टॉप 5 शायरों के 20 बड़े शेर...
इश्क़ और उर्दू कविता में कुछ शायरों के नाम ऐसे हैं कि जिनको सुनते ही मन में इश्क़ और हौसलों की हलचल पैदा होने लगती हैं। हम एक सीरीज चला रहे हैं जिसमें ऐसे ही 5 बड़े शायरों के 20 लोकप्रिय शेरों से आपका परिचय कराते हैं। इस सीरीज में जोश मलीहाबादी,अहमद नदीम क़ासमी, अहमद मुश्ताक़, आदिल मंसूरी और ऐतबार साजिद के लोकप्रिय शेर आपकी नज़र...
जोश मलीहाबादी
मेरे रोने का जिस में क़िस्सा है
उम्र का बेहतरीन हिस्सा है
मुझ को तो होश नहीं तुम को ख़बर हो शायद
लोग कहते हैं कि तुम ने मुझे बर्बाद किया
जब उस ने वादा किया हम ने ए'तिबार किया...
सुबूत है ये मोहब्बत की सादा-लौही का
जब उस ने वादा किया हम ने ए'तिबार किया
इस का रोना नहीं क्यूँ तुम ने किया दिल बर्बाद
इस का ग़म है कि बहुत देर में बर्बाद किया
चराग़-ए-मज्लिस-ए-रुहानियाँ जलाता जा...
गुज़र रहा है इधर से तो मुस्कुराता जा
चराग़-ए-मज्लिस-ए-रुहानियाँ जलाता जा
अहमद नदीम क़ासमी
आख़िर दुआ करें भी तो किस मुद्दआ के साथ
कैसे ज़मीं की बात कहें आसमाँ से हम
कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा
मैं तो दरिया हूँ समुंदर में उतर जाऊँगा
मैं तेरे बग़ैर जी रहा हूँ
कुछ खेल नहीं है इश्क़ करना
ये ज़िंदगी भर का रत-जगा है
मर जाता हूँ जब ये सोचता हूँ
मैं तेरे बग़ैर जी रहा हूँ
जो तेरे बग़ैर कट गया है...
उस वक़्त का हिसाब क्या दूँ
जो तेरे बग़ैर कट गया है
अहमद मुश्ताक़
तन्हाई में करनी तो है इक बात किसी से
लेकिन वो किसी वक़्त अकेला नहीं होता
ये पानी ख़ामुशी से बह रहा है
इसे देखें कि इसमें डूब जाएँ
बहता आँसू एक झलक में कितने रूप दिखाएगा...
इक रात चाँदनी मिरे बिस्तर पे आई थी
मैंने तराश कर तिरा चेहरा बना दिया
बहता आँसू एक झलक में कितने रूप दिखाएगा
आँख से हो कर गाल भिगो कर मिट्टी में मिल जाएगा
क्या तिरे अश्कों से ये जंगल हरा हो जाएगा...
रोने लगता हूँ मोहब्बत में तो कहता है कोई
क्या तिरे अश्कों से ये जंगल हरा हो जाएगा
आदिल मंसूरी
किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप को
काग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के
मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख कर
उस ने दीवारों को अपनी और ऊँचा कर दिया
तिरी याद आँखें दुखाने लगी...
ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में
तिरी याद आँखें दुखाने लगी
ऐसे डरे हुए हैं ज़माने की चाल से
घर में भी पाँव रखते हैं हम तो सँभाल कर
तन्हा हूँ आज मैं ज़रा घर तक तो साथ दो...
क्यूँ चलते चलते रुक गए वीरान रास्तो
तन्हा हूँ आज मैं ज़रा घर तक तो साथ दो
ऐतबार साजिद
मैं तकिए पर सितारे बो रहा हूँ
जनम-दिन है अकेला रो रहा हूँ
अब तो ख़ुद अपनी ज़रूरत भी नहीं है हम को
वो भी दिन थे कि कभी तेरी ज़रूरत हम थे
बाहर कितना सन्नाटा है अंदर कितनी वहशत है...
फिर वही लम्बी दो-पहरें हैं फिर वही दिल की हालत है
बाहर कितना सन्नाटा है अंदर कितनी वहशत है
तुम्हें जब कभी मिलें फ़ुर्सतें मिरे दिल से बोझ उतार दो
मैं बहुत दिनों से उदास हूँ मुझे कोई शाम उधार दो
मैं रफ़्ता रफ़्ता ख़ुद को खो रहा हूँ...
किसे पाने की ख़्वाहिश है कि 'साजिद'
मैं रफ़्ता रफ़्ता ख़ुद को खो रहा हूँ