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Vishesh Lokpal vidhayak aur parmmitra ki Samjhdari hindi kahani


विशेष लोकपाल विधेयक और परममित्र की समझदारी 
तुम ने तो मुझे मूर्ख समझ रखा है कि मैं किसी भी ऐरेगैरे नत्थूखैरे के काम के लिए मंत्रालय में जा कर बात करूंगा? क्या है ये माजरा, आप भी पढ़िए.

Vishesh Lokpal vidhayak aur parmmitra ki Samjhdari hindi kahani

Vishesh Lokpal vidhayak aur parmmitra ki Samjhdari hindi kahani
हम तो अपने परममित्र राजपत्रित अधिकारी को शुभचिंतक होने के नाते लोकपाल विधेयक की धौंस जमा कर भ्रष्टाचार से दूर रहने की बिन मांगी सलाह दे रहे थे. लेकिन उस की लेनदेन की तरकीबें सुन कर तो गश ही खा गए. अब हमें समझ आ रहा है कि लोकपाल बिल से कुछ नहीं बदलेगा. आखिर क्या हैं वे तरकीबें, बता रहे हैं आलोक सक्सेना.


मैं ने अपने एक राजपत्रित अधिकारी परममित्र से कहा, ‘‘प्रिय, सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ नकेल डालने के लिए लोकपाल विधेयक को मंजूरी मिल चुकी है.


अब अपने सरकारी कार्यालय में तुम ने अपनी राजपत्रित अधिकारी की रबड़ स्टैंप व हस्ताक्षर की आड़ में किनकिन कंपनियों को किनकिन सरकारी शर्तों तथा कुछेक अपनी गुप्त शर्तों पर राजी कर के उन के कामकाज का ठेका मंजूर किया, उन सब का खुलासा हो सकता है.


‘‘तुम्हारे द्वारा पिछले 10 सालों में किए गए घपलों को भी लोकपाल की टेबल पर पहुंचाया जा सकता है. इसलिए इस बार की होलीदीवाली का बिलकुल भी इंतजार मत करना और बिना लेनदेन किए हुए ही समय पर अपने यहां की सभी सरकारी निविदाओं की फाइलों पर सोचसमझ कर हस्ताक्षर कर अनुमोदित करते रहने में ही तुम्हारी भलाई है.


‘‘अब तक तुम ने होलीदीवाली के उपहारों के बहाने से भी तमाम सारी कंपनियों के मालिकों व सप्लायरों से बहुत माल खींच कर अपनी तिजोरी में भर लिया है. अब ऐसा बिलकुल भी मत करना और वैसे भी यदि देखा जाए तो अब तक तुम्हारे लगभग सभी पारिवारिक कामकाज तो पूरे हो ही चुके हैं. देश क्या विदेशों तक में तुम्हारे पास जमीनजायदाद बन चुकी है. दोनों बच्चों की, फार्महाउसों में करोड़ों रुपया खर्च कर, शादियां करने वाले उत्कृष्ट शादी आयोजनकर्ता बनने वाले अभिभावक का खिताब भी तुम्हें मिल ही चुका है और किसी ने भी जरा सी चूं तक नहीं की कि यह सब अत्याधुनिक इंतजाम तो अपने देश के वातानुकूलन संयंत्र बनाने वाले बड़े व्यवसायी मिस्टर अनुराग का था जिन को तुम ने अपने सरकारी कार्यालय में लगने वाले नए वातानुकूलित संयंत्र का ठेका पिछले 10 सालों से 6 बार दिया था.


‘‘तुम्हारी भांजी व भतीजी, जो तुम्हारे पास ही रहती थीं, अब तो वे दोनों भी फिलहाल औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी मेंपढ़ रही हैं और रही बात उन की फीस की, जो अब तक तुम्हारे कार्यालय का कंप्यूटर सौफ्टवेयर सप्लायर देता आ रहा था, अब तुम उस से साफसाफ मना कर देना और खजूरेवाला स्थित दोनों फ्लैटों को बेच कर उन की फीस को स्वयं ही अदा करना.


‘‘इस प्रकार एक तीर से दो शिकार हो जाएंगे यानी इंडिया में तुम्हारे नाम से जो 4 फ्लैट हैं उन में से 2 कम हो जाएंगे और तुम्हारी भांजी व भतीजी का भविष्य भी सुरक्षित रहेगा व तुम्हारी शान को भी लोकपाल की नजर नहीं लगेगी.’’


मेरी बातें सुन कर मेरा मित्र बिलकुल भी चिंतित होता हुआ नहीं दिखा तो मैं ने सोचा कि इस ने अपने सरकारी कार्यालय में रह कर पहले ही बहुत मालपानी खींच रखा है, इसलिए इस के लिए चिंता की क्या बात है? तभी तो लोकपाल विधेयक आने पर भी वह मस्त है. तभी उस के मोबाइल की घंटी बज उठी और मैं ने उसे किसी से कहते हुए सुना, ‘‘यार, मैं ने आप से पहले भी कहा था न कि आप का काम हो जाएगा. मैं ने आप के संबंध में आला अधिकारी से बात कर ली है और वैसे भी आप तो हमारे पुराने परिचित हैं. आज तक आप का कोई काम नहीं रुका तो यह भी हो ही जाएगा. आप एकदम निश्चिंत रहें. आप को लखनऊ से दिल्ली आने की कोई जरूरत नहीं है. मैं हूं न. आप मस्त रहिए.’’


अपने मित्र की एकतरफा बातचीत सुन कर मैं ने उस से पूछ लिया, ‘‘यार, किस का काम करवा रहे हो?’’


वह बोला, ‘‘अब दिल्ली में रहता हूं, ऊपर से सरकारी राजपत्रित अधिकारी भी हूं तो बाहर के सब लोगबाग समझते हैं कि हम तो उन का काम अवश्य करवा ही देंगे. वैसे भी वे यहां आनेजाने पर अपना समय नष्ट करेंगे तो भी क्या गारंटी कि उन का 2-4 दिनों तक में भी काम पूरा हो ही जाए? बाहर के लोगों को तो यह भी ठीक से पता नहीं होता कि सरकारी कार्यालयों में किस से बात की जाए और किस से नहीं? और वे किसी तरह से संबंधित अधिकारी तक पहुंच भी जाते हैं तो उन से अपने काम के संबंध में खुल कर बात ही नहीं कर पाते. इसलिए हम जैसों को तंग करते ही रहते हैं और कई बार न चाहते हुए भी हमें उन की ‘हां’ में ‘हां’ मिलानी पड़ जाती है.’’


‘‘तो क्या तुम लोकपाल विधेयक की चिंता किए बिना उस का काम करवा दोगे?’’ मैं ने उस से तुरंत कहा. वह बोला, ‘‘तुम्हें पता है कि वह उधर से मोबाइल पर मुझ से क्याक्या कह रहा था?’’


मैं ने कहा, ‘‘नहीं.’’


‘‘मित्र, वह मुझ से मेरे राजपत्रित अधिकारी होने की परवा किए बिना एकदम निसंकोच हो कर कह रहा था कि मेरा काम करवा दीजिए, बस. जो भी खर्चा होगा मैं आप को दूंगा. किसी भी सरकारी कार्यालय में कोई भी काम बिना लिएदिए तो होता ही नहीं है और मुझे


vishesh lokpal vidheyak यह भी पता है कि मैं जिस काम के लिए आप से कह रहा हूं उस काम के लिए संबंधित बाबुओं और आला अधिकारियों की खातिरदारी का विशेष खयाल तो रखना ही पड़ता है. मैं उस के लिए भी तैयार हूं. अब इस से ज्यादा आप से खुल कर क्या कहूं, आप तो खुद समझदार हैं. सामदामदंडभेद की नीति का इस्तेमाल कर के मेरा काम करवा दीजिए, बस. खर्चे की चिंता मत करिएगा. मैं सब दे दूंगा,’’ मित्र ने खुलासा करते हुए मुझे सबकुछ बताया.


मैं ने कहा, ‘‘तो इस का मतलब है कि तुम्हें लोकपाल विधेयक से बिलकुल भी डर नहीं लगता है, इसीलिए तुम ने उस के काम करवा देने की उस से ‘हां’ भर दी है और उसे दिल्ली आ कर स्वयं संबंधित अधिकारी से बातचीत करने से भी रोक दिया है. तुम्हारी सारी बातों को सुन कर तो मुझे लगता है कि तुम्हीं ने उस के काम करवा देने का पहले ही ठेका लिया है. इस में तुम्हारी भी जरूर चांदी होगी. देखो, तुम मेरे मित्र नहीं, परममित्र हो, इसलिए तुम्हें समझाना मेरा फर्ज है कि अब किसी की भी बातों में मत आओ. लालच करना छोड़ दो. सुधर जाओ और रुपया हो या उपहार, किसी भी प्रकार की चीजों का लेनदेन कर के किसी का भी काम करवा देने का ठेका अपने जिम्मे कभी न लो.’’


इस बार मेरा परममित्र मेरी बात सुन कर खिलखिला कर हंसने लगा और बोला, ‘‘यार, तुम कैसे मित्र हो? तुम ने तो मुझे समझदार राजपत्रित अधिकारी नहीं, मूर्ख समझ रखा है कि मैं किसी भी ऐरेगैरे नत्थूखैरे के काम के लिए मंत्रालय में जा कर बात करूंगा. मैं भला उस के लिए क्यों करूं बातचीत? वह मेरा परिचित ही तो है, कौन सा मेरा मित्र या सगासंबंधी है.


thriller story online ‘‘वह तो ठहरा एक निजी व्यवसायी, उसे लोकपाल विधेयक से क्या डरना, इसलिए वह मोबाइल पर मुझ से कुछ भी बोले जा रहा था. यार, सच बताऊं तो सरकारी चारदीवारी से बाहर रहने वाले लोगों को तो लगता है कि सरकारी कार्यालयों में बिना लेनदेन के कोई काम हो ही नहीं सकता. सारे सरकारी कार्यालयों के बाबू व अधिकारी भ्रष्ट होते हैं. वे तो बातबात पर अपना काम करवाने के लिए ढेर सारे रुपए ले कर, किसी को भी देने के लिए, सरकारी कार्यालयों के बाहर तैयार खड़े रहते हैं. बस, इसी बात का फायदा उठाते हैं वे सरकारी कर्मचारी व अधिकारी जो अधिक समझदारी से काम लेते हैं. मैं भी अपनेआप को अधिक समझदार सरकारी राजपत्रित अधिकारी मानता हूं, इसलिए मैं लोकपाल विधेयक के लागू हो जाने पर भी अच्छी तरह से जानता हूं कि मुझे कैसे अपना भला करना है और दूसरे का भी.’’


अभी मेरे और मेरे मित्र के बीच बातचीत हो ही रही थी कि फिर से उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. जवाब में मैं ने अपने मित्र को कहते हुए सुना, ‘‘भाई, मैं आप को अपना बैंक अकाउंट नंबर नहीं दे सकता. अब उस की भी छानबीन हो सकती है. आप को पता नहीं, लोकपाल विधेयक को मंजूरी दे दी गई है. शीघ्र ही इस विधेयक को कानून का दरजा मिलने जा रहा है. मैं आप के काम को करवा देने के लिए मना तो नहीं कर रहा हूं, तो फिर इतनी जल्दी भी क्या है, आप जो भी देना चाहते हैं, दे दीजिएगा. अब नहीं मानते तो मैं कल आप के शहर लखनऊ आ रहा हूं, वहीं पर कैश दे दीजिएगा.’’


जैसे ही उस ने मोबाइल का स्विच औफ कर के अपनी जेब में वापस रखा तो मैं उस पर बरस पड़ा और बोला, ‘‘तुम एकदम मूर्ख हो, मूर्ख. मुझे लगता है कि तुम्हारी बुद्धिमानी से ज्यादा समझदार तो आजकल का गधा होता है. कल स्पैशियली तुम लखनऊ जा कर उस से कैश ले कर आओगे. यदि तुम ने ऐसा किया तो मेरी बात याद रखना, तुम्हारा लालच तुम्हें एक दिन अवश्य जेल की हवा खिलाएगा. फिर मत कहना कि मैं ने समय रहते अपनी मित्रता का फर्ज अदा नहीं किया. तुम्हें समझाया नहीं.’’ मेरा परममित्र फिर हंसा और बोला,


vishesh lokpal vidheyak hindi kahani ‘‘मैं कल अपने कार्यालय से आकस्मिक अवकाश ले कर लखनऊ जाऊंगा और वहां जा कर उस से जो भी रुपए ले कर आऊंगा. उन्हें अपने घर की निजी अलमारी में सुरक्षित रखूंगा और उस के काम की सिफारिश तो मैं सपने में भी किसी से नहीं करूंगा. तब तक चुपचाप ही रहूंगा जब तक अपनेआप ही उस के काम की मंत्रालय से संबंधित कार्यवाही पूरी नहीं हो जाती. ‘‘उस के द्वारा प्रस्तावित प्रस्ताव पर सरकारी कार्यवाही हो जाने के बाद यदि खुदबखुद उस का काम हो जाएगा तो उस का धन्यवाद देने हेतु तुरंत मेरे पास उस का मोबाइल आ जाएगा. और यदि नहीं हुआ तो भी. नहीं हुआ तो वह मुझ से अपनी नाराजगी व्यक्त करेगा. तो मैं उस से कह दूंगा, भाई, मंत्रालय के आला अधिकारियों ने कल अचानक ही आप का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया. इसलिए आप का काम नहीं हुआ.


‘‘मैं ने तो संबंधित बाबू एवं अधिकारी को खुश कर के अनुमोदन हेतु आप के प्रस्ताव को पुटअप करवा दिया था. आखिरी समय तक आप का काम हो जाना फाइनल था परंतु मंत्रालय पर अपना जोर नहीं चलता, इसलिए अब क्या कहा जाए? अगली बार फिर से अप्लाई करिएगा. तब फिर देख लेंगे. अगली बार तो आप का काम बन ही जाएगा.


‘‘फिलहाल आप जब कभी भी दिल्ली आएं तो अपने रुपए वापस ले लीजिएगा और उस के दिल्ली आने पर उन रुपयों में से उस के प्रस्ताव को अनुमोदन हेतु पुटअप करने वाले सरकारी बाबू व अधिकारी के नाम पर कम से कम आधे रुपए काट कर अपने पास सुरक्षित रख लूंगा तथा शेष वापस कर दूंगा, और यदि अपनेआप ही बिना किसी से कुछ भी सिफारिश लगाए हुए यानी स्वयं ही उस का काम हो गया तो सारे के सारे रुपए उस के द्वारा दिए जा रहे सधन्यवाद के साथ हंस कर अपने पास ही रख लूंगा और मजे उड़ाऊंगा.


vishesh lokpal vidheyak story in hindi ‘‘अब तुम्हीं बताओ कि कहां से लोकपाल विधेयक का नया कानून मेरे और जिस के काम को करवा देने की मैं जिम्मेदारी सिर्फ मोबाइल पर ले रहा हूं, उस के बीच में आ सकता है? और यह भी बताओ कि क्या अब भी मैं वास्तव में गधा हूं और क्या मुझे भ्रष्टाचारी होने के आरोप में जेल भी हो सकती है?’’


निसंदेह हो कर मेरे मुंह से निकला, ‘‘नहीं, मित्र, कभी नहीं. तुम तो अपने सरकारी कार्यालय के सब से समझदार सरकारी राजपत्रित अधिकारी हो. तुम कभी भ्रष्ट नहीं हो सकते.’’ इतना कह कर मैं जैसे ही आगे बढ़ा तो मुझे एक तरफ एक गधा ढेंचूढेंचू करता हुआ दिखाई दिया और दूसरी तरफ मुझे अच्छी तरह से समझ आ गया था कि अपने देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए सिर्फ लोकपाल बिल काफी नहीं है.

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