टॉप 5 शायरों के 25 बड़े शेर... सीरीज-7
हम एक सीरीज चला रहे हैं जिसमें ऐसे ही 5 बड़े शायरों के 25 लोकप्रिय शेरों से आपका परिचय कराते हैं। इस सीरीज में मोहम्मद रफ़ी सौदा,राहत इंदौरी, वसीम बरेलवी,शकील बदायुनी और शहरयार के लोकप्रिय शेर आपकी नज़र...शहरयार
शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को
मैं देखता रहा दरिया तिरी रवानी को
सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का
यही तो वक़्त है सूरज तिरे निकलने का
आज की रात भी दरवाज़ा खुला रक्खूँगा...
तेरे वादे को कभी झूट नहीं समझूँगा
आज की रात भी दरवाज़ा खुला रक्खूँगा
सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है
इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है
या अपनी मोहब्बत पे भरोसा नहीं हम को...
या तेरे अलावा भी किसी शय की तलब है
या अपनी मोहब्बत पे भरोसा नहीं हम को
मोहम्मद रफ़ी सौदा
Top 25 love and ishq sher
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
तब मैं ने अपने दिल में लाखों ख़याल बाँधे
न कर 'सौदा' तू शिकवा हम से दिल की बे-क़रारी का
मोहब्बत किस को देती है मियाँ आराम दुनिया में
लहू में ग़र्क़ सफ़ीना हो आश्नाई का...
गिला लिखूँ मैं अगर तेरी बेवफ़ाई का
लहू में ग़र्क़ सफ़ीना हो आश्नाई का
साक़ी गई बहार रही दिल में ये हवस
तू मिन्नतों से जाम दे और मैं कहूँ कि बस
आग़ाज़ का अंजाम क्या होगा...
love and ishq sher
तिरा ख़त आने से दिल को मेरे आराम क्या होगा
ख़ुदा जाने कि इस आग़ाज़ का अंजाम क्या होगा
राहत इंदौरी
शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
मगर नाटक पुराना चल रहा है...
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है
अँधेरे में निकल पड़ता है...
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
वसीम बरेलवी
दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता
तुम आ गए हो तो कुछ चाँदनी सी बातें हों
ज़मीं पे चाँद कहाँ रोज़ रोज़ उतरता है
Shayar Series-7
हर शख़्स तुम्हारी ही तरफ़ देख रहा है...
तुम मेरी तरफ़ देखना छोड़ो तो बताऊँ
हर शख़्स तुम्हारी ही तरफ़ देख रहा है
तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना खो चुका हूँ मैं
कि तू मिल भी अगर जाए तो अब मिलने का ग़म होगा
चराग़ों का सफ़र कितना है...
रात तो वक़्त की पाबंद है ढल जाएगी
देखना ये है चराग़ों का सफ़र कितना है
शकील बदायुनी
चाहिए ख़ुद पे यक़ीन-ए-कामिल
हौसला किस का बढ़ाता है कोई
उन का ज़िक्र उन की तमन्ना उन की याद
वक़्त कितना क़ीमती है आज कल
गिरफ़्तार कर के छोड़ दिया...
मुझे तो क़ैद-ए-मोहब्बत अज़ीज़ थी लेकिन
किसी ने मुझ को गिरफ़्तार कर के छोड़ दिया
जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील'
मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया
कुछ बात है जो शाम पे रोना आया...
यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया