दुनिया को मोह त्याग का बाम लगाते हैं और खुद गुठली के साथ आम भी खाते हैं. जरा पढि़ए बाबा के फर्जी प्रवचन.
देवेंद्र कुमार मिश्रा
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दुनिया वालों को पापपुण्य, आत्मा, मुक्ति और मोहममता से दूर कर प्रसाद बांटते गुरुदेव की महिमा अपरंपार है. पर उपदेश कुशल बहुतेरे की तर्ज पर किस्तों में दक्षिणा लेते, कामुकता से लैस और धर्म के पक्के धंधेबाज गुरुदेव की शरण में जो भी आया, धन्य हो कर या कहें लुट कर ही लौटा. आप भी सुनिए जरा गुरुकंटालजी के प्रवचन.
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वे जनता को देख कर मंदमंद मुसकराए और बोले, ‘‘तुम देह नहीं हो.’’ फिर अपनी देह की खुजली मिटाने के लिए खुजलाने लगे. फिर धर्मप्रिय जनता को संबोधित करते हुए बोले, ‘‘तुम शरीर नहीं हो, तुम आत्मा हो. आत्मा की अमरता को पहचानो. शरीर झूठ है.’’
एक भक्त ने पूछा, ‘‘शरीर असत्य है तो फिर असत्य और झूठे शरीर को भूख क्यों लगती है? क्या हमारी भूख भी झूठी है?’’
‘‘भूख इसलिए लगती है क्योंकि तुम शरीर में जीते हो. स्वयं को शरीर मानते हो. आत्मा को पहचानो. आत्मा को न भूख लगती है न प्यास.’’
भक्त बड़े भोले होते हैं, धर्मभीरु होते हैं. लेकिन जिज्ञासा है जो उन्हें गुरु के पास लाती है. भक्त ने पूछा, ‘‘महाराजजी, शरीर तो साक्षात है. दिख रहा है. शरीर की जरूरतें भी हैं, जिन की पूर्ति करनी जरूरी है. रोटी, कपड़ा और मकान तो चाहिए ही.’’
महाराजजी बोले, ‘‘ठीक है, रोटी, कपड़ा, मकान की जरूरत होती है लेकिन शरीर होने तक. जिस दिन आत्मा को पा लोगे उस दिन किसी भी चीज की जरूरत नहीं पड़ेगी.
‘‘महाराजजी, आत्मा को कैसे पाएं? कहां है आत्मा?’’ भक्त ने पूछा.
महाराजजी मन ही मन बुदबुदाए, ‘इस का तो मुझे भी पता नहीं.’ बोले, ‘‘शरीर के अंदर एक दिव्य प्रकाश है, वही आत्मा है. उस को जाननेपहचानने का अभ्यास करो.’’
‘‘गुरुदेव, कैसे?’’
फिर एक भक्त की आवाज पर मोबाइल बंद किया. भक्त पूछ रहा था कि काम, क्रोध को वश में कैसे करें?
महाराजजी ने कहा, ‘‘देखो भाई, देश की आबादी 1 अरब के ऊपर हो गई है. आप लोग ब्रह्मचर्य का पालन करें. वंश चलाने के लिए 1 औलाद बहुत है. अपनी स्त्री के साथ वर्ष में 1 बार संभोग करें, 6 माह में एक बार या फिर 1 माह में 1 बार. यह भी न कर सको तो एक कफन रख लो. अरे, जानवर भी वर्ष में ऋतुओं के आने पर प्रकृतिप्रेरित हो कर 1 बार कामक्रीड़ा करते हैं. क्या तुम लोग पशुओं से भी गएगुजरे हो? हे मनुष्य, काम पर नियंत्रण रखो तो क्रोध पर भी काबू पा लोगे. मैं गुरुमंत्र देता हूं. सतत जाप करो, प्रवचन समाप्त होते ही आप 1,100 रुपए प्रतिव्यक्ति जमा कर के पूजा का आसन, माला, फोटो ग्रहण कर जीवन को अनंत की यात्रा पर लगाओ.
gurudev hindi story ‘‘भक्तजनो, मेरे प्यारे शिष्यो, शरीर को भूल कर अशरीरी हो जाओ. लोभ हो तो गुरु के चरणों में दान करो. काम सताए तो अपनी स्त्रियों को हमारे आश्रम में सेवाकार्य पर लगा दो. न पास रहेगा बांस न बजा पाओगे बांसुरी.’’
एक गरीब भक्त खड़ा हो कर बोला, ‘‘महाराजजी पेट की भूख का क्या करें?’’
महाराजजी को गुस्सा आ गया. बोले, ‘‘अजीब अभागा संसारी है. मैं देह से हटने की बात कर रहा हूं. यह पेट ले कर बैठा है,’’ फिर संभल कर बोले, ‘‘ठीक है पेट के लिए, परिवार के लिए कर्म करना तो जरूरी है ही लेकिन धर्म को मत भूलना पेट के चक्कर में. भूख तो जानवरों को भी लगती है लेकिन भूख के चक्कर में जानवर मत बनना. पेट के लिए ही मत जीना. अपनीअपनी सोचते रहोगे तो गुरु के बारे में कब सोचोगे. गुरु को पहले दान करना, भोजन खिलाना. उन के लिए जो बन सके यानी धन, वस्त्र, भोजन, दान का प्रबंध करना तभी भोजन करना सार्थक है.’’
महाराजजी ने यौवन के मद से चूर पास बैठी कुछ स्त्रियों को कामभरी नजरों से घूरा. धर्मांध स्त्रियों ने इसे महाराजजी की विशेष कृपादृष्टि मानी.
महाराजजी ने फिर भक्तों को देह की नश्वरता का ज्ञान दिया.
एक गरीब भक्त ने कहा, ‘‘महाराजजी, दीक्षा सामग्री के लिए 1,100 रुपए नहीं हैं.’’
gurudev story in hindi महाराजजी क्रोधित हो गए. कहना तो चाह रहे थे कि सालो, झक मारने के लिए आए हो. हम यहां गला फाड़न के लिए आए हैं लेकिन शांत व्यापारी स्वर में बोले, ‘‘कोई बात नहीं, 2 किस्तों में दे देना. लेकिन तब 1,100 रुपए की जगह 1,200 रुपए लगेंगे. इसे सजा समझो या प्रसाद, जैसी तुम्हारी श्रद्धा.’’
भक्त तो प्रसाद ही समझेगा.
भक्तों को तो यह प्रवचन दिया कि तुम शरीर नहीं आत्मा हो और आत्मा को किसी चीज की जरूरत नहीं होती. पर जब उन के माथे पर पसीना आया तो पोंछ कर भक्तों से कहा, ‘‘एसी नहीं है क्या? कम से कम कूलर या पंखा ही चला दो.’’
इतना ही नहीं, उन्होंने सामने रखे छप्पन भोग खा कर एक गिलास लस्सी भी पी.
अब महाराजजी मंदमंद मुसकराए और अपने सचिव से कहा, ‘‘मेरे मकान का क्या हुआ?’’
सचिव ने पूछा, ‘‘महाराजजी, कौन से वाले मकान का? मुंबई, दिल्ली वाले तो कब के तैयार हैं.’’
‘‘अरे नहीं,’’ गुरुदेव ने खीजते हुए कहा, ‘‘वह शिमला वाले मकान का. और सुनो, कथाप्रवचन करने के लिए पीत वस्त्र कम से कम चमकदार तो लाते. खादी टाइप ले आए. चुभ रहे हैं. आगे से ध्यान रखना. थोड़ा तो स्टैंडर्ड मेनटेन करो. अब चैनलों पर आने लगा हूं मैं. और हां, विदेश यात्रा के लिए सूट महंगे और अच्छे से सिलवाना,’’ फिर अचानक उन्हें कुछ याद आया. उन्होंने अपने घर मोबाइल लगा कर पत्नी से बात की, ‘‘तुम्हारी याद तो हर घड़ी आती है लेकिन क्या करूं? कामधंधा भी तो जरूरी है. पैसा कमाऊंगा, तभी तो तुम्हारे लिए अच्छे कपड़ेगहने ले कर आऊंगा. आई मिस यू, आई लव यू. और सुनो, जमाना बड़ा खराब है, बच्चों की चिंता लगी रहती है, उन पर नजर रखना. देखना, बिगड़ें न. अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवाया है. कहना, मन लगा कर पढें़. कुछ बन जाएं तो मेरा भी जीवन सार्थक हो जाए.’’
महाराजजी क्रोध में बोले, ‘‘तुम तो जानती हो कि मुझे रात में औरत चाहिए ही चाहिए. तुम नहीं तो किसी और को तैयार करो.’’
फिर उन्होंने अपने एक शिष्य को बुला कर कहा, ‘‘जलेबी खाने की बड़ी इच्छा हो रही है. लेकिन पेट में तिलभर जगह नहीं है. ऐसा कर, पाचक चूर्ण ला दे. थोड़ा खा लूं ताकि जलेबी के लिए जगह बना सकूं,’’ और फिर उन्होंने अपने भक्तों को जीभ के स्वाद पर नियंत्रण रखने संबंधी प्रवचन दिए.
प्रवचन समाप्त होने पर उन्होंने सचिव से कहा, ‘‘भाई, मेरी किडनी का औपरेशन विदेश में ही करवाने का प्रबंध करो.’’
अंत में महाराजजी अपने स्पैशल हैलिकौप्टर से उड़ गए. भक्त जयजयकार करते रहे. भीड़ में भगदड़ मचने से कुछ भक्त मर गए, कुछ घायल हो गए. जो बच गए उन्होंने गुरुकृपा जानी मरने में भी, बचने में भी, घायल होने में भी.
hindi kahani online भक्तों की जय हो, गुरुदेव की जय हो.