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Hindi | Kahani Bohemiyan shayari hindi h हिंदी | कहानी बोहेमियन



Hindi | Kahani Bohemiyan shayari hindi h  हिंदी | कहानी बोहेमियन
Hindi | Kahani Bohemiyan shayari hindi h  हिंदी | कहानी बोहेमियन

बोहेमियन | जसविंदर शर्मा
बोहेमियन | दिल बचपन और उम्र पचपन वाले रजत भैया को उम्र की फिसलती अवस्था में आखिर क्या हाथ आया?



हिंदी | कहानी बोहेमियन
अपने चचेरे भाई रजत भैया भी कमाल के आदमी हैं. 50 के हो गए मगर शादी नहीं की. ऐसा नहीं कि बढि़या रिश्ता नहीं मिला. हैरानी की बात है कि कोई भी बात सिरे ही नहीं चढ़ी. आदमी की शादी न हो पाने के 3-4 कारण हो सकते हैं. पहला तो यह कि उस के पास शादी करने की फुरसत ही न हो. होते हैं ऐसे कुछ लोग जो बातबात पर कहते हैं कि उन्हें तो मरने तक की फुरसत नहीं है. ऐसे लोग ही चिरायु होते हैं, जीते चले जाते हैं और अंत में फुरसत पा कर चैन से मरते हैं. हमारी बूआ भी बड़े इत्मीनान से मरी थीं. बहुत बार उन्हें मृत समझ कर जमीन पर लिटा दिया गया, दीयाबाती कर दी गई, रिश्तेदारों को तारफोन भेजे गए. वे लोग दौड़ेदौड़े आए मगर बूआ पता नहीं कैसे जिंदा हो जातीं. वे लोग मायूस हो कर अपनेअपने शहरों को लौट जाते. बूआ जब सच में मरीं तो सिर्फ 2-3 लोग ही पहुंच पाए थे.




एक तरह से रजत भैया को बोहेमियन कहा जाता है. बिंदास जीवनशैली, किसी के साथ बंधन उन्हें स्वीकार नहीं. हां, गाने, लटकों का शौक पर हर बार उन के साथ कोई नया या नई बैठी होती थी. उन के पास बस शादी का जुगाड़ नहीं था. यह नहीं कि वे बहुत व्यस्त थे.रजत भैया के पास फुरसत बहुत थी. सरकारी बंधीबंधाई नौकरी. शनिवार तथा इतवार की छुट्टी. इन छुट्टियों का उपयोग 20 बरसों से उन्होंने अपने लिए सुयोग्य लड़की देखने में किया था शादी न करने का दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि उन्हें प्रेम के मामले में चोट लगी हो. अब तक यह बात राज ही रही. संभावना है भी नहीं कि भैया ने किसी लड़की से प्यार किया हो. तीसरा कारण मैडिकल हो सकता है कि भैया कहीं शारीरिक रूप से अक्षम तो नहीं? इस मामले में मैं उतना ऐक्सपर्ट नहीं हूं.



Hindi | Kahani Bohemiyan
मैं ने कई बार रजत भैया से कहा, ‘‘बड़े भाई, बस कर. अब मान जा, शादी कर ले.’’ वे हुमकते हुए बोलते, ‘‘बच्चे, बहुत बढि़या चौइस मिल रही है. एक विधवा को पिछले हफ्ते देखा, 50 लाख की कोठी की वारिस है. खूब घुमायाफिराया उस ने, ऐश की. और चाहिए भी क्या. बाद में वह खुद ही बोली कि उसे कोई करोड़पति मिल गया है. वैसे भी अपने साथ उस की कुंडली नहीं मिल रही थी. कल एक टौप के बिजनैसमैन की लड़की को देखा. लड़की है तो एकदम मौडर्न मगर थोड़ा सा नुक्स है उस में, भेंगी है जरा सी, बस. माल चोखा मिल रहा है. फैक्टरी में 20 फीसदी हिस्सा दे रहे हैं.’’

मैं ने कहा, ‘‘भाई, तो फिर देर किस बात की? कोई दूसरा टपक पड़ेगा. फिर हमेशा की तरह हाथ मलते रह जाओगे.’’

भैया बहुत उत्साह में थे. 45 के होते हुए भी मुझ से ज्यादा जवान लग रहे थे. हम तो जवानी खर्च कर चुके थे.

रजत भैया हमेशा शोख, कमसिन और जवान लड़कियों की सोहबत में रहते थे इसलिए चुस्तफिट रहते थे. बड़े चाव से बोले, ‘‘गम न कर प्यारे, आज ही एक और लड़की को देखने जा रहा हूं. इनकम टैक्स अफसर है, मंगली होने के कारण उस की वक्त पर शादी नहीं हो पाई. वैसे भी वह पगली किसी आईएएस अफसर के इश्क में पागल थी. गजब की सुंदर है. कार, कोठी, बैंक बैलेंस सबकुछ है. हो सकता है इस बार अपना चक्कर चल जाए.’’ मैं ने बुजुर्गों सरीखा उपदेश दे डाला, ‘‘भाई, जो कुछ करना है, जल्दी कर ले. आधे से ज्यादा बाल सफेद हो चुके हैं. आप के साथ के लोगों के बच्चे शादी कर के हनीमून भी मना चुके. तुम अभी तक कुंआरे हो. कभी आईने में देखा है खुद को, हड्डियों ने मांस का साथ छोड़ दिया है, गाल फूल चुके हैं, बालों पर मेहंदी भी ज्यादा दिन नहीं टिकती. तुम्हारा पेट गर्भवती स्त्री के पेट की तरह आगे की तरफ बढ़ता ही जा रहा है. फटाफट शादी कर लो वरना बाद में बहुत पछताओगे. बचाखुचा माल भी तुम्हारे ऊपर हाथ नहीं धरेगा. अब मियां बूढ़े हो चले हो तुम.  झूठ कहते हैं लोग कि आदमी और घोड़ा कभी बूढ़ा नहीं होता. खूसट हो जाने से पहले किसी के हो जाओ, वरना बुढ़ापे में वह गत होगी कि पूछो मत. तुम बेवकूफी में हुस्नपरी के ख्वाब पाले बैठे हो. गालिब सच कहते हैं, ‘चाहते हो खूबरूओं को असद, अपनी सूरत भी देखना चाहिए.’’’



रजत भैया पर इन बातों का असर नहीं होता. हर शनि या इतवार को लड़की देखने कहीं न कहीं निकल पड़ते हैं. 100 से ऊपर लड़कियां देख चुके हैं वे. कुछ तो पार्कों, होटलों, कौफी हाउस व दफ्तरों में जा कर तो बहुतों को उन के घर जा कर देखा उन्होंने. नित नई लड़की देखने का चस्का लग गया था उन्हें. उन दिनों यह फिल्मी गीत भी टौप टैन में खूब हिट जा रहा था, ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा जैसे खिलता गुलाब, जैसे शायर का ख्वाब, जैसे उजली किरण, जैसे वन में हिरण, जैसे…’ गाने के अनुरूप ही भैया सरीखे बांके सजीले नौजवान के लिए लड़कियों की तरहतरह की वैरायटी उपलब्ध थी. अखबारों के जरिए हर हफ्ते दर्जनों लड़कियों के फोटो पहुंचते थे उन के पास. कई रिश्ते जानपहचान वाले सुझाते. 3-4 मैरिज ब्यूरो दलाल भी अच्छी रुचि ले रहे थे.

सभी ने हाथ जोड़ लिए कि भैया, अब तो तौबा कर लो. महंगाई बढ़ती जा रही है, शादी कर लो. चाचाजी दिल के मरीज थे. चाहते थे कि मरने से पहले घर में पोता खेलता हुआ देख लूं. रजत भैया घर के कुलदीपक थे. वे वहम और कन्फ्यूजन की चरम स्थिति पर पहुंच गए थे. रजत भैया को लगता था कि हर लड़की एक दूसरी से बढ़ कर है. कुछ था जो उन्हें दूसरी, तीसरी, चौथी, 5वीं लड़की देखने को मजबूर कर रहा था. जब भी रिश्ते की बात उठती, लड़की के परिवार को ले कर मीनमेख निकाले जाते. हर कोई कहता, ‘‘भाई रजत, तुम पहले लड़की देख आओ, शायद पसंद आ जाए, परिवार को बाद में देख लेंगे.’’

‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लग, जैसे खिलता गुलाब…’ यह कमबख्त गाना ही ऐसा था जिस से प्रेरित हो कर रजत भैया हर लड़की को देख कर अजीब सा महसूस करते. कुछ लड़कियां जरूर उन्हें इस गाने की नायिका सरीखी लगीं. सुंदर, सुशील व भरीपूरी. रजत भैया हां कर देते मगर तेजतर्रार चाचीजी बीच में टांग अड़ा देतीं, ‘‘लड़की का पिता एक छोटे से दफ्तर में सुपरिंटैंडैंट है, क्या खाक ढंग से शादी करेगा. नाक कटवा देगा बिरादरी में.’’ कहीं धनी पिता मिल जाता तो जन्मपत्री का अडं़गा आ जाता.


खैर, रजत भैया को कौन सी जल्दी थी. वे उसी निरापद भाव से हफ्ते में 2-3 लड़कियां देख ही आते. उन की शिकायत भी अपनी जगह सही लगती. वे कहते, ‘बिट्टू यार, लड़कियों के मांबाप अब बहुत चंट हो गए हैं. बताते कुछ हैं, निकलता कुछ और है. कहते हैं, पहले लड़की देख लो, यह नहीं बताते कि लड़की को दहेज में नकदनामा क्या देंगे. कितना पैसा खर्च करेंगे शादी में. कहते हैं कि लड़की का मामा आईएएस है, होगा भाई, हमें क्या. सिर्फ लड़की थोड़ा देखने जाता हूं मैं. लड़कियां तो सभी एकजैसी होती हैं. और क्या विशेषताएं हैं, यह देखना पड़ता है.’’

भैया की लड़की देखने की रस्मों में हम भी उन के साथ लपक लेते. कुछ लड़कियां उन्हें मुगल गार्डन, रोज गार्डन व लेक पर मिलवाई जातीं. मांबाप किसी बहाने इधरउधर खिसक लेते. पीछे रह जाते रजत भैया और होने वाली भाभी. क्या गजब का रोमांटिक सीन होता. एक अजनबी हसीना, दिलकश शाम, सुरमयी मौसम, जुल्फों की घनेरी घटाएं, झील का किनारा, दूर तक फैली सपनों की हसीन दुनिया, 2 धड़कते हुए दिल. पता नहीं, दोबारा मुलाकात हो न हो. झील के ठहरे हुए पानी में चप्पू चलाते हुए रजत भैया खुद को शहजादे सलीम से कम नहीं समझते थे. उन का दिल यही करता था कि नित नई लड़की के साथ घूमाघूमी व अस्थायी संयोग का यह हसीन सिलसिला अनंतकाल तक चलता रहे.

शादी का क्या है, करोड़ों लोगों को विवाह की बलिवेदी पर चढ़ कर सारी उम्र दुख भोगना पड़ता है. लड़कियां देखते रहने का यह सुनहरा युग बेहद रोमांचक व आनंदमयी था. सकुचाई, शरमाई, घबराई लड़की उमराव जा या अनारकली से कम नहीं लगती थी. अगले दिन भैया फिर किसी दूसरी छुईमुई सी, सजीसंवरी, प्रफुल्लित दुलहन को देखने किसी फाइवस्टार होटल में विराजते. खूब चमकदमक वाली बातें होतीं. आखिर बड़े सरकारी संस्थान में इंजीनियर की शादी का प्रश्न था यह. कहते भी हैं कि आशिक का जनाजा है, जरा धूम से निकले. चाचाजी सुंदर, सुशील व ऊंचे घराने की बहू चाहते थे. मगर भैया की पसंद सर्वप्रथम थी. लिहाजा, लड़कियां देखते जाने का यह सिलसिला वर्षों से जारी था. खैर, वे लोग लड़की को भैया के पहलू में बिठा कर खिसक लेते. शायर कहता है, ‘डूबने वाला था और साहिल पे चेहरों का हुजूम, पल की मोहलत थी मैं किस को आंख भर कर देखता.’ थोड़े से समय में एक हरीभरी व भरपूर उठान वाली जवान लड़की को रजत भैया कैसे देख पाते, भला. अगले दिन लड़की के घर जा कर उन की फिर मुलाकात करवानी पड़ती. युवा लड़की और अधेड़ होते जा रहे रजत भैया एकदूसरे में कुछ और ढूंढ़ रहे थे. बेचारे मांबाप किसी और ही सोच में रहते थे.


खैर, जैसे सभी खूबसूरत सिलसिलों का नसीब होता है, लंबे समय तक रजत भैया का यह सुरमयी सिलसिला नहीं चल पाया. हमारे बड़े से कुनबे के वरिष्ठ जीजाजी रजत भैया के कौतुक को देखदेख कर कुढ़ रहे थे. वे अपने जमाने के ऊंचे व कामयाब खिलाड़ी थे. अपनी शादी के लिए लड़कियां देखने के मामले में उन्होंने भी खूब झक मारी थी. लगभग सभी घाटों का पानी पिया था. उन्हें चिंता हुई कि इस तरह उन के सालेश्री यानी रजत भैया कुंआरे ही न रह जाएं, जो वे कतई नहीं चाहते थे. यों हर हफ्ते नई लड़की देखने का सुख रजत भैया लूटते जा रहे थे, जीजाजी से वह सहन नहीं हो रहा था.

जीजाजी की वास्तविक जलन के पीछे एक कारण और भी था. जीजाजी व बड़ी दीदी सुहासनी की शादी जल्दी फाइनल करवाने में रजत भैया ने सकारात्मक भूमिका निभाई थी. जीजाश्री इसी बात का अब बदला लेना चाहते थे. आखिरकार उन्होंने रजत भैया को अपनी रिश्तेदारी में फांस ही लिया. इत्तफाक से उसी शहर में भैया की 1 माह की टे्रनिंग थी जहां जीजाश्री का कुनबा रहता था. भैया की मूर्खता देखिए कि वे होने वाले ससुर के घर ही टिके. शेर को पिंजरे में कैद कर दिया गया. इस बार भैया ने लड़की को कुछ ज्यादा ही करीब से देख डाला. चतुर सुजान व चंटचालाक कौआ उत्सुकतावश गंदगी में ही चोंच मारता है. भैया समझते थे कि हर झाड़ी में खरगोश ही होते हैं मगर उन्हें मालूम न था कि कुछ झाडि़यों में सांप भी होते हैं. अब उन्हें पता चला कि सपेरा सांप के काटने से क्यों मरता है या घर बरसात में ही क्यों जलते हैं.

उस खुशकिस्मत लड़की को जीजाश्री, द ग्रेट, ने ऐसी पट्टी पढ़ाई थी कि वह तनमनधन से रजत भैया की दीवानी हो गई. महीनाभर भैया उस मायावी विषकन्या के उन्मुक्त प्रेम के गहरे सागर में डुबकी लगाते रहे. चाचाचाची तो पहले ही हां कर चुके थे, रजत भैया की हां क्या हुई कि समझो गई भैंस पानी में.उस के बाद लड़कियां देखने का रजत भैया का सिलसिला टूट गया. कितने ऊंचे ख्वाब देखे थे भैया ने. सबकुछ भूल जाना पड़ा. उन्हें शादी के बंधन में बेरहमी से जकड़ दिया गया. वे विवाह मंडप में अंतिम फेरे तक भागने की कोशिश में रस्सियां तुड़ा ते फिरे मगर अब भागना आसान नहीं था. उन्हें जकड़ा गया और उन की नकेल बुजुर्ग समान चुस्त भाभी के झुर्रियों वाले हाथों में थमा दी गई. अब भैया की उम्र 55 थी तो भाभी 50 से ऊपर तो थीं ही. भाभी हंसतीं तो गालों में गड्ढे पड़ने के बजाय झुर्रियां नजर आतीं. रजत भैया की हालत ऐसी थी जैसे हारा हुआ पोरस सिकंदर के सामने पेश किया जा रहा हो. ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा…’ अब यह गीत सुन कर रजत भैया डिप्रैशन की हद तक उदास हो कर पुरानी दर्दभरी यादों में खो जाते हैं.


आजकल उन्हें अपने होनहार भतीजे यानी हमारे वली अहद, बेटे से जलन होती है जो अपने ग्रेट ताऊ यानी रजत भैया की तरह लड़की देखने के लिए खाक छानने में लगे हैं. भैया जलते थे हमारे बेटे से जो हर रोज नित नई लड़की देखदेख कर धन्यधन्य हो रहा था. ऐसी लड़कियां जिन्हें हिंदी के रसप्रिय, कुंठित व विद्रोही कवियों ने कमसिन, मोहिनी, गजगामिनी आदि उपमाओं से नवाजा हुआ है.





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