Insaniyat shayari hindi mai |
ऐसे शेर जो आज के समय में मौज़ू हैं ...
निखारना ये चमन है अगर तो एक रहो
- जाफ़र मलीहाबादी
सीख ले फूलों से गाफिल मुद्दआ-ए-जिंदगी
खुद महकना ही नहीं, गुलशन को महकाना भी है
-असर लखनवी
आसमानों से बरसता है अंधेरा कैसा
अपनी पलकों पे लिए जश्ने-चिरागां चलिए
-अली सरदार जाफरी
ख़ारिज इंसानियत से उस को समझो
इंसाँ का अगर नहीं है हमदर्द इंसान
- तिलोकचंद महरूम
धूप में प्यासे को पानी, शब को रस्ते में चिराग
जाने वाले लोग कितने साहिबे-किरदार थे
-शेख परवेज आरिफ
ये दुनिया नफ़रतों के आख़री स्टेज पे है
इलाज इस का मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं है
- चरण सिंह बशर
इक शजर ऐसा मोहब्बत का लगाया जाए
जिस का हम-साए के आँगन में भी साया जाए
- ज़फर ज़ैदी
अहल-ए-हुनर के दिल में धड़कते हैं सब के दिल
सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है
-फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली
मिरे सेहन पर खुला आसमान रहे कि मैं
उसे धूप छाँव में बाँटना नहीं चाहता
- ख़ावर एजाज़
हमारे ग़म तुम्हारे ग़म बराबर हैं
सो इस निस्बत से तुम और हम बराबर हैं
- अज्ञात
‘मुसाफ़िर’ पर शायरों के अल्फ़ाज़
मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
- बशीर बद्र
मुसाफ़िर ही मुसाफ़िर हर तरफ़ हैं
मगर हर शख़्स तन्हा जा रहा है
- अहमद नदीम क़ासमी
हर मुसाफ़िर के साथ आता है
इक नया रास्ता हमेशा से
- ताजदार आदिल
हुस्न उस का उसी मक़ाम पे है
ये मुसाफ़िर सफ़र नहीं करता
- ज़फ़र इक़बाल
नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया
क्या है तेरा क्या है मेरा अपना पराया भूल गया
- मीराजी
ये आंसू ढूंढ़ता है तेरा दामन
मुसाफ़िर अपनी मंज़िल जानता है
- असद भोपाली
आख़िरी बस का एक मुसाफ़िर
शब-भर बैठा रह जाता है
- जानां मलिक
घर बसा कर भी मुसाफ़िर के मुसाफ़िर ठहरे
लोग दरवाज़ों से निकले कि मुहाजिर ठहरे
- क़ैसर-उल जाफ़री
दो क़दम चल आते उस के साथ साथ
जिस मुसाफ़िर को अकेला देखते
- जमाल एहसानी
मुसाफ़िर जा चुका लम्बे सफ़र पर
अभी तक धूप आंखें मल रही है
- मिर्ज़ा अतहर ज़िया