछ पल उसे देखता रह गया. विनी की आंखों में आंसू आ गए थे. अचानक हुए मुक्केबाजी के हमले से सूई उंगली में चुभ गई थी. उंगली के पोर पर खून की बूंद छलक आई थी. अतुल बुरी तरह हड़बड़ा गया.

‘बड़ी अम्मा, मैं पहचान नहीं पाया था. मुझे क्या मालूम था कि दीदी के बदले किसी और को दुलहन बनने की जल्दी है. पर मुझ से गलती हो गई.’ वह काकी से बोल पड़ा. फिर विनी की ओर देख कर न जाने कितनी बार ‘सौरीसौरी’ बोलता चला गया. तब तक काजल भी आ गई थी. विनी की आंखों में आंसू देख कर सारा माजरा समझ कर, उसे बहलाते हुए बोली, ‘अतुल, तुम्हें इस बार सजा दी जाएगी. बता विनी, इसे क्या सजा दी जाए?’




विनी बोली, ‘इन की नजरें कमजोर हैं क्या? अब इन से कहो सभी के पैर दबाएं.’ यह कह कर विनी साड़ी समेट कर, पैर पटकती हुई काकी के कमरे में जा कर फौल लगाने लगी.

अतुल सचमुच काकी के पैर दबाने लगा, बोला, ‘वाह, क्या बढि़या फैसला है जज साहिबा का. बड़ी अम्मा, देखो, मैं हुक्म का पालन कर रहा हूं.’

‘तू हर समय उसे क्यों परेशान करता रहता है, अतुल?

काजल दीदी की आवाज विनी को सुनाई दी.

‘दीदी, इस बार मेरी गलती नहीं थी,’ अतुल सफाई दे रहा था.






एक नन्ही परी: भाग 3
फौल का काम पूरा कर विनी हलदी की रस्म की तैयारी में लगी थी. बड़े से थाल में हलदी मंडप में रख रही थी. तभी काजल दीदी ने उसे आवाज दी. विनी उन के कमरे में पहुंची.



फौल का काम पूरा कर विनी हलदी की रस्म की तैयारी में लगी थी. बड़े से थाल में हलदी मंडप में रख रही थी. तभी काजल दीदी ने उसे आवाज दी. विनी उन के कमरे में पहुंची. दीदी के हाथों में बड़े सुंदर झुमके थे. दीदी ने झुमके दिखाते हुए पूछा, ‘ये कैसे हैं, विनी? मैं तेरे लिए लाई हूं. आज पहन लेना.’

‘मैं ये सब नहीं पहनती, दीदी,’ विनी झल्ला उठी. सभी को मालूम था कि विनी को गहनों से बिलकुल लगाव नहीं है. पर दीदी और काकी तो पीछे ही पड़ गईं. दीदी ने जबरदस्ती उस के हाथों में झुमके पकड़ा दिए. गुस्से में विनी ने झुमके ड्रैसिंग टेबल पर पटक दिए. फिसलता हुआ झुमका फर्श पर गिरा. दरवाजे पर खड़ा अतुल ये सारी बातें सुन रहा था. तेजी से बाहर निकलने की कोशिश में वह सीधे अतुल से जा टकराई. उस के दोनों हाथों में लगी हलदी के छाप अतुल की सफेद टीशर्ट पर उभर आए.

वह हलदी के दाग को हथेलियों से साफ करने की कोशिश करने लगी. पर हलदी के दाग और भी फैलने लगे. अतुल ने उस की दोनों कलाइयां पकड़ लीं और बोल पड़ा, ‘यह हलदी का रंग जाने वाला नहीं है. ऐसे तो यह और फैल जाएगा. आप रहने दीजिए.’ विनी झेंपती हुई हाथ धोने चली गई.

बड़ी धूमधाम से काजल की शादी हो गई. काजल की विदाई होते ही विनी को अम्मा के साथ दिल्ली जाना पड़ा. कुछ दिनों से अम्मा की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी. डाक्टरों ने जल्दी से जल्दी दिल्ली ले जा कर हार्ट चैकअप का सुझाव दिया था. काजल की शादी के ठीक बाद दिल्ली जाने का प्लान बना था. काजल की विदाई वाली शाम का टिकट मिल पाया था.

एक शाम अचानक शरण काका ने आ कर खबर दी. विनी को देखने लड़के वाले अभी कुछ देर में आना चाहते हैं. घर में जैसे उत्साह की लहर दौड़ गई. पर विनी बड़ी परेशान थी. न जाने किस के गले बांध दिया जाएगा? उस के भविष्य के सारे अरमान धरे के धरे रह जाएंगे. अम्मा उस से तैयार होने को कह कर रसोई में चली गईं. तभी मालूम हुआ कि लड़का और उस के परिवार वाले आ गए हैं. बाबूजी, काका और काकी उन सब के साथ ड्राइंगरूम में बातें कर रहे थे.


अम्मा ने उसे तैयार न होते देख कर, आईने के सामने बैठा कर उस के बाल सांवरे. अपनी अलमारी से झुमके निकाल कर दिए. विनी झुंझलाई बैठी रही. अम्मा ने जबरदस्ती उस के हाथों में झुमके पकड़ा दिए. गुस्से में विनी ने झुमके पटक दिए.

एक झुमका फिसलता हुआ ड्राइंगरूम के दरवाजे तक चला गया. ड्राइंगरूम उस के कमरे से लगा हुआ था.

परेशान अम्मा उसे वैसे ही अपने साथ ले कर बाहर आ गईं. विनी अम्मा के साथ नजरें नीची किए हुए ड्राइंगरूम में जा पहुंची. वह सोच में डूबी थी कि कैसे इस शादी को टाला जाए. काकी ने उसे एक सोफे पर बैठा दिया. तभी बगल से किसी ने धीरे से कहा, ‘मैं ने कहा था न, हलदी का रंग जाने वाला नहीं है.’ सामने अतुल बैठा था.

अतुल और उस के मातापिता के  जाने के बाद काका ने उसे बुलाया. बड़े बेमन से कुछ सोचती हुई वह काका के साथ चलने लगी. गेट से बाहर निकलते ही काका ने उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘विनी, मैं तेरी उदासी समझ रहा हूं. बिटिया, अतुल बहुत समझदार लड़का है. मैं ने अतुल को तेरे सपने के बारे में बता दिया है. तू किसी तरह की चिंता मत कर. मुझ पर भरोसा कर, बेटी.’

काका ने ठीक कहा था. वह आज जहां पहुंची है वह सिर्फ अतुल के सहयोग से ही संभव हो पाया था. अतुल आज भी अकसर मजाक में कहते हैं, ‘मैं तो पहली भेंट में ही जज साहिबा की योग्यता पहचान गया था.’ उस की शादी में शरण काका ने सचमुच मामा होने का दायित्व पूरी ईमानदारी से निभाया था. पर वह उन्हें मामा नहीं, काका ही बुलाती थी.

कोर्ट का कोलाहल विनीता को अतीत से बाहर खींच लाया. पर वे अभी भी सोच रही थीं, इसे कहां देखा है. दोनों पक्षों के वकीलों की बहस समाप्त हो चुकी थी. राम नरेश के गुनाह साबित हो चुके थे. वह एक भयानक कातिल था. उस ने इकरारे जुर्म भी कर लिया था. उस ने बड़ी बेरहमी से हत्या की थी. एक सोचीसमझी साजिश के तहत उस ने अपने दामाद की हत्या कर शव का चेहरा बुरी तरह कुचल दिया था और शरीर के टुकड़ेटुकड़े कर जंगल में फेंक दिए थे. वकील ने बताया कि राम नरेश का आपराधिक इतिहास है. वह एक कू्रर कातिल है. पहले भी वह कत्ल का दोषी पाया गया था पर सुबूतों के अभाव में छूट गया था. इसलिए इस बार उसे कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए. वकील ने पुराने केस की फाइल उन की ओर बढ़ाई. फाइल खोलते ही उन की नजरों के सामने सबकुछ साफ हो गया. सारी बातें चलचित्र की तरह आंखों के सामने घूमने लगीं.


Ek Nanhi Pari Part3 Hindi Kahani Online
लगभग 22 वर्ष पहले राम नरेश को कोर्ट लाया गया था. उस ने अपनी दूधमुंही बेटी की हत्या कर दी थी. तब विनीता वकील हुआ करती थीं. ‘कन्या भ्रूण हत्या’ और ‘बालिका हत्या’ जैसे मामले उन्हें आक्रोश से भर देते थे. मातापिता और समाज द्वारा बेटेबेटियों में किए जा रहे भेदभाव उन्हें असह्य लगते थे. तब विनीता ने राम नरेश के जुर्म को साबित करने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा दिया था. उस गांव में अकसर बेटियों को जन्म लेते ही मार डाला जाता था. इसलिए किसी ने राम नरेश के खिलाफ गवाही नहीं दी. लंबे समय तक केस चलने के बाद भी जुर्म साबित नहीं हुआ. इसलिए कोर्ट ने राम नरेश को बरी कर दिया था. आज वही मुजरिम दूसरे खून के आरोप में लाया गया था. विनीता ने मन ही मन सोचा, ‘काश, तभी इसे सजा मिली होती. इतना सीधासरल दिखने वाला व्यक्ति 2-2 कत्ल कर सकता है? इस बार वे उसे कड़ी सजा देंगी.’

जज साहिबा ने राम नरेश से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें अपनी सफाई में कुछ कहना है?’’ राम नरेश के चेहरे पर व्यंग्यभरी मुसकान खेलने लगी. कुछ पल चुप रहने के बाद उस ने कहा, ‘‘हां हुजूर, मुझे आप से बहुत कुछ कहना है. मैं आप लोगों जैसा पढ़ालिखा और समझदार तो नहीं हूं, पता नहीं आप लोग मेरी बात समझेंगे या नहीं. आप मुझे यह बताइए कि अगर कोई मेरी परी बिटिया को जला कर मार डाले और कानून से भी अपने को बचा ले. तब क्या उसे मार डालना अपराध है?

‘‘मेरी बेटी को उस के पति ने दहेज के लिए जला दिया था. मरने से पहले मेरी बेटी ने आखिरी बयान दिया था कि कैसे मेरी फूल जैसी सुंदर बेटी को उस के पति ने जला दिया. पर वह शातिर पुलिस और कानून से बच निकला. इसलिए उसे मैं ने अपने हाथों से सजा दी. मेरे जैसा कमजोर पिता और कर ही क्या सकता है? मुझे अपने किए गुनाह पर कोई अफसोस नहीं है.’’



Ek Nanhi Pari Part3 Hindi Kahani |, उस का चेहरा मासूम लग रहा था. उस की बूढ़ी आंखों में आंसू चमक रहे थे. लेकिन चेहरे पर संतोष झलक रहा था. वह जज साहिबा की ओर मुखातिब हुआ,  ‘‘हुजूर, आज से 22 वर्ष पहले जब मैं ने अपनी बड़ी बेटी को जन्म लेते ही मार डाला था, तब आप मुझे सजा दिलवाना चाहती थीं. आप ने तब मुझे बहुत भलाबुरा कहा था. आप ने कहा था, ‘बेटियां अनमोल होती हैं. मार कर आप ने जघन्य अपराध किया है.’

‘‘आप की बातों ने मेरी रातों की नींद और दिन का चैन खत्म कर दिया था. इसलिए जब मेरी दूसरी बेटी का जन्म हुआ तब मुझे लगा कि प्रकृति ने मुझे भूल सुधारने का मौका दिया है. मैं ने प्रायश्चित करना चाहा. उस का नाम मैं ने ‘परी’ रखा. बड़े जतन और लाड़ से मैं ने उसे पाला. अपनी हैसियत के अनुसार उसे पढ़ाया और लिखाया. वह मेरी जान थी.

Ek Nanhi Pari Part3 | ‘‘मैं ने निश्चय किया कि उसे दुनिया की हर खुशी दूंगा. मैं हर दिन मन ही मन आप को आशीष देता कि आप ने मुझे ‘पुत्रीसुख’ से वंचित होने से बचा लिया. मेरी परी बड़ी प्यारी, सुंदर, होनहार और समझदार थी. मैं ने उस की शादी बड़े अरमानों से की. अपनी सारी जमापूंजी लगा दी. मित्रों और रिश्तेदारों से उधार लिया. किसी तरह की कमी नहीं की. पर दुनिया ने उस के साथ वही किया जो मैं ने 22 साल पहले अपनी बड़ी बेटी के साथ किया था. उसे मार डाला. तब सिर्फ मैं दोषी क्यों हूं? मुझे खुशी है कि मेरी बड़ी बेटी को इस कू्रर दुनिया के दुखों और भेदभाव को सहना नहीं पड़ा. छोटी बेटी को समाज ने हर वह दुख दिया जो एक कमजोर पिता की पुत्री को झेलना पड़ता है. ऐसे में सजा किसे मिलनी चाहिए? मुझे या इस समाज को?

‘‘अब आप बताइए कि बेटियों को पालपोस कर बड़ा करने से क्या फायदा है? पलपल तिलतिल कर मरने से अच्छा नहीं है कि वे जन्म लेते ही इस दुनिया को छोड़ दें. कम से कम वे जिंदगी की तमाम तकलीफों को झेलने से तो बच जाएंगी. मेरे जैसे कमजोर पिता की बेटियों का भविष्य ऐसा ही होता है. उन्हें जिंदगी के हर कदम पर दुखदर्द झेलने पड़ते हैं. काश, मैं ने अपनी छोटी बेटी को भी जन्म लेते ही मार दिया होता.


‘‘आप मुझे बताइए, क्या कहीं ऐसी दुनिया है जहां जन्म लेने वाली ये नन्ही परियां बिना भेदभाव के सुखद जीवन जी सकें? आप मुझे दोषी मानती हैं पर मैं इस समाज को दोषी मानता हूं. क्या कोई अपने बच्चे को इसलिए पालता है कि उसे यह नतीजा देखने को मिले या समाज हमें कमजोर होने की सजा दे रहा है? क्या सही क्या गलत, आप मुझे बताइए?’’

Best Hindi Story | विनीता अवाक् थीं. मूक नजरों से राम नरेश के लाचार, कमजोर चेहरे को देख रही थीं. उन के पास जवाब नहीं था. आज एक नया नजरिया उन के सामने था. उन्होंने उस की फांसी की सजा को माफ करने की दया याचिका प्रैसिडैंट को भिजवा दी.

अगले दिन अखबार में विनीता के इस्तीफे की खबर छपी थी. उन्होंने वक्तव्य दिया था, ‘इस असमान सामाजिक व्यवस्था को सुधारने की जरूरत है. यह समाज लड़कियों को समान अधिकार नहीं देता है. जिस से न्याय, अन्याय बन जाता है, क्योंकि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. गलत सामाजिक व्यवस्था न्याय को गुमराह करती है और लोगों का न्यायपालिका से भरोसा खत्म करती है. मैं इस गलत सामाजिक व्यवस्था के विरोध में न्यायाधीश पद से इस्तीफा देती हूं,’ उन्होंने अपने वक्तव्य में यह भी जोड़ा कि वे अब एक समाजसेवी संस्था के माध्यम से आमजन को कानूनी सलाह देंगी और साथ ही, गलत कानून को बदलवाएंगी भी.







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एक दिन अचानक दीदी के पत्र ने सारे राज खोल दिए थे. अब समझ में आया क्यों दीदी ने लिखा था कि जिंदगी में कभी किसी को अपनी कठपुतली मत बनाना और न ही कभी खुद किसी की कठपुतली बनना. Hindi Kahani Ek Din Achanak लता दीदी की आत्महत्या की खबर ने मुझे अंदर तक हिला दिया था क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. फिर मुझे एक दिन दीदी का वह पत्र मिला जिस ने सारे राज खोल दिए और मुझे परेशानी व असमंजस में डाल दिया कि क्या दीदी की आत्महत्या को मैं यों ही व्यर्थ जाने दूं? मैं बालकनी में पड़ी कुरसी पर चुपचाप बैठा था. जाने क्यों मन उदास था, जबकि लता दीदी को गुजरे अब 1 माह से अधिक हो गया है. दीदी की याद आती है तो जैसे यादों की बरात मन के लंबे रास्ते पर निकल पड़ती है. जिस दिन यह खबर मिली कि ‘लता ने आत्महत्या कर ली,’ सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बात सच भी हो सकती है. क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. शादी के बाद, उन के पहले 3-4 साल अच्छे बीते. शरद जीजाजी और दीदी दोनों भोपाल में कार्यरत थे. जीजाजी बैंक में सहायक प्रबंधक हैं. दीदी शादी के पहले से ही सूचना एवं प्रसार कार्यालय में स्टैनोग्राफर थीं.

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  Hindi kahani big brother बड़े भैया-भाग 1: स्मिता अपने भाई से कौन सी बात कहने से डर रही थी जब एक दिन अचानक स्मिता ससुराल को छोड़ कर बड़े भैया के घर आ गई, तब भैया की अनुभवी आंखें सबकुछ समझ गईं. अश्विनी कुमार भटनागर बड़े भैया ने घूर कर देखा तो स्मिता सिकुड़ गई. कितनी कठिनाई से इतने दिनों तक रटा हुआ संवाद बोल पाई थी. अब बोल कर भी लग रहा था कि कुछ नहीं बोली थी. बड़े भैया से आंख मिला कर कोई बोले, ऐसा साहस घर में किसी का न था. ‘‘क्या बोला तू ने? जरा फिर से कहना,’’ बड़े भैया ने गंभीरता से कहा. ‘‘कह तो दिया एक बार,’’ स्मिता का स्वर लड़खड़ा गया. ‘‘कोई बात नहीं,’’ बड़े भैया ने संतुलित स्वर में कहा, ‘‘एक बार फिर से कह. अकसर दूसरी बार कहने से अर्थ बदल जाता है.’’ स्मिता ने नीचे देखते हुए कहा, ‘‘मुझे अनिमेष से शादी करनी है.’’ ‘‘यह अनिमेष वही है न, जो कुछ दिनों पहले यहां आया था?’’ बड़े भैया ने पूछा. ‘‘जी.’’ ‘‘और वह बंगाली है?’’ बड़े भैया ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए पूछा. ‘‘जी,’’ स्मिता ने धीमे स्वर में उत्तर दिया. ‘‘और हम लोग, जिस में तू भी शामिल है, शुद्ध शाकाहारी हैं. वह बंगाली तो अवश्य ही

Maa Ki Shaadi मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था?

मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? समीर की मृत्यु के बाद मीरा के जीवन का एकमात्र मकसद था समीरा को सुखद भविष्य देना. लेकिन मीरा नहीं जानती थी कि समीरा भी अपनी मां की खुशियों को नए पंख देना चाहती थी. संध्या समीर और मैं ने, परिवारों के विरोध के बावजूद प्रेमविवाह किया था. एकदूसरे को पा कर हम बेहद खुश थे. समीर बैंक मैनेजर थे. बेहद हंसमुख एवं मिलनसार स्वभाव के थे. मेरे हर काम में दिलचस्पी तो लेते ही थे, हर संभव मदद भी करते थे, यहां तक कि मेरे कालेज संबंधी कामों में भी पूरी मदद करते थे. कई बार तो उन के उपयोगी टिप्स से मेरे लेक्चर में नई जान आ जाती थी. शादी के 4 वर्षों बाद मैं ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया. उस के नामकरण के लिए मैं ने समीरा नाम सुझाया. समीर और मीरा की समीरा. समीर प्रफुल्लित होते हुए बोले, ‘‘यार, तुम ने तो बहुत बढि़या नामकरण कर दिया. जैसे यह हम दोनों का रूप है उसी तरह इस के नाम में हम दोनों का नाम भी समाहित है.’’ समीरा को प्यार से हम सोमू पुकारते, उस के जन्म के बाद मैं ने दोनों परिवारों मे