Hindi Kahani Sandhya Aanokha Rista In Hindi भाग 1 अनोखा रिश्ता |
संध्या कहनी अनोखा रिश्ता
Aanokha Rista In Hindi | मुझे बहुत आश्चर्य होता है, बच्चों के ऐसे व्यवहार पर,’ मैं ने कहा तो राजेश ने मुझे समझाते हुए कहा, ‘देखो सविता, राजीव के व्यवहार से स्पष्ट है कि वह लौट कर हमारे पास नहीं आ रहा है.
अनोखा रिश्ता: भाग 1
राजीव उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए अमेरिका गया था लेकिन वहीं का हो कर रह गया. अच्छी पढ़ाई के फलस्वरूप उसे वहां बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई. नौकरी के 4 महीने के अंदर ही उस ने अपनी अमेरिकी सहकर्मी से शादी भी कर ली.
मैं मन ही मन सोचती, ‘सच में, आज की दुनिया बहुत ही तीव्रगति से भाग रही है. कुछ समय पहले तक मेरा राजीव खानेपहनने तक में मेरी सलाह लेता था, अब वह शादी जैसे अहम विषय पर भी खुद ही निर्णय लेने लगा.’
राजीव के व्यवहार से हम पतिपत्नी बहुत उदास थे. राजेश गंभीर स्वभाव के हैं, इसलिए प्रकट नहीं करते थे लेकिन मुझ से अपनी उदासी छिपाई नहीं जाती थी. राजेश मुझे समझाते, ‘सविता, उदास होने से कोई फायदा नहीं है, बेटा तरक्की कर रहा है, खुश है, यह सोच कर खुश रहो, ज्यादा उम्मीद न लगाओ.’ मैं उदासीनता से कहती, ‘राजीव की तरक्की से तो मैं बहुत खुश हूं लेकिन हमारे बारे में सोचना भी तो उस का कर्तव्य है. इसे वह कैसे भूल बैठा. अपने देश में नौकरी करता, यहां की लड़की से शादी करता, हमें भी अपनी खुशी में भागीदार बनाता. वह तो वहीं का हो कर रह गया.’
राजेश मुझे समझाते हुए कहते, ‘आज के युग में यह बहुत ज्यादा हो रहा है. हमारे देश के युवा विदेश की चकाचौंध से आकर्षित हो कर वहीं रचबस जाते हैं. हमारे कई परिचितों के बच्चों ने भी ऐसा किया है.’
‘मुझे बहुत आश्चर्य होता है, बच्चों के ऐसे व्यवहार पर,’ मैं ने कहा तो राजेश ने मुझे समझाते हुए कहा, ‘देखो सविता, राजीव के व्यवहार से स्पष्ट है कि वह लौट कर हमारे पास नहीं आ रहा है. अब तो उस के फोन भी बहुत कम आते हैं, आते भी हैं तो चंद सैकंड के लिए, मात्र औपचारिकता. वह अपनी दुनिया में मस्त है.’
कुछ पल बाद उन्होंने फिर कहना शुरू किया, ‘हम ने बड़े प्यार व शौक से यह दोमंजिला मकान बनवाया था क्योंकि हैदराबाद में राजीव को नौकरी मिल जाने की पूरी उम्मीद थी. वह भी हमेशा ऐसा ही कहा करता था. वह तो अमेरिका जाने के बाद अपनी कहीसुनी सारी बातें ही भूल बैठा. खैर, उस समय तो हम ने यही सोचा था कि राजीव यहीं नौकरी करेगा और शादी के बाद भी वह हमारे साथ ही रहेगा. यदि हम सब का तालमेल ठीक बैठा तब सब एक ही मकान में रहेंगे. यदि एकदूसरे से असुविधा महसूस हुई तब अलगअलग ऊपर व नीचे रह लेंगे. इस तरह से साथसाथ या पासपास रह सकेंगे.’
मैं ने उदासीनता से कहा, ‘अब तो न साथसाथ न ही पासपास रहना हो सकेगा.’ राजेश ने कहा कि ऊपर का हिस्सा किराए पर दे देंगे. मैं ने सहमति देते हुए कहा कि यही सही रहेगा. इस से कोई तो बात करने के लिए मिलेगा. पैसा तो हमारे पास ठीकठाक है. दोनों की पैंशन गुजरबसर के लिए काफी है. ऊपरी मंजिल किराए पर देने से सूनापन व अकेलापन जाता रहेगा.
इस विचार से हम ने घर के बाहर ‘टूलेट’ का बोर्ड लगा दिया.अगले ही दिन रामेश्वर दयाल बातचीत के लिए आ पहुंचे. उन्होंने बताया कि वे बैंक मैनेजर हैं. उन का बैंक हमारी ही कालोनी में है. उन के बेटे का इंजीनियरिंग कालेज हमारी कालोनी के नजदीक है. इसलिए वे हमारा मकान किराए पर लेने के इच्छुक हैं. हम दोनों को वे बेहद शालीन व सभ्य मालूम हुए. हम ने उन्हें मकान किराए पर दे दिया.
रविवार के दिन वे लोग हमारे घर में शिफ्ट हो गए. राजेश ने उन से आग्रह किया, ‘रामेश्वरजी, आज आप को सामान व्यवस्थित करना है, इसलिए आप लोग लंच हमारे साथ कीजिए.’ हंसमुख रामेश्वरजी ने कहा, ‘चलिए यही ठीक रहेगा. एक दिन तो अपने हाथ के खाने से छुटकारा मिलेगा,’ और वे ठहाका लगा कर हंस पड़े.
रामेश्वरजी अपने इकलौते बेटे रोहन के साथ लगभग 1 बजे खाना खाने आ गए. रोहन को देख मुझे बारबार राजीव की याद आ जाती, ठीक वही रंगरूप, कदकाठी, उठनेबैठने, बातें करने का तरीका भी बहुत मिलताजुलता. रोहन से बात करने, उसे खिलाने में मुझे विशेष आनंद महसूस हो रहा था.
रामेश्वरजी और रोहन के आ जाने से हमें स्वत: ही घर में चहलपहल सी महसूस होने लगी. अगले दिन सुबह रोहन की तेज आवाज सुनाई दी, ‘नहीं, मैं नहीं पीऊंगा बौर्नविटा, मुझे कौफी ही पीनी है.’
रामेश्वरजी मनुहार करते हुए बोले, ‘आज पी लो, बना दिया है. कल से कौफी ही बना दूंगा.’ रोहन, बालकनी से चिल्लाते हुए बोला, ‘मैं ने कह दिया न, नहीं पीऊंगा तो बस नहीं पीऊंगा, मेरे पीछे मत लगिए,’ और वह तेजी से सीढ़ी उतर गेट के बाहर निकल गया.
हम पतिपत्नी बागबानी में लगे हुए थे. हम दोनों ने पितापुत्र की सारी बातें सुनी थीं, किंतु अनसुने से बने अपने काम में लगे हुए थे. रामेश्वरजी ऊपर जाने के पहले एक मिनट के लिए ठिठके, बोले, ‘आप का बगीचा काफी सुंदर है. आप दोनों का ही बागबानी में मन लगता है. आप ने अपने किचन गार्डन में भी काफी कुछ लगा रखा है.’
राजेश ने हाथ धोते हुए कहा, ‘काफी कुछ तो नहीं, हां कुछकुछ लगा दिया है. रामेश्वरजी, क्या बताऊं ताजीताजी मूली, भिंडी, टमाटर, पालक का स्वाद ही कुछ अलग होता है.’
राजेश ने उन से चाय का आग्रह किया किंतु वे असहज महसूस कर रहे थे इसलिए व्यस्तता का बहाना बना ऊपर लौट गए. अगले दिन फिर रोहन के चीखने की आवाज सुनाई दी, ‘आप ने क्यों कौफी बनाई, मुझे कौफी नहीं पीनी, मैं बौर्नविटा पीऊंगा.’
रामेश्वरजी ने आहत स्वर में कहा, ‘तुम तो हद करते हो, आज कौफी बना दी तो तुम्हें बौर्नविटा चाहिए.’रोहन बदतमीजी से बोला, ‘आप यह सब क्यों करते हैं? मैं कोई बच्चा नहीं हूं, खुद बना लूंगा.’
रामेश्वरजी ने प्यार से कहा, ‘मुझे तुम्हारे लिए करना अच्छा लगता है.’
रोहन ने सख्त लहजे में कहा, ‘मुझे बुरा लगता है.’
रोहन यह आया, वह गया की तर्ज पर तेजी से मोटरसाइकिल से चलता बना. बेचारे रामेश्वरजी दौड़ कर भी उसे रोक न पाए.
हम पतिपत्नी बागबानी के बाद चाय का प्याला ले कर बगीचे में ही बैठे थे. राजेश ने आज फिर रामेश्वरजी से चाय का आग्रह किया. रामेश्वरजी मान गए. साथ चाय पीना, कुछ हलकीफुलकी बातें करना हम तीनों को ही अच्छा लगा.
आज रविवार का दिन था. पितापुत्र में बहस हो रही थी. तेज आवाज रोहन की ही थी. हम दोनों सोच ही रहे थे कि ऊपर जा कर देखते हैं कि माजरा क्या है. तभी रोहन बंदूक से छूटी गोली की तेजी जैसे दनदनाता हुआ निकला, गेट के बाहर सुमो गाड़ी में 8-10 लड़केलड़कियां लदे हुए थे तथा होहल्ला कर रहे थे. रोहन भी उस में सवार हो, होहल्ले में शामिल हो चलता बना सब के साथ. रामेश्वरजी पूछते ही रह गए, ‘कब तक लौटोगे, यह तो बताते जाओ?’ लेकिन रोहन को उन्हें सुनने व जवाब देने की सुध हो तब न.
हमें देख रामेश्वरजी हमारे साथ ही आ बैठे. हमारे आग्रह पर उन्होंने चायनाश्ता हमारे साथ ही किया.
घंटे डेढ़ घंटे बाद रामेश्वरजी ऊपर जाने का उपक्रम करने लगे. मैं ने कहा, ‘भाईसाहब, रोहन भी बाहर गया हुआ है. आप हमारे साथ ही लंच कीजिए.’
पहले तो वे कुछ सकुचाए किंतु बारबार आग्रह करने पर राजी हो गए.
खाना तो हम तीनों ने मिल कर बनाया. राजेश तो रोज ही मेरी कुकिंग में मदद करते थे. रामेश्वरजी भी यह कह कर साथ हो लिए, ‘चलिए, मैं तो रोज ही खाना पकाता हूं, थोड़ी मदद किए देता हूं.’
साथसाथ काम करते हुए काफी औपचारिकताएं खत्म हो गईं, इसलिए हम खुल कर बातें करने लगे. मैं ने कहा, ‘भाईसाहब, बुरा न मानें तो एक बात जानना चाहूंगी, वैसे इच्छा न हो तो ना कर दीजिएगा.’
रामेश्वरजी अचंभित से बोले, ‘कैसी बातें करती हैं, भाभीजी. जो पूछना हो पूछ लीजिए.’
मैं ने कहा, ‘भाईसाहब, मुझे यह बात दुविधा में डालती है कि आप ने अपने घर में अपनी पत्नी की एक भी तसवीर नहीं लगाई है?’
रामेश्वरजी धीरे से बोले, ‘भाभीजी, अब जब नाता ही नहीं रहा तब तसवीर लगाने का क्या मतलब?’
मैं ने आश्चर्य से पूछा, ‘नाता नहीं रहा, मतलब वे जीवित हैं?’
रामेश्वरजी ने फीकी मुसकान के साथ कहा, ‘हां, वह जीवित है, उस ने मुझे छोड़ दिया.’
मैं ने आश्चर्य से कहा, ‘यह सब ऐसे कैसे हो गया?’
रामेश्वरजी बोले, ‘मैं एक बैंक कर्मचारी हूं. बैंक इतना पैसा तो देता है कि ढंग से जीवन बसर हो जाए किंतु उसे बहुत ही हाईफाई जिंदगी पसंद थी. उस के पापा उच्च सरकारी अफसर थे, जिन्हें तनख्वाह के अलावा रिश्वत व उपहारों की भी आमदनी होती थी. वह अपने मातापिता की इकलौती संतान है इसलिए बेहिसाब पैसा खर्च करने की नहीं बल्कि बरबाद करने की भी उसे पूरी छूट थी.
‘मेरे पास उस के मायके जैसी आमदनी न थी. मैं अपनी पूरी तनख्वाह उस के हाथ में सौंप देता, किंतु मेरी तनख्वाह तो उस के लिए ऊंट के मुंह में जीरे के समान साबित होती. ‘पैसे को ले कर वह मुझ से झगड़ती. वह भी पढ़ीलिखी थी. मैं ने उस से कहा, तुम भी नौकरी कर लो, आमदनी बढ़ने से मनमरजी खर्च कर सकोगी.
‘वह कहती, मेरे मातापिता को यह पसंद नहीं कि उन की राजकुमारी नौकरी करे.
‘मैं कहता, आजकल तो बड़ेबड़े घर की लड़कियां भी नौकरी कर रही हैं. इसीलिए झगड़ने से अच्छा है आमदनी बढ़ाई जाए. ‘वह कहती, हमारी कालोनी में मेरी मां की एक सहेली हैं, उन के पति भी बैंक मैनेजर हैं. वे तो अच्छा कमा लेते हैं. वे लोग तो बड़े ठाट से रहते हैं. उन्हें देख कर ही मैं ने तुम से शादी के लिए हां की थी.
‘मैं ने उसे समझाया, देखो शालू, मैं रिश्वत लेना और देना दोनों ही गलत मानता हूं. तुम नौकरी नहीं करना चाहतीं, मत करो. मेरी तनख्वाह में शांति से रहो.‘शालू को तो ऊपरी कमाई का नशा चढ़ा हुआ था. उस ने बचपन से ऊपरी कमाई का आनंद उठाया था. वह मायके से पैसा लाना चाहती जिस के लिए मैं ने उसे साफ कह दिया था कि यदि वह वहां से पैसा लाएगी तो मैं जान दे दूंगा.
‘शालू ने मितव्ययिता से रहना सीखा ही न था. इसलिए पैसे के लिए नित्य झगड़ना ही उस का काम बन गया था. रोहन का तकाजा देने से भी वह नहीं रुकती थी.’
मैं ने कहा, ‘अमीर मायका होने के कारण समझौता न कर पाईं और मायके जा बैठीं.’
रामेश्वरजी ने कहा, ‘मायके जा बैठतीं तो इतना दुख न होता किंतु वह तो…’ इतना कहते हुए उन की आंखों से आंसू टपक गए. हम सभी शांत हो गए. उन्होंने फिर कहना आरंभ किया, ‘उस दौरान मेरा एक कालेज का दोस्त औफिस के काम से आया तथा मेरे घर पर मिलने भी आया. वह आया तो 2 दिनों के लिए था किंतु यह कहते हुए हफ्तेभर के लिए रुक गया कि यार, अब आया हूं तो रुक जाता हूं, बारबार आना तो होता नहीं, इसी बहाने अपने यार से जीभर कर बातें भी हो जाएंगी. मैं भी खुश हो गया कि चलो अच्छा है, इस बहाने पुरानी यादें ताजा होंगी और शालू के झगड़ों से अवकाश भी मिल जाएगा.
मैं भी अपना आपा खो बैठा, चीखते हुए कहा, अरे निर्लज्ज, कम से कम सुमन के जाने का तो इंतजार कर लेती, वर्षों बाद तो मैं अपने जिगरी यार से मिला हूं.
‘बैंक में औडिट के कारण मैं चाह कर भी छुट्टी न ले सका, इसलिए दिन में मैं औफिस और रोहन स्कूल चले जाते थे. इस बीच शालू और मेरे मित्र सुमन को बातचीत का अच्छा अवसर मिलता. दोनों के ही विचार मिलते थे. सुमन भी सरकारी अफसर था तथा अपने पद का लाभ उठा तनख्वाह के अतिरिक्त ऊपरी कमाई का हिमायती था. दोनों ने साथ रहने का निर्णय ले लिया.
‘मैं सपने में भी ऐसी कल्पना नहीं कर सकता था. उस दिन मैं रोहन के पास बैठ कर न्यूजपेपर देख रहा था. रोहन अपना होमवर्क कर रहा था. सुमन आधे घंटे में लौटने को कह कर बाहर गया था. तभी शालू ने बिना प्रस्तावनाउपसंहार के कहा, मुझे आप से तलाक चाहिए.
‘अचानक पड़े प्रहार से मैं अचकचा सा गया, फिर भी खुद को संभालते हुए कहा, थोड़ा समझो शालू, मेरी जैसी या मेरे से कम तनख्वाह पाने वाले मेरे सहकर्मी, सभी तो शांतिपूर्वक जीवन जी रहे हैं.
‘चिकने घड़े की तरह शालू पर कोई प्रभाव न पड़ा. वह प्रतिउत्तर में बोली, और लोग कर लेते होंगे इतनी तनख्वाह में गुजर, मुझ से नहीं होती. मैं रोज की खींचतान से परेशान हो गई हूं.
‘मैं ने फिर कोशिश करते हुए कहा, शालू, जरा रोहन के विषय में तो सोचो, इस कच्ची उम्र में उसे मातापिता दोनों का स्नेह व संरक्षण चाहिए.
‘शालू तो निर्णय ले चुकी थी. इसलिए पूर्ववत ही बोली, तुम उसे मांपिता दोनों का स्नेहसंरक्षण देना. मैं तुम दोनों को छोड़ कर जा रही हूं. मुझे तुम्हारी कोई निशानी नहीं चाहिए. मैं नए सिरे से जिंदगी शुरू करना चाहती हूं.
‘मैं भी अपना आपा खो बैठा, चीखते हुए कहा, अरे निर्लज्ज, कम से कम सुमन के जाने का तो इंतजार कर लेती, वर्षों बाद तो मैं अपने जिगरी यार से मिला हूं. चार दिन तो खुशी से जी लेने देती. वह तो अच्छा है कि वह अभी यहां नहीं है वरना मेरी पारिवारिक स्थिति देख वह कितना दुखी होता.
‘शालू ने कटाक्ष करते हुए कहा, मैं उन्हीं के साथ जा रही हूं. वे मेरे लिए उपयुक्त जीवनसाथी हैं, न आमदनी की चिंता और न ही खर्चे का हिसाब. जैसे चाहो कमाओ और जीभर कर उड़ाओ. हम दोनों के विचार पूरी तरह समान हैं.
‘शालू की बातें सुन मैं अवाक् रह गया. सारी बातें समझ में आने लगीं. मेरा जिगरी यार मेरे साथ समय गुजारने के लिए नहीं रुका था बल्कि अपने मित्र की असंतुष्ट पत्नी को अपने जाल में फांसने के लिए रुका था. सुमन की पत्नी का 6 माह पूर्व एक ऐक्सिडैंट में देहांत हो चुका था. असंतुष्ट शालू को उस ने भांप लिया और दो के झगड़े में तीसरे का लाभ वाली कहावत चरितार्थ कर बैठा. मैं इन सब बातों से अनभिज्ञ अपनों के हाथों ठगा गया. बस, उस समय से शालू गई तो गई, बाद में हमारा कानूनी तलाक भी हो गया.’
खाना बन चुका था, लंच का समय भी हो चला था किंतु रामेश्वरजी की जीवनगाथा सुन, अजीब सी उदासीनता पसर गई थी. हम सभी चुप थे. रामेश्वरजी ने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘क्या भाभीजी, खाना नहीं खिलाइएगा?’
मैं ने उठते हुए कहा, ‘जरूरजरूर, अभी लगाती हूं.’
रामेश्वरजी ने धीरे से कहा, ‘मेरा तलाक हुए 12 वर्ष हो चुके हैं, अब तो इस दर्द के साथ जीने की आदत सी हो गई है.’
खाना खाने के बाद हम तीनों ड्राइंगरूम में आ कर बैठ गए. राजेश ने पूछा, ‘रामेश्वरजी, आज आप ने अपनी पत्नी के बारे में बताया, किंतु मेरे मन में एक और प्रश्न है. मैं, आप के और रोहन के रिश्ते के बारे में जानना चाहता हूं. वह आप के प्रति बहुत रूखा व सख्त है जो उचित नहीं. कुछ तो बताइए, शायद हम कुछ मदद कर सकें.’
रामेश्वरजी ने कहा, ‘सच कहूं तो मुझे इस हेतु मदद की आवश्यकता है भी किंतु मैं किसी से कहने से झिझकता हूं कि भला मेरी व्यक्तिगत समस्या में क्यों कोई दिलचस्पी ले कर मदद करेगा. आप ने पूछा है, मैं आभारी हूं और आप को अवश्य बताता हूं.
‘शालू मुझे छोड़ कर चली गई. कच्ची उम्र का नन्हा रोहन देखसुन तो सब रहा था किंतु समझ कम रहा था. शालू के जाने के बाद उसे शालू से तो नफरत हो गई किंतु प्यार वह मुझ से भी नहीं कर सका. उसी ने बैडरूम में लगी हमारी तसवीर कूड़ेदान में डालते हुए धमकी भरे लहजे में कहा, दोबारा मत लगाइएगा.
‘मुझे ऐसा महसूस होता है कि रोहन मुझे एक कमजोर इंसान मानने लगा है, जो अपनी पत्नी को न संभाल सका, भला वह क्या कर सकेगा? मातापिता की रोज की किचकिच ने उस का बचपन बरबाद कर दिया. इन झगड़ों से शायद खुद को असुरक्षित महसूस कर वह सख्त व रूखा बन बैठा है.’
मैं ने कहा, ‘आप ने ठीक कहा, भाईसाहब…मांपिता के झगड़ों से चिढ़ कर उस ने आप के साथ सख्त व रूखा व्यवहार अपना लिया है. वह आप को अपमानित कर संतुष्ट होता है.’
राजेश ने कहा, ‘मुझे भी ऐसा महसूस हो रहा है. वह आप को बेइज्जत करने का मौका ढूंढ़ता रहता है किंतु एक अच्छी बात है कि वह अपने हमउम्र के साथ अच्छा व्यवहार करता है. तभी तो उस के इतने दोस्त हैं. हमें उस के मन से इस गलत धारणा को निकालना होगा कि उस के पापा एक कमजोर इंसान हैं, हमें प्रयास कर उसे समझाना होगा कि उस के पापा एक मजबूत इंसान हैं जिन्होंने अपना जीवन उस की परवरिश हेतु न्योछावर कर दिया. वे भी तो दूसरा विवाह कर सकते थे, तब उस का क्या होता? उन्होंने स्वयं से ज्यादा रोहन पर ध्यान दिया. हम तीनों के प्रयास से मुझे पूरा विश्वास है कि रोहन का पूरा मैल धुल जाएगा तथा एक निर्मल, कोमल रोहन विकसित हो सकेगा.’
‘आप लोगों के सहयोग से यदि रोहन बदल जाता है, मेरा जीवन धन्य हो उठेगा, मैं आप लोगों का एहसान कभी नहीं भूलूंगा,’ रामेश्वरजी भावविह्वल हो बोले.
मैं तुरंत बोल पड़ी, ‘कर दी न, भाईसाहब, परायों वाली बात? अरे, अपनों के बीच एहसान कहां से आ गया?’
राजेश बोले, ‘देखिए रामेश्वरजी, हम ने अपने बेटे राजीव को प्यार से पालापोसा, पढ़ायालिखाया. आज वह विदेश में जा बैठा है तथा परायों सा व्यवहार कर रहा है. वह खुश है, यह सोच हम भी खुश हो लेते हैं. अब अपनी आंखों के सामने रोहन को भटकते देख रहे हैं. हम सब उसे सही रास्ते पर लाने का प्रयास करते हैं, अवश्य लाभ होगा.’
हम तीनों ने मिल कर तय किया कि औफिस के काम के बहाने रामेश्वरजी 4-6 दिनों के लिए शहर से बाहर जाएं जिस से हम रोहन के नजदीक आ सकें. रामेश्वरजी ने तय कार्यक्रम के अनुसार रोहन को बाहर जाने का कार्यक्रम बता दिया. उस ने उन की बातों का कोई जवाब नहीं दिया. रामेश्वरजी अपना सामान ले कर जा रहे थे, वह बेपरवा औंधेमुंह लेटा रहा.
रामेश्वरजी से फोन पर बात हुई. सुबह बे्रकफास्ट का वाकेआ सुन वे खुश हो कर बोले, ‘वाह, राजेशजी, यह तो कमाल हो गया. वह अपने हमउम्र के अलावा तो किसी से हंस कर बात ही नहीं करता
अगले दिन सुबह राजेश मिठाई, फल, पनीर, सैंडविच, एक थर्मस में बौर्नविटा व एक थर्मस में कौफी ले कर ऊपर रोहन के पास पहुंच गए. रोहन मैगी बनाने की तैयारी कर रहा था. राजेश ने गर्मजोशी से गुडमौर्निंग करते हुए कहा, ‘आओ बेटा, साथ में नाश्ता करते हैं.’
रोहन चुपचाप किचन से निकल आया, बोला, ‘मुझे बेटा मत कहा कीजिए, मैं कोई बच्चा नहीं हूं.’
राजेश ने कहा, ‘ठीक है, फ्रैंड कहूंगा या रोहन ही बोलूं?’
रोहन बोला, ‘जो बोलना हो बोलिए. बस, बेटा मत कहिए.’
राजेश और रोहन ने नाश्ता कर लिया. रोहन ने सभी चीजें शौक से खाईं. राजेश ने पूछा, ‘बोलो फ्रैंड, कौफी पीओगे या गरमागरम बौर्नविटा?’
रोहन ने मुसकराते हुए कहा, ‘कुछ भी दे दीजिए.’
राजेश ने छेड़ते हुए कहा, ‘नहीं फ्रैंड, मैं इस चक्कर में नहीं पड़ूंगा. मुझे क्या पता कि आज तुम्हें क्या पीना है, इसीलिए मैं दोनों ही ले आया हूं.’
रोहन ने हंसते हुए कहा, ‘आप मुझे कौफी दे दीजिए.’
रामेश्वरजी से फोन पर बात हुई. सुबह बे्रकफास्ट का वाकेआ सुन वे खुश हो कर बोले, ‘वाह, राजेशजी, यह तो कमाल हो गया. वह अपने हमउम्र के अलावा तो किसी से हंस कर बात ही नहीं करता.’ ढाईतीन बजे के लगभग रोहन कालेज से लौट कर ऊपर जाने वाला था, मैं ने उसे टोकते हुए कहा, ‘रोहन, मैं ने तुम्हारे लिए खाना बना लिया है. यदि यहां बैठ कर खाओगे तो लगा देती हूं, वरना ऊपर ले जा सकते हो.’
दो पल वह ठिठका, बोला, ‘दे दीजिए.’
मैं ने रामेश्वरजी से रोहन की पसंद जान ली थी. उस की पसंद का पनीर बटर मसाला, दाल तरी, बूंदी का रायता, सलाद, रोटीचावल उसे लगा कर दे दिया.
रात में राजेश खाना ले कर ऊपर ही चले गए. रोहन टीवी देख रहा था. उन्हें देख अचकचा कर बोला, ‘इतना परेशान मत होइए, मैं पिज्जा और्डर कर देता.
राजेश कब चुप रहने वाले थे, ‘फ्रैंड, आज आंटी के हाथों का बना खा लो. कल डिनर में पिज्जा और्डर करेंगे, मुझे और आंटी को भी बहुत पसंद है.’
दोनों ने साथ खाना खाया, कुछ बातचीत भी हुई. रोहन ने भी बातचीत में दिलचस्पी दिखाई. राजेश चलते समय बोले, ‘ओ के फ्रैंड, गुडनाइट, सुबह बे्रकफास्ट पर मिलते हैं.’
रोहन गुडनाइट कहते हुए बोला, ‘अंकल, बे्रकफास्ट पर एक शर्त पर मिलूंगा. आप बे्रकफास्ट ऊपर नहीं लाएंगे. मैं नीचे आ कर लूंगा.’
राजेश ने खुश हो कर कहा, ‘चलो, यही तय रहेगा.’
राजेश बेहद खुश थे कि रोहन ने अपनेपन से उन्हें अंकल शब्द से संबोधित किया था.
‘पहले ही दिन का रिस्पौंस इतना अच्छा मिलेगा, इस की तो मैं ने कल्पना ही नहीं की थी, अब मुझे विश्वास हो रहा है कि मुझे मेरा रोहन वापस मिल जाएगा.’ फोन पर भावविह्वल हो कर रामेश्वरजी बोले.
अगले दिन साढ़े 7 के पहले, रोहन खुद ही बे्रकफास्ट के लिए आ गया. मैं टेबल ठीक कर रही थी. आते ही वह बोला, ‘गुडमौर्निंग, आंटी. आप के हाथों में जादू है. आप खाना बहुत अच्छा बनाती हैं.’
मैं ने उसे थैंक्स करते हुए सिर सहला दिया, जिस का उस ने प्रतिवाद नहीं किया. हम तीनों ने साथ ही नाश्ता किया. वह कालेज जाने के लिए तत्पर हुआ तो मैं ने पूछा, ‘रोहन, तुम अपनी पसंद बता देते तब मैं लंच में वही बनाती.’
उस ने कहा, ‘आंटी, आप इतना अच्छा बनाती हैं कि कुछ भी बनाइए, अच्छा ही बनेगा.’
मैं ने कहा, ‘फिर भी, तुम्हारी पसंद का बनाने का दिल कर रहा है.’
उस ने कहा, ‘मुझे राजमाचावल, साथ में प्याज व हरीमिर्च का रायता बहुत पसंद है.’
मैं ने कहा, ‘ठीक है, मैं यही बनाऊंगी. रात में तो तुम्हारा डबल चीज पिज्जा खाने का मन है न?’
रोहन ने कहा, ‘आंटी, यदि आप को तकलीफ न हो तो मैं आप के हाथ का बना खाना ही खाना चाहूंगा.’
हम पतिपत्नी रोहन के व्यवहार से बेहद खुश हुए. उस ने औपचारिकता त्याग कर मेरे हाथ के खाने की फरमाइश की.
रामेश्वरजी से फोन पर बात होती रहती थी. वे यह जान कर खुशी से बोले, ‘राजेशजी, आप लोगों ने बहुत जल्दी उस के दिमाग की खिड़की खोल दी. चलिए, अब हमें रोशनी डालने की जगह तो मिल गई.’ आज रोहन का कालेज बंद था. हम ने पूरा दिन ही रोहन के साथ बिताने का कार्यक्रम बनाया. सुबह 8 बजे तक वह आ गया. मैं ने टेबल ठीक करते हुए कहा, ‘बेटा, आज मैं ने साउथ इंडियन डिशेज बनाई हैं. तुम्हें यदि पसंद न हों तो तुम्हारे लिए कुछ और बना देती हूं.’
मैं ने गौर किया, मेरे ‘बेटा’ संबोधन पर उस ने एतराज नहीं जताया.
रोहन ने झट से कहा, ‘नहीं, आंटी, मुझे तो साउथ इंडियन डिशेज बेहद पसंद हैं. मैं तो यही खाऊंगा.’
बे्रकफास्ट के बाद हम तीनों कौफी ले कर बालकनी में चले आए. रोहन अब काफी अपनेपन से बातें करने लगा था. हम ने उसे राजीव का एलबम दिखाया. उस ने राजीव व उस की पत्नी तथा बेटी के बारे में काफी बातें कीं तथा बोला, ‘राजीव भैया को आप लोगों से ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था, कम से कम फोन से तो बराबर बातें करनी चाहिए थीं. और साल में एक बार तो आप लोगों से मिलने के लिए उन्हें आना चाहिए था.’
मैं ने कहा, ‘रोहन बेटा, कुछ बच्चे ऐसा कर जाते हैं. मातापिता तो अपना सर्वस्व बच्चों पर लगा देते हैं, वे खुद से ज्यादा बच्चों की चिंता करते हैं किंतु कुछ बच्चे अपनी जिंदगी की मंजिल तय करते समय उन्हें राह में अकेला छोड़ आगे बढ़ जाते हैं. वे अपनी उन्नति व स्वार्थ के नशे में मातापिता को भुला बैठते हैं. वे यह भी भूल जाते हैं कि यदि मातापिता ने भी उन्हें भुला दिया होता तब वे किस लायक होते?’
मेरी बातें सुनने के बाद रोहन शांतभाव से कुछ सोचने लगा हम ने टटोलते हुए पूछा, ‘क्या बात है, बेटा? एकदम शांत हो गए हो?’
‘नहीं आंटी, यों ही,’ उस ने बात टालते हुए कहा.
हम दोनों अच्छी तरह समझ रहे थे कि रोहन, रामेश्वरजी के प्रति स्वयं के व्यवहार की समीक्षा कर रहा है.
राजेश ने देखा, लोहा गरम है, चोट करना उचित रहेगा. वे उसे टटोलते हुए बोले, ‘फ्रैंड, तुम अपने पापा के प्रति काफी रूखे हो, क्या बात है? फ्रैंड मानते हो न मुझे, इतना जानने का तो हक है मेरा?’
रोहन धीरे से बोला, ‘अंकल, मैं चाह कर भी पापा के साथ सहज नहीं रह पाता हूं. अभी वे नहीं हैं तो उन की कमी महसूस करता हूं किंतु सामने होते हैं तो चिढ़ ही होती है उन से. मैं पूरी तरह कन्फ्यूज्ड हूं. मैं ने बचपन में मातापिता को हमेशा झगड़ते ही देखा है.’
वह दो पल रुक कर फिर बोला, ‘पापा मम्मी को अपनी बात समझाने में असमर्थ रहे, इसलिए वे मुझे बेहद कमजोर इंसान लगते हैं.’
राजेश ने समझाते हुए कहा, ‘बच्चों का मनमस्तिष्क बहुत भावुक व कोमल होता है. वह बड़ों की बातों को देखतासुनता तो है किंतु पूरी तरह से समझने में असमर्थ होता है. वह अपनी छोटी समझ से एक धारणा बना लेता है. तुम मेरे बेटे समान हो, तुम्हारा भला चाहता हूं. निश्ंिचत रहो, मैं तुम्हें कुछ गलत नहीं बताऊंगा.’
राजेश ने समझाना जारी रखते हुए कहा, ‘फ्रैंड, तुम्हारे पापा एक कमजोर नहीं बहुत मजबूत इंसान हैं. तुम्हारी मम्मी को मैं जितना समझ पाया हूं वह यह कि उन्हें धनदौलत की बेहिसाब भूख थी. वे तुम्हारे पापा से रिश्वत लेने के लिए लड़ाईझगड़ा करती थीं. फ्रैंड, बैंक मैनेजर को इतनी तनख्वाह तो मिलती है कि वह एक सम्माननीय जीवन व्यतीत कर सके. ईमानदारी तो चरित्र का अनमोल गहना है. तुम्हारे पापा जैसे इंसान का सम्मान होना चाहिए न कि अपमान.
‘तुम्हारे पापा को पत्नी व मित्र ने धोखा दिया. यह ऐसा घाव है जो नासूर बन कर तुम्हारे पापा और तुम्हारी जिंदगी बरबाद कर रहा है. अपनों के धोखे को सहज कर जिंदगी को कर्तव्य की भांति निभाना किसी कमजोर इंसान के बस की बात नहीं है, फ्रैंड. ‘तुम्हारे पापा तुम्हारी अच्छी परवरिश के लिए अपने दुख को दरकिनार कर कर्तव्य को बखूबी निभा रहे हैं. तुम अपना कन्फ्यूजन दूर करो तथा अपने पापा का आदरसम्मान कर खुद को योग्य बेटा सिद्ध करो.’
अगली सुबह रामेश्वरजी लौट आए. जैसे ही उन की टैक्सी गेट के सामने रुकी, हम से पहले रोहन गेट तक पहुंच गया. उस ने जल्दी से टैक्सी का गेट खोला. रामेश्वरजी बाहर निकले. उस ने चरणस्पर्श कर पूछा, ‘कैसे हैं, पापा?’ रामेश्वरजी भावविह्वल हो कर बोले, ‘मैं बहुत अच्छा हूं, तुम्हें देख कर सफर की सारी थकान दूर हो गई,’ और रोहन को गले से लगा लिया. रोहन खुश था. वह पापा के हाथों से ब्रीफकेस ले कर ऊपर चला गया.
रामेश्वरजी राजेश के गले से लग गए, हम लोगों ने रामेश्वरजी के चेहरे पर अद्वितीय खुशी देखी. गुस्सैल रोहन को स्नेहमयी रोहन में बदला हुआ देख रामेश्वरजी बोले, ‘आप लोगों ने कमाल कर दिया. मुझे मेरे बेटे से मिलवा दिया. मैं कैसे आप लोगों का एहसान चुकाऊं…’
राजेश बीच में ही बात काटते हुए बोले, ‘दोबारा एहसान का जिक्र न करिएगा, अभी जल्दी से ऊपर जाइए, आप का बेटा इंतजार कर रहा है.’ रामेश्वरजी व रोहन से हमारा एक अनोखा रिश्ता बन गया है. इस रिश्ते ने रोहन को तो सही मार्ग दिखाया ही हमें अकल्पनीय उपहार दे दिया. आज रोहन एक कुशल इंजीनियर है. सुंदर व सुशील सौम्या उस की पत्नी है और 2 प्यारेप्यारे बच्चों ने घरआंगन गुलजार कर दिया है.
हम पतिपत्नी का मन बेटा, बहू, पोता, पोती के लिए तरसता था. एकांत में हम आंसू बहाते थे. आज रोहन के कारण वह रिक्त कोना गुलजार हो उठा है. ऐसा महसूस होता है कि रोहन के रूप में राजीव मिल गया है. सच में, माइनसमाइनस प्लस हो गया, मरुस्थल सा बना हमारा मन रिमझिम फुहार से सराबोर हो उठा.